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Uttarakhand Government Happy Independence Day
CAG REPORT UTTARAKHAND
सांकेतिक फोटो CAG REPORT UTTARAKHAND

देवभूमि दर्शन

संपादकीय

उत्तराखण्ड CAG रिपोर्ट: वनों श्रमिकों का पैसा भी डकार गए अधिकारी खरीदें करोड़ों के आईफोन लैपटॉप

CAG REPORT UTTARAKHAND: ईमानदार सरकार की भ्रष्ट नीतियों को आईना दिखाती कैग की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा वनीकरण और वन संरक्षण के लिए आवंटित कैम्पा का बजट भी डकार गए अधिकारी, करोड़ों रुपए के खरीद लिए आईफोन लैपटॉप, पहाड़ में 70% डॉक्टरों के पद भी बताए गए खाली मतलब महज 30% डॉक्टरों के भरोसे है पहाड़ की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था….

CAG REPORT UTTARAKHAND: उत्तराखण्ड का पांच दिवसीय विधानसभा सत्र समाप्त हो चुका है। प्रतिवर्ष समूचे देश में सबसे कम दिनों तक विधानसभा सत्र संचालित करने का रिकॉर्ड बरकरार रखने में उत्तराखण्ड सरकार इस बार भी कामयाब रही। विधानसभा सत्र के अंतिम दो दिनों में हुआ प्रेमचंद लखपत बुटोला प्रकरण जहां अभी भी सोशल मीडिया के साथ ही आम जनमानस के बीच चर्चाओं का हिस्सा बना हुआ हैं वहीं विधानसभा सत्र के दौरान हुई अन्य घटनाओं पर उतनी चर्चा ना तो मीडिया में हुई ना ही विपक्ष ने इन मुद्दों को उठाने का प्रयास किया। विधानसभा सत्र के दौरान जहां करीब 11 विधेयक जहां बिना किसी चर्चा के पास हो ग‌ए, जिनमें ऐतिहासिक भू कानून भी शामिल था वहीं बजट सत्र के सदन पटल पर रखी गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) रिपोर्ट में सरकारी विभागों में वित्तीय अनियमितताओं और पैसों की बंदरबांट का भी खुलासा हुआ। आज हम उत्तराखण्ड सरकार की ईमानदार नितियों को आईना दिखाया इसी कैग रिपोर्ट पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
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वन, स्वास्थ्य एवं श्रमिक विभाग में वित्तीय अनियमितता का मामला आया सामने:-

uttarakhand CAG REPORT 2022 लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के कारण सबसे पहले तो हम इसके लिए आपसे माफ़ी चाहते हैं कि इतने दिनों तक यह महत्वपूर्ण खबर हम आप तक पहुंचा नहीं पाएं, परंतु आज हम आपको इस रिपोर्ट में हुए बड़े-बड़े खुलासों से रूबरू कराते हुए अपनी कलम की धार से सरकार की पहाड़ विरोधी नितियों एवं पैसों की बंदरबांट पर प्रहार करने का बखूबी प्रयास करेंगे। दरअसल बजट सत्र के दौरान विधानसभा में प्रस्तुत की गई वित्तीय वर्ष 2021-22 की इस कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड के तीन बड़े विभाग वन, स्वास्थ्य और श्रमिक कल्याण बोर्ड में किस तरह बिना योजना और अनुमति के सार्वजनिक धन का दुरूपयोग किया गया है। इतना ही नहीं वन विभाग में तो वन संरक्षण के लिए आवंटित बजट से अधिकारियों ने लैपटॉप, आईफोन, ऑफिस डेकोरेशन और नवीनीकरण के सामान आदि तक खरीद डाले। कागज़ों में वन संरक्षण अभियान चलता रहा, लाखों पेड़ लगाए गए परंतु धरातल पर कुछ और ही देखने को मिला है। इसके तहत करीब 14 करोड़ की वित्तीय अनियमितता कैग की रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वन विभाग को यह धनराशि प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) के तहत आवंटित की गई थी, परंतु वन विभाग के अधिकारियों ने करोड़ों रुपए की इस धनराशि से गैर पर्यावरणीय उपकरण खरीद डाले। इतना ही नहीं इस बजट का उपयोग एक वित्तीय वर्ष में करने के बजाय अधिकारियों ने करीब 37 मामलों में बजट खर्च करने में 8 वर्ष लगा दिए एवं वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर यह धनराशि समर्पित भी नहीं की गई। इसके अतिरिक्त 57 से अधिक मामलों में अधिकारियों ने क्षेत्रीय वनाधिकारी (डीएफओ) तक की अनुमति लेना तक जरूरी नहीं समझा।
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धरातल पर नहीं मिले वन विभाग द्वारा लगाए गए वृक्ष, कागजों में ही उगते रहे जंगल

UTTARAKHAND CAMPA BUDGET FUND NEWS आपको बता दें कि CAMPA के तहत आवंटित होने वाली यह धनराशि वन विभाग की जमीन पर बनने वाली सड़क, पावर लाइन, जल आपूर्ति लाइन, रेलवे और ऑफ रोड लाइन के लिए फारेस्ट क्लियरेंस मिलने पर निर्माण कार्यों की जद में आने वाले पेड़ों, जंगलों सहित वन भूमि की प्रतिपूरक के रूप में आवंटित की जाती है जिसका उपयोग वन संरक्षण और वनीकरण के लिए किया जाना आवश्यक होता है। इससे भी ज्यादा हैरानी करने वाली बात तो यह है कि वन विभाग द्वारा वर्ष 2017 से 2022 के बीच कैम्पा के तहत आवंटित धनराशि से किए गए वृक्षारोपण में से केवल 33 प्रतिशत पेड़ ही धरातल पर मौजूद पाए गए। अब वास्तव में इस धनराशि से कितने पेड़ जमीन पर लगाए गए ये तो भगवान ही जाने परंतु नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के अधिकारीयों द्वारा किए गए आडिट के दौरान वन विभाग के भोले भाले सरकारी अधिकारियों ने इसका कारण लगाए गए वृक्षों, पौधों का वनाग्नि आदि की भेंट चढ़ जाना बताया। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी कैग की रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि अधिकारियों ने जिस 43.95 हेक्टेयर वनीकरण दिखाया था उसका भौतिक निरीक्षण करने पर देखा परीक्षा दल को धरातल पर केवल 23.82 हेक्टेयर भूमि पर ही वनीकरण पाया गया। इस तरह 20.13 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण सिर्फ कागजों में दिखा दिया गया, संभव है इस धनराशि को भी अधिकारियों द्वारा डकार लिया गया हो। इसके तहत लगभग 18.77 लाख की धनराशि ठिकाने लगाई गई। वन क्षेत्राधिकारी कार्यालय अल्मोड़ा में तो कैम्पा के तहत आवंटित धनराशि में से 13.51 लाख रुपये सोलर फेंसिंग पर बिना किसी स्वीकृति के खर्च कर डाले और टैक्स भुगतान के एवज में 56.97 लाख रुपए जीका प्रोजेक्ट को रिडायरेक्ट, मुख्य वन संरक्षक (CCF), सतर्कता और कानूनी प्रकोष्ठ का ऑफिस बनाने में ₹ 6.54 लाख रुपए खर्च कर डाले इतना ही नहीं बाघ सफारी परियोजनाएं, कानूनी शुल्क, व्यक्तिगत यात्रा, आईफोन, लैपटॉप, फ्रिज, और कार्यालय आपूर्ति की खरीद पर तो करीब ₹13.86 करोड़ रूपये खर्च किए गए।
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श्रमिकों के लिए खरीदी साइकिलें भी कागजों में ही मिली लाभान्वितों को, कोरोना काल में राशन किट तक का‌ पैसा खा गए अधिकारी:-

uttarakhand CAG REPORT 2025 latest news इतना ही नहीं पिछली कैग रिपोर्टों (वर्ष 2006 और वर्ष 2012) के दौरान सामने आई कैम्पा की करीब 212.28 करोड़ रुपए धनराशि की वित्तीय अनियमितताओं की वसूली भी अभी तक संबंधित अधिकारियों से नहीं की गई। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा किए उक्त दोनों आडिटो में प्रधान सचिव के निवास के पुनर्निर्माण, सरकारी आवासों के रखरखाव और वाहनों की खरीद जैसे गैर-पर्यावरणीय खर्चों पर 12.26 करोड़ रुपये, बजट बैठकों में लंच, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में उत्सव समारोह पर 35 लाख रुपये समेत अन्य अनावश्यक खर्चों पर कुल 6.14 करोड़ रुपये, अस्वीकृत परियोजनाओं पर 2.13 करोड़ जबकि स्वीकृत सीमा से परे 3.74 करोड़ रुपये की धनराशि का अपव्यय सामने आया था। ये वित्तीय अनियमितता केवल वन विभाग में ही सामने नहीं आई बल्कि इसमें श्रमिक कल्याण बोर्ड की कार्य प्रणाली पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2017 से 2021 के बीच श्रमिक कल्याण बोर्ड ने सरकार की बिना अनुमति के 607 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। यहां कागजों में श्रमिकों के लिए 33.23 करोड़ रुपए से 22426 टूल किट खरीदी गई लेकिन इनमें से महज 171 टूल किट ही लाभार्थियों तक पहुंची बाकी 22255 टूल किटें हवा-हवाई हो गई, इनका कोई रिकार्ड ही नहीं मिला इसी तरह श्रम विभाग द्वारा खरीदी गई 83560 साइकिलों में भी काफी अनियमिताएं देखने को मिली देहरादून में जहां 37 हजार में से महज 6 हजार लोगों को ही साइकिल वितरित की गई । ऊधम सिंह नगर में करीब 250-300 लाभान्वित श्रमिकों को 2-2, 3-3 बार साइकिल वितरित करने का मामला सामने आया। अब ये साइकिल वास्तव में भी वितरित की गई या केवल कागजों में ही दुबारा तिबारा दिखा दी गई, ये तो आपको खुद ही समझना पड़ेगा। यह खेल रही नहीं रूका बल्कि कोरोना महामारी के दौरान श्रमिकों को दी जाने वाली राशन किट का पैसा भी श्रम विभाग के सरकारी अधिकारी डकार गए। ये राशन किटें 9.36 करोड़ रुपए से खरीदी गई लेकिन इसमें भी राशन किटें श्रम विभाग में पंजीकृत श्रमिकों तक पहुंच ही नहीं पाई। बात अगर स्वास्थ्य विभाग की करें तो यहां भी बेहद गड़बड़झाला देखने को मिला है नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के लेखा परीक्षा दल द्वारा अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि राज्य के कतिपय सरकारी अस्पतालों में करीब 34 एक्सपायर हो चुकी दवाइयों का स्टॉक पाया गया है। इनमें कुछ दवाइयां ऐसी भी थी जिनकी एक्सपायरी डेट 2 साल से भी पहले खत्म हो चुकी थी। बावजूद इसके एक्सपायर हो चुकी दवाओं का स्टॉक बना रहा। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 70% और मैदानी इलाकों में करीब 50% पद खाली हैं। पहाड़ की स्वास्थ्य व्यवस्था को सटीक आईना दिखाती इस रिपोर्ट को देखकर यह तो साफ हो ही जाता है कि आखिरकार क्यों पहाड़ी क्षेत्रों के सरकारी अस्पताल महज रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। इतना ही नहीं 250 डॉक्टर ऐसे भी हैं कोरोना महामारी के दौरान लाकडाउन के नियमों का उल्लंघन करने के बावजूद भी कार्यरत रहने की अनुमति दी गई हैं। सरकार की भ्रष्टाचार मुक्त एवं ईमानदार नीतियों पर कड़ा प्रहार करती इस रिपोर्ट के सम्मुख आने के पश्चात भी राज्य के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा इतने प्रमुख मुद्दे पर आवाज बुलंद न कर पाना समझ से परे है। हरित उत्तराखण्ड की बात करती सरकार और उसके नेताओं की हीलाहवाली और अधिकारियों के रवैए को उजागर करती इस रिपोर्ट पर अभी तक राज्य के मुख्यमंत्री की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया ना आना बेहद चिंता का विषय है। इस विषय में अपनी सरकार में जीरो टॉलरेंस का दंभ भरने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से भी सवाल पूछा जाना लाजिमी है कि उनकी नाक के नीचे इतना बड़ा खेल हो गया और वे सोते रहे। हालांकि वन मंत्री सुबोध उनियाल द्वारा अपने विभाग में हुई इस वित्तीय अनियमितता के जांच के आदेश दिए हैं परंतु जांच और समितियों का खेल तो उत्तराखंड में चलता ही रहता है इनकी रिपोर्टें न तो आज तक सार्वजनिक हुई हैं और ना ही भविष्य में कभी सार्वजनिक हो पाएंगी बाकी क्यों और कैसे ये सब‌-कुछ तो जनता जानती ही हैं।
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