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इस बार जोहार महोत्सव में लोगो के जुबाँ पर एक ही बात अटकी थी “हमारे पप्पू दा की आवाज नहीं सुनाई दी “




हल्द्वानी में जोहार सांस्कृतिक एवं वेलफेयर सोसायटी के तत्वाधान में आयोजित जोहार महोत्सव का कार्यक्रम पूर्ण  तो  हुआ लेकिन दर्शको के दिलो में बस एक कमी रही वो थी उत्तराखण्ड के विख्यात लोकगायक स्व. पप्पू कार्की की जो प्रत्येक वर्ष जोहार महोत्सव में लोगो के बिच अपनी आवाज का ऐसा जादू बिखेरते थे , की महोत्सव में चार चाँद लगा देते थे। इस बार लोगो के जुबाँ पर एक ही बात अटकी थी ” हमारे पप्पू दा की आवाज नहीं सुनाई दी “।




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बता दे की इस बार जोहार महोत्सव में कुमाऊं की संस्कृति को अपनी लोकगायिकी से जिन्दा रखने वाले दो प्रमुख हस्तियाँ कबूतरी देवी और पप्पू कार्की के गीतों की प्रस्तुति से दोनों को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। प्रत्येक वर्ष पप्पू कार्की जोहार महोत्सव में अपनी मधुर आवाज से जहाँ कार्यक्रम में एक नयी जान डाल देते थे ,वही इस वर्ष दर्शको को उनकी बहुत कमी महसूस हुई। जोहार महोत्सव 2016 में जब पप्पू कार्की ने अपने लोकप्रिय गीत लाली ओ लाली की पेशकश की तो दर्शक झूम उठे थे। इसके साथ ही वर्ष 2017 के जोहार महोत्सव में भी पप्पू कार्की ने ऐजा रे चैत वैशाखा मेरो मुन्स्यारा से महोत्सव में चार चाँद लगा दिए थे। गायिकी का वो हुनर था पप्पू कार्की में जो किसी को भी अपना मुरीद बना ले , अगर उनकी न्योली सुनी जाये तो फिर आप अपने को भावुक होने से नहीं रोक सकते है।

जोहार महोत्सव 2016 में जब पप्पू कार्की ने अपने लोकप्रिय गीत लाली ओ लाली की पेशकश की तो दर्शक झूम उठे थे।




वर्ष 2017 के जोहार महोत्सव में भी पप्पू कार्की ने ऐजा रे चैत वैशाखा मेरो मुन्स्यारा से महोत्सव में चार चाँद लगा दिए थे।





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उत्तराखण्ड के लोकगीतो की बात करे तो स्व.पप्पू कार्की का नाम सबकी जुबा पर रहता है, जिन्होंने उत्तराखण्ड के लोकगीतों को एक नयी उचाई पर पहुंचाया था, आज भी उनकी अमर आवाज सबके दिलो में जीवित है। स्व. पप्पू कार्की ने अपनी जादुई आवाज से सबके दिलो में अपनी अमिट छाप छोड़ी थी। जब 9 जून 2018 को यह महान लोकगायक अपनी आवाज देकर अलविदा कह गया तो पहाड़ो में एक शोक की लहर दौड़ गयी थी। उनके गीतों की खाश बात तो ये थी की हर युवा वर्ग से लेकर बुजुर्ग तक उनकी आवाज के दीवाने थे ऐसी बेजोड़ कला थी उनके आवाज में की दिल की गहराइयों तक झकझोर कर रख देता था। इतने कम समय में सफलता के उस मुकाम पर थे पप्पू कार्की जहाँ पहुंचने में लोगो को वर्षो लग जाते है , लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, जो ये महान लोकगायक अपनी अमर आवाज देकर सबको अलविदा कह गया।




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