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खुशखबरी: उत्तराखंड सरकारी विभागों के संविदा कर्मचारी होंगे नियमित हाईकोर्ट ने दिया फैसला

Uttarakhand adhoc Employees Regularisation: लंबे समय से नियमितीकरण की मांग कर रहे संविदा कर्मचारी को हाई कोर्ट से मिली हरी झंडी

Uttarakhand adhoc Employees Regularisation: उत्तराखण्ड के सरकारी विभागों में दैनिक वेतन, तदर्थ, संविदा के रूप में कार्यरत कर्मचारियों के लिए एक अच्छी खबर सामने आ रही है। जी हां… उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने बीते दिनों दिए अपने एक अहम फैसले में न केवल उत्तराखण्ड सरकार द्वारा बनाई गई दिसंबर 2013 की नियमावली को न्यायोचित ठहराया है बल्कि यह भी कहा है कि इस नियमावली के आधार पर वर्तमान में भी सरकारी विभागों में दैनिक वेतन, तदर्थ एवं संविदा के रूप में कार्यरत कर्मचारियों को नियमित किया जा सकता है। उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के इस अहम फैसले से जहां इस नियमावली के तहत दिसंबर 2018 से पहले नियमित किए गए हजारों कर्मचारियों ने राहत की सांस ली है वहीं वर्तमान में सरकारी विभागों में दैनिक वेतन, तदर्थ एवं संविदा के रूप में कार्यरत हजारों न‌ए कर्मचारियों के लिए भी पक्की नौकरी के द्वार खुल ग‌ए है। हालांकि अब यह उत्तराखण्ड सरकार पर निर्भर है कि वह उत्तराखंड हाइकोर्ट के इस निर्णय का समर्थन करती है या फिर इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट की ओर रूख करती है।
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बता दें कि इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। सौड़ बगड़ (जिला नैनीताल) निवासी नरेंद्र सिंह बिष्ट, हल्द्वानी निवासी हिमांशु जोशी और कई अन्य की ओर से हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि चार दिसंबर 2018 से पूर्व जिन कार्मिकों को नियमित किया जा चुका है, उन्हें नियमित माना जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि 2013 की नियमावली के अनुसार अन्य को दस वर्ष की दैनिक वेतन, संविदा के रूप में सेवा करने की बाध्यता के आधार पर नियमित किया जा सकता है। इसके साथ ही हाइकोर्ट ने उत्तराखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2013 में बनाई गई नियमितीकरण की नियमावली को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को निस्तारित कर दिया है। बता दें कि इस संबंध में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि निगमों, विभागों, परिषदों और अन्य सरकारी उपक्रमों में बिना किसी चयन प्रक्रिया के कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जा रहा है। जिससे उनके हित प्रभावित हो रहे हैं।

बताते चलें कि सरकारी विभागों में दैनिक वेतन, तदर्थ, संविदा के आधार पर कार्यरत कर्मियों को नियमित करने के लिए वर्ष 2011 में उत्तराखण्ड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में दिए निर्देशों के क्रम में कर्मचारी नियमितीकरण नियमावली बनाई थी। जिसके तहत 10 वर्ष या उससे अधिक समय से दैनिक वेतन, तदर्थ, संविदा पर कार्यरत कर्मियों को नियमित करने का फैसला लिया गया था। लेकिन राज्य गठन के बाद सृजित न‌ए विभागों में कार्यरत दैनिक वेतन, तदर्थ, संविदा कर्मचारी इस नियमावली के दायरे में नहीं आ सकें। जिस पर तत्कालीन उत्तराखण्ड सरकार ने 31 दिसंबर 2013 को एक नई नियमावली जारी की। इस नियमावली के मुताबिक दिसंबर 2008 में जो कर्मचारी पांच साल या उससे अधिक की सेवा पूरी कर चुके हैं उन्हें नियमित किया जाएगा। सरकारी की इस नियमावली पर 4 दिसंबर 2018 को हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। जिसके बाद से ही उत्तराखंड में संविदा, तदर्थ एवं दैनिक वेतन के आधार पर कार्यरत कर्मचारियों की नियमितिकरण की प्रक्रिया बंद हो गई थी। अब उत्तराखंड हाईकोर्ट से इस नियमावली पर रोक हटने के बाद आने वाले दिनों में हजारों कर्मचारियों को पक्की सरकारी नौकरी की सौगात मिल सकती है।

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