Baba Bokh Naag Devta: सोमवार को सिलक्यारा सुरंग के बाहर दिखी थी भगवान शिव की आकृति, मंगलवार को सफल हो गया रेस्क्यू आपरेशन, स्थानीय लोगों ने बताया बाबा बौख नाग का आशीर्वाद, जाने इनके बारे में….
Baba Bokh Naag Devta
ये तो आप सभी जानते हैं कि उत्तराखंड देवभूमि कहलाती है और यहां की भूमि बेहद चमत्कारिक और रहस्यमयी है। यहां की भूमि में आपको कई प्रकार के चमत्कार देखने और सुनने को मिलते हैं। जितने टेडे यहां के रास्ते होते हैं उतने ही सीधे यहां के लोग और उतना ही गहरा उनका विश्वास होता है जिस कारण देवी देवताओं के प्रति भी वे अटूट विश्वास रखते हैं और यही नहीं देवी देवता भी उनके प्रति अपना समर्पण दिखाते हैं और सदैव उनकी रक्षा करते हैं। यहां के देवी देवता न सिर्फ उनकी रक्षा करते हैं बल्कि यहां की भूमि, पहाड़ों और प्रकृति के रक्षक भी होते हैं। और कभी भी किसी कारण वश यहां के पहाड़ों को क्षति या हानि पहुंचती है तो हमें उनका प्रत्यक्ष प्रमाण और रोद्र रूप देखने को मिलता है।
यह देवी देवता लोक देवता, भूमियाल देवता और रक्षक देवता के नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं देवताओं में से आज हम आपको हाल ही में उत्तरकाशी टनल हादसे में सबसे ज्यादा चर्चा में आने वाले बाबा बौख नाग देवता से रूबरू करवाएंगे।
जी हां यह वही देवता हैं जिनके आगे विदेशी मशीन भी फेल हो गई और सरकार तक को भी नतमस्तक होना पड़ा। तो आईए जानते हैं कौन हैं बाबा बौखनाग देवता?
(Baba Bokh Naag Devta)
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बाबा बौखनाग (Baba Bokh Naag Devta history)
बाबा बौखनाग भगवान श्री कृष्ण के वासुकी नाग के अवतार माने जाते हैं। जिनकी पूजा उत्तरकाशी में नाग देवता के रूप में की जाती है। यह उत्तरकाशी क्षेत्र के लोगों का ईष्ट और रक्षक देवता हैं जो कि नाग रूप में पूजे जाते हैं। उत्तरकाशी के नौगांव के राड़ी टॉप इलाके में बाबा बौखनाग का एक विशाल मंदिर है जो कि चारों ओर से पहाड़ों से घिरा है। हर साल इस मंदिर में एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें 22 गांव के लोग सम्मिलित होकर बाबा बौख नाग से मन इच्छा मन्नत मांगते हैं। इस मेले में निसंतान दंपतियों और नव विवाहितों द्वारा नंगे पैर सम्मिलित होने की प्रथा है। कहते हैं कि ऐसा करने से बाबा बौखनाग उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
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Uttarkashi tunnel Rescue Operation: उत्तरकाशी टनल हादसे से बाबा बौखनाग देवता का संबंध?
Uttarkashi tunnel Rescue Operation
बाबा बौख नाग उत्तरकाशी के सिलक्यारा क्षेत्र के लोगों के लोक देवता के साथ ही रक्षक देव माने जाते हैं। साथ ही यह सिलक्यारा सहित तीन गांव के लोगों के ईष्ट देवता हैं। ग्रामीणों के अनुसार जहां पर वर्तमान में सिलक्यारा टनल बना हुआ है वहां पर पहले बाबा बौखनाग का एक पौराणिक मंदिर था जिसे सिलक्यारा सहित तीन गांव के लोगों द्वारा पूजा जाता था। इस मंदिर में हर साल एक भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता था। मगर जब टनल का काम शुरू हुआ तो कंपनी के द्वारा मंदिर अपनी जगह से हटा दिया गया जिस कारण बाबा उनसे रुष्ट हुए और उनके प्रकोप से यह बड़ा हादसा हुआ।
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चूंकि वर्तमान में सरकार द्वारा ग्रामीणों के कहने पर टनल के बाहर एक नए मंदिर का निर्माण कर दिया गया है। जिसके बाद से ही राहत एवं बचाव दलों द्वारा किए गए सभी प्रयासों का सकारात्मक परिणाम देखने को मिला। इसी की बदौलत 17 दिनों बाद सुरंग में फंसे सभी 41 लोगों को बीते मंगलवार को सकुशल बाहर निकाल लिया गया। यह बौखनाग देवता का ही आशीर्वाद था कि उत्तराखंड का एक बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया। इसे बाबा बौखनाग देवता की कृपा ही कहेंगे कि सोमवार को जहां टनल के मुहाने पर गोरखनाथ देवता मंदिर के पास शिव की आकृति बनी और वहीं मंगलवार को यह मिशन सफल हो गया। जिससे स्थानीय लोगों के साथ ही सुरंग के अंदर फंसे सभी 41 लोगों और उनके परिजनों की आस्था बाबा बौखनाग के प्रति और भी अधिक बढ़ गई।
तो ये थे भगवान श्रीकृष्ण के नाग अवतारी और पहाड़ों के रक्षक लोकदेवता बाबा बौखनाग। जिनकी महिमा के आगे ना सिर्फ उत्तरकाशी बल्कि संपूर्ण उत्तराखंड और देश नतमस्तक है।