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Uttarakhand: Bedu also started becoming extinct gradually, remained limited till Pako Baramasa. bedu pako baramasa

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संपादकीय

उत्तराखंड: बेड़ू भी होने लगा धीरे-धीरे विलुप्त, बेडू पाको बारोमासा तक रह गया सिमित

bedu pako baramasa: बदल ग‌ए हैं उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध पहाड़ी गीत’बेड़ू पाकों बारामासा…’ के मायने, विलुप्त होने की कगार पर पहुंचा बेडू, फाल्गुन में ही पकने लगे काफल….

आम जनमानस इन दिनों जलवायु परिवर्तन होने से त्रस्त है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है इस बार सर्दियों में जहां उच्च हिमालई क्षेत्र भी भारी बर्फबारी से अछूते रहे वहीं फरवरी माह में ही धरती तपने लगी है। इससे जहां एक ओर भीषण गर्मी पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है वहीं लोगों को गर्मियों में पानी का भीषण संकट भी झेलना पड़ सकता है। आलम यह है कि पहाड़ के जिस सुपरहिट गीत ‘बेडू पाकों बारामासा नरैण काफल पाकों चैत मेरी छैला….’ को लोग बड़े प्यार से गुनगुनाते एवं सुनते हैं वह काफल अब फाल्गुन में ही पकने लगा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अप्रैल में पकने वाला काफल इस बार फरवरी यानी फाल्गुन माह में ही काफल भवाली की बाजारों में बिकने लगा है। इससे जहां पहाड़ के इस लोकप्रिय गीत के मायने ही बदल ग‌ए हैं वहीं जलवायु परिवर्तन की इन चंद प्रत्यक्ष घटनाओं ने जहां पर्यावरणविदों को चिंतित कर दिया है वहीं आम जनमानस ही मौसम में इस कदर परिवर्तन होने से हैरान परेशान हैं।
(bedu pako baramasa)
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दूसरी ओर इस पहाड़ी गीत में जिस बेडू के फल की बारमास यानी भादो मास में पकने की बात कही गई है वह जंगली फल बेडू (पहाड़ी अंजीर) अब विलुप्त होने की कगार पर आ गया है। जंगलों का कटान, दावाग्नि आदि घटनाओं के कारण कभी लोगों के जीवन का हिस्सा रहे बेडू सहित अन्य जंगली फल आज लोगों की पहुंच से दूर होते जा रहे हैं। वास्तविकता यही है कि आज अगर युवा पीढ़ी से बेडू के बारे में पूछा जाए तो वह इससे अनजान ही मिलेगा। यहां तक कि अधिकांश युवाओं ने तो इस फल को खाना तो दूर नजदीकी से देखा भी नहीं होगा। आपको बता दें कि पहाड़ी गीतों की शान रहे इस सुप्रसिद्ध कुमाऊनी गीत के बोल स्वगीर्य बृजेन्द्र लाल शाह द्वारा लिखे गए थे। इसका सुमधुर संगीत जहां मोहन चन्द्र उप्रेती एवं बृजमोहन शाह द्वारा तैयार किया गया था वहीं इस गीत को पहली बार वर्ष 1952 में राजकीय इंटर कॉलेज नैनीताल के एक कार्यक्रम में मंच से गाया गया था। बताते चलें कि यह सुपरहिट कुमाऊंनी गीत न केवल आम जनमानस के पसंदीदा गीतों में से एक है बल्कि आज की युवा पीढ़ी भी इस गीत को गुनगुनाते रहते हैं। गणतंत्र दिवस की बीटिंग सेरेमनी के दौरान जहां इस गीत को कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों ने क‌ई बार बजाया है वहीं भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी यह गीत बेहद पसंद था।
(bedu pako baramasa)
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