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Khatarua festival 2024 uttarakhand
Image Source social media- khatarua festival 2024 Uttarakhand

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आज मनाया जाएगा खतड़वा त्योहार जानिए इससे जुड़े कुछ विशेष तथ्य

Khatarua festival 2024 uttarakhand : उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में शरद ऋतु की शुरुआत के आवागमन पर मनाया जाने वाला लोक पर्व, पशुओं के स्वास्थ्य और ऋतु परिवर्तन को समर्पित है खतडवा पर्व…….

Khatarua festival 2024 uttarakhand : उत्तराखंड मे कई सारे त्यौहार मनाए जाते हैं ठीक उसी प्रकार से उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार खतडवा भी है जो विशेष रूप से कृषि और पशुपालन से जुड़ा हुआ है। इस त्यौहार के पीछे का मुख्य उद्देश्य पशुओं की सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करना है इस दौरान लोग अपने पशुओं को बुरी नजर से बचाने और उनकी उन्नति की कामना करते हैं। बताते चलें इस त्यौहार को अश्विन महीने में मनाया जाता है जब मानसून समाप्त होता है तथा सर्दियों की शुरुआत होती है। इतना ही नहीं बल्कि इस त्यौहार के दौरान लकड़ी के पत्तों और घास के पुतलों का निर्माण कर उन्हें जलाया जाता है जो नकारात्मक शक्तियों को दूर करने का प्रतीक है।
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Khatarua Tyohar 2024 date दरअसल इस वर्ष 16 सितंबर 2024 यानी आज सोमवार को खतडवा त्यौहार मनाया जाएगा। बता दें कि कन्या संक्रांति के दिन कुमाऊं मंडल में मनाया जाने वाला खतडवा, एक महत्वपूर्ण लोक पर्व माना जाता है। यह पर्व पशुओं के स्वास्थ्य और ऋतु परिवर्तन को समर्पित बेहद लोकप्रिय पर्व है इस दिन पशुओं की सेवा की जाती है इसलिए इसे गैत्यार या गाईत्यार भी कहा जाता है। हालांकि इस त्यौहार के साथ एक अस्पष्ट कहानी भी जोड़ी जाती है जिसके अनुसार प्राचीन ऐतिहासिक काल में कुमाऊनी सेनापति ने गढ़वाली सेनापति को हरा दिया था और ऐसा कहा जाता है तबसे कुमाऊं वासी इस विजय उत्सव को खतड़वा त्यौहार के रूप में मनाते हैं लेकिन त्यौहार मनाने की विधि और परंपराओं से स्पष्ट होता है कि यह आपसी वैमनस्य का त्यौहार नहीं बल्कि ऋतुपरिवर्तन और पशुओं के उच्च स्वास्थ को समर्पित त्यौहार है।
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happy Khatarua 2024 best wishes आपको जानकारी देते चले खतडवा त्यौहार के दिन सुबह घरों की साफ सफाई के साथ पशुओं का विशेष ध्यान रखा जाता है और इस दिन पशुओं को ताजी हरी घास के साथ कई पौष्टिक भोजन खिलाए जाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि इस दिन शाम को पतली लंबी छडो के सिरों पर कांस के अथवा अन्य फूलों के गुच्छों को बांधकर उनसे घास फूंस के बने पुतलों पर आग लगाई जाती है। इसके प्रज्वलित होते ही लोग हर्षोल्लास के साथ ‘ भैल्लो जी भैल्लो गाई कि जीत, खतडुवा की हार की पंक्तियों को दोहराते हुए उस आग के चारों ओर उछलते-कूदते हुए अपनी छड़ियों से आग पर प्रहार करते चलते हैं तथा अन्त में उसके बुझ जाने पर लम्बी कूंदें लगाकर उसे इधर से उधर की ओर लांघते हैं। इसके बाद गांव में इस ऋतु विशेष के फल खीरों को तोड़कर परस्पर बांटकर खाते है। किंतु पशुचारक वर्ग मे ये खीरे पशुओं के बाँधने की लंबी किल्ली पर मार कर तोड़े जाते हैं अंत में अग्नि को शांत करने के लिए लिए प्रयुक्त छड़ियों को प्रज्वलित करके पशुओं के निवास स्थल पर घुमाया जाता है। इसके सम्बन्ध में लोकविश्वास है कि ऐसा करने से पशुओं को ग्रस्त करने वाले रोगों का नाश तथा उन्हें हानि पहुंचाने वाली दुष्ट शक्तियों का विनाश होता है।
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Khatarua festival history story: कई क्षेत्रों में बच्चे इससे तीन-चार दिन पहले कांस के फूलों की एक मानवाकार बूढ़ी बनाकर उसके गले में फूलों की माला डालकर घर के पास गोबर के ढेर में आरोपित कर देते हैं। इसके अतिरिक्त घास के मूढे को मोड़कर एक बूढ़ा भी बनाया जाता है जिसे बुढी के पास ही आरोपित किया जाता है। उसी दिन शाम को बूढ़े को उखाड़कर और घूमा कर छत पर फेंक दिया जाता है तथा बूढ़ी को खतड़वे के साथ जला दिया जाता है। जिसके बाद बच्चे ‘ओ लट्या भूल गै, लुत्तो ल्हैजा’ कहते हुए बूढ़ी की राख का तिलक लगाते हैं। बूढ़ी की राख ले जाकर पशुओं के माथे पर भी लगाया जाता है ऐसा कहा जाता है कि खतड़वा तथा बूढ़ी के साथ ही पशुओं के सारे अनिष्ट भस्म हो जाते हैं। बताते चलें खतड़वा शब्द की उत्पत्ति खतड़ शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है विस्तर या आवरण सर्दियों के मौसम से बचने के लिए जैसे हम खतड़ का प्रयोग करते हैं वैसे ही खतडवा पर्व जाड़ों से रक्षा के लिए मनाया जाने वाला पर्व है। कई लोग इसे कुमाऊं के सेनापति गैड़ा सिंह द्वारा गढ़वाल के सेनापति खतड़ सिंह को हराने की ख़ुशी में मनाया जाने वाला विजय उत्सव मानते हैं लेकिन इस मामले में कई सारे इतिहासकार इस कहानी को सिरे से नकारते हैं। सभी का यही मानना है कि यह कहानी मिथ्या और भ्रामक है। यह संक्रांति पर्व कुमाऊं के अलावा नेपाल तथा नेपालियों से सम्बद्ध क्षेत्रों, दार्जिलिंग, सिक्किम में भी मनाया जाता है।

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