उत्तराखंड बोर्ड के 12 वीं के परीक्षा परिणामों में इस वर्ष टॉप करने वाली शताक्षी तिवारी ने उन सभी के लिए एक उदाहरण पेश किया है जो अपनी असफलताओं का ठिकरा बदतर परिस्थितियो पर फोड़ देते हैं, और कुछ तो पहाड़ो से शहरो में इसलिए भी पलायन कर गए की पहाड़ के स्कूलों में पढाई नहीं होती है। उन सभी लोगो के लिए एक मिशाल बनी हैं पहाड़ की शताक्षी। जी हां.. शताक्षी द्वारा हासिल की गई यह सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने पहाड़ के जर्जर परिस्थितियों में भी संघर्ष कर यह मुकाम हासिल किया है। घर से रोज करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल जाने वाली शताक्षी का रोजाना 40 किलोमीटर का सफर स्कूल आने जाने में व्यतीत होता था। कठिन परिस्थितियों से गुजरकर सफलता प्राप्त करने वाली शताक्षी अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता एवं अध्यापकों को देती है। इसके साथ ही शताक्षी के इस संघर्षपूर्ण एवं प्रेरणादायक सफर ने उन सभी माता-पिताओं को भी सोचने के लिए मजबूर कर दिया है जो बच्चों की अच्छी शिक्षा का बहाना बनाकर पहाड़ो से शहरों में पलायन कर रहे हैं।
शताक्षी की संघर्षपूर्ण एवं प्रेरणादायक सफलता की कहानी, उन्हीं की जुबानी- बता दें कि उत्तराखंड की इंटरमीडिएट की टॉपर शताक्षी तिवारी ने आज घोषित हुए परीक्षा परिणामों में 98 प्रतिशत अंक पाकर एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जिसके लिए हर कोई शताक्षी की तारीफ कर रहा है। वर्तमान में देहरादून से जेईई मेंस की तैयारी कर रही शताक्षी भविष्य में आईआईटी में प्रोफेसर बनना चाहती हैं। उत्तरकाशी जिले के चिन्यालीसौंड़ स्थित श्री विद्या मंदिर इंटर कॉलेज से इस वर्ष 12 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली शताक्षी के पिता अनूप तिवारी एक प्राइवेट इंजीनियर हैं। जबकि उनकी माता सुनीता तिवारी कंडीसौड़ में हेल्थ सुपरवाइजर है। स्कूल जाने के लिए लगभग रोज 40 किलोमीटर का सफर तय करने वाली शताक्षी के अनुसार पढ़ाई के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि जहां वह रहती हैं वहां स्कूल या पढ़ाई के लिए अच्छी सुविधाएं नहीं है। स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि शताक्षी ने यह मुकाम अपनी कड़ी मेहनत और अनुशासन के दम पर हासिल किया है।