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देवभूमि दर्शन

गोलू देवता कैसे पहुंचे कुमाऊं से गढ़वाल में, कैसे बने कंडोलिया देवता जानिए कुछ विशेष

 Kandoliya Devta Mandir Pauri  न्याय के देवता गोलू देवता को कौन लाया कुमाऊं से गढ़वाल में और कैसे बन गए कंडोलिया बाबा…

Kandoliya Devta Mandir Pauri: उत्तराखंड मे बहुत सारे सुप्रसिद्ध मंदिर स्थित है और इन मंदिरों में अलग-अलग देवता विराजमान है इस बात से आप सभी लोग अच्छी तरह परिचित होंगे लेकिन क्या आप जानते है की उत्तराखंड मे एक ऐसा मन्दिर भी है जहां चिट्ठी लिखने से मनोकामना पूर्ण होती है। जी हां हम बात कर रहे हैं न्याय के देवता गोलू देवता की जिन्हें गढ़वाल में कंडोलिया देवता या कंडोलिया बाबा भी कहा जाता है। कुमाऊं में गोलू देवता के बड़े मंदिर चितई अल्मोड़ा, घोड़ाखाल भवाली, ताड़ीखेत , गैराड़ अल्मोड़ा और चंपावत में स्थित है। आपको बता दें कि गोलू देवता को गौर भैरव ( शिव ) का अवतार माना जाता है और पूरे कुमाऊं क्षेत्र मे उनकी पूजा की जाती है| गोलू देवता को न्याय का देवता जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों की समस्याओं को सुनते है और उन्हें न्याय दिलवाते है| गोलू देवता मन्दिर के दर्शन करने के लिए लोग देश विदेशों से आते है और अपनी इच्छा भगवान के दरबार मे प्रकट करते है और इतना ही नही गोलू देवता कुमाऊं के ही नही बल्कि गढ़वाल के भी प्रसिद्ध देवता माने जाते है इसके बारे मे भी हम आपको विशेष जानकारी देंगे लेकिन उससे पहले हम कुमाऊं के गोलू देवता की बात करते  हैं। गोलू देवता झाल राय के बहादुर पुत्र और चंद शासको के राजा थे| ऐतिहासिक दृष्टि से चम्पावत को गोलू देवता का उद्गम स्थल माना जाता है| गोलू देवता के जन्म की भिन्न भिन्न जगह पर भिन्न-भिन्न कहानियाँ है उन्हीं कहानियों में से एक सबसे रोचक कहानी एक स्थानीय राजा की है, जिसने शिकार करते समय पानी की तलाश में अपने नौकरों को भेजा था| तभी राजा द्वारा भेजे गए नौकरों ने एक प्रार्थना कर रही महिला को परेशान करना शुरू किया तभी महिला ने क्रोध मे आकर राजा को ताना मारा की वह दो लड़ते हुए बैलों को अलग नहीं कर सकता और खुद भी यह कहकर ऐसा करने लगी | राजा इस कार्य को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस स्त्री से विवाह कर लिया| रानी ने विवाह के कुछ समय पश्चात एक बेटे को जन्म दिया और जो अन्य रानियां थी वह रानी से ईर्ष्या करती थी| रानी के पुत्र के स्थान पर अन्य रानियों ने मिलकर एक पत्थर रख दिया और उसे नदी में बहा दिया था , इसके पश्चात वह बच्चा एक मछुआरे के हाथ लगा और उसका पालन पोषण एक मछुआरे द्वारा किया गया था| जब वह लड़का बड़ा हुआ तो बहुत लकड़ी के घोड़े को लेकर नदी पर गया और रानियों के पूछने पर उसने उत्तर दिया की यदि महिलाएं पत्थर को जन्म दे सकती है तो लकड़ी के घोड़े भी पानी पी सकते हैं| जब राजा को यह बात पता चली तो उसने दोषी रानियों को दंड दिया और उसे लड़के का राज्याभिषेक किया जो आगे चलकर गोलू देवता के नाम से जाना गया|
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गोलू देवता कैसे बने कंडोलिया देवता जाने इसकी रोचक कहानी (Golu Devta kandoliya Devta )

ऐसा कहा जाता है की वर्षो पहले कुमाऊं की एक युवती का विवाह पौड़ी डुंगरियाल नेगी जाति में हुआ था और विवाह के पश्चात वह स्त्री अपने इष्ट देवता के लिंग को एक कंडी यानी (टोकरी) में लाई थी और इसके बाद देवता को कंडोलिया देवता/ बाबा के नाम से जाने जाना लगा और उनकी पूजा पौड़ी गढ़वाल में होने लगी| ऐसी मान्यता है कि देवता एक व्यक्ति के स्वप्न में आए और अपना स्थान एक उच्च स्थान पर मांगने लगे इसके बाद इसके पश्चात उन्हें पौड़ी गढ़वाल की पहाड़ी पर एक उचित स्थान दिया गया और यहां विराजमान किया गया| तब से लेकर आज तक कंडोलिया मंदिर न्याय देवता के रूप मे प्रसिद्ध हो गए|
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कंडोलिया देवता हैं भूमियाल देवता : कण्डोलिया देवता कण्डोलिया देवता मूलरूप से भगवान शिव के ही स्वरूप है। कालान्तर में जब पौड़ीग्राम के मूल निवासी पौड़ी आये तो उन्होंने पौड़ी ग्राम को वसाया तथा वे अपने साथ अपने भूमियाल देवता को भी लाये तथा कंडोलिया नामक उच्च स्थान पर उनकी स्थापना की। कंडोलिया देवता पौड़ी ग्राम वासियों के भूमियाल देवता है तथा इनके पुजारी डोंगरियाल नेगी है। ग्राम वासी एवं स्थानीय लोग श्रद्धा के साथ की पूजा अर्चना भूमियाल देवता के रूप में करते हैं पूर्वकाल से यह देवता “धवाडिया देवता ” के रूप में प्रसिद्ध है अर्थात पूर्व काल में यह ग्राम वासियों को उनके होने वाले नुकसान एवं संकट के संबंध में पूर्व में ही आवाज देकर इसकी सूचना व चेतावनी दे देते थे। मंदिर ऊंचे स्थान पर स्थापित है तथा चारों ओर बुरांश, देवदार, चीड़ इत्यादि वृक्षों से गिरा है और इतना ही नही इस मन्दिर परिसर से हिमालय का विहगम दृश्य दिखाई देता है। यहां से बंदरपूछ, भगीरथघाटी गंगोत्री ग्रुप ,जुनली, भृंगुपंत, केदरकांठा, नीलकंठ, हाथी गौरी पर्वत द्रोणागिरी एवं त्रिशूल आदि हिमालय की चोटियों का आकर्षक दृश्य दिखाई देता है। मन्दिर से 1.5 km की दूरी पर एशिया में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित राशि स्टेडियम है तथा वहां से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर पौराणिक शिव मंदिर क्यूंकालेश्वर भी स्थित है।

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