उत्तराखण्ड CAG रिपोर्ट: वनों श्रमिकों का पैसा भी डकार गए अधिकारी खरीदें करोड़ों के आईफोन लैपटॉप
श्रमिकों के लिए खरीदी साइकिलें भी कागजों में ही मिली लाभान्वितों को, कोरोना काल में राशन किट तक का पैसा खा गए अधिकारी:-
uttarakhand CAG REPORT 2025 latest news इतना ही नहीं पिछली कैग रिपोर्टों (वर्ष 2006 और वर्ष 2012) के दौरान सामने आई कैम्पा की करीब 212.28 करोड़ रुपए धनराशि की वित्तीय अनियमितताओं की वसूली भी अभी तक संबंधित अधिकारियों से नहीं की गई। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा किए उक्त दोनों आडिटो में प्रधान सचिव के निवास के पुनर्निर्माण, सरकारी आवासों के रखरखाव और वाहनों की खरीद जैसे गैर-पर्यावरणीय खर्चों पर 12.26 करोड़ रुपये, बजट बैठकों में लंच, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में उत्सव समारोह पर 35 लाख रुपये समेत अन्य अनावश्यक खर्चों पर कुल 6.14 करोड़ रुपये, अस्वीकृत परियोजनाओं पर 2.13 करोड़ जबकि स्वीकृत सीमा से परे 3.74 करोड़ रुपये की धनराशि का अपव्यय सामने आया था। ये वित्तीय अनियमितता केवल वन विभाग में ही सामने नहीं आई बल्कि इसमें श्रमिक कल्याण बोर्ड की कार्य प्रणाली पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2017 से 2021 के बीच श्रमिक कल्याण बोर्ड ने सरकार की बिना अनुमति के 607 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। यहां कागजों में श्रमिकों के लिए 33.23 करोड़ रुपए से 22426 टूल किट खरीदी गई लेकिन इनमें से महज 171 टूल किट ही लाभार्थियों तक पहुंची बाकी 22255 टूल किटें हवा-हवाई हो गई, इनका कोई रिकार्ड ही नहीं मिला इसी तरह श्रम विभाग द्वारा खरीदी गई 83560 साइकिलों में भी काफी अनियमिताएं देखने को मिली देहरादून में जहां 37 हजार में से महज 6 हजार लोगों को ही साइकिल वितरित की गई । ऊधम सिंह नगर में करीब 250-300 लाभान्वित श्रमिकों को 2-2, 3-3 बार साइकिल वितरित करने का मामला सामने आया। अब ये साइकिल वास्तव में भी वितरित की गई या केवल कागजों में ही दुबारा तिबारा दिखा दी गई, ये तो आपको खुद ही समझना पड़ेगा। यह खेल रही नहीं रूका बल्कि कोरोना महामारी के दौरान श्रमिकों को दी जाने वाली राशन किट का पैसा भी श्रम विभाग के सरकारी अधिकारी डकार गए। ये राशन किटें 9.36 करोड़ रुपए से खरीदी गई लेकिन इसमें भी राशन किटें श्रम विभाग में पंजीकृत श्रमिकों तक पहुंच ही नहीं पाई। बात अगर स्वास्थ्य विभाग की करें तो यहां भी बेहद गड़बड़झाला देखने को मिला है नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के लेखा परीक्षा दल द्वारा अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि राज्य के कतिपय सरकारी अस्पतालों में करीब 34 एक्सपायर हो चुकी दवाइयों का स्टॉक पाया गया है। इनमें कुछ दवाइयां ऐसी भी थी जिनकी एक्सपायरी डेट 2 साल से भी पहले खत्म हो चुकी थी। बावजूद इसके एक्सपायर हो चुकी दवाओं का स्टॉक बना रहा। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 70% और मैदानी इलाकों में करीब 50% पद खाली हैं। पहाड़ की स्वास्थ्य व्यवस्था को सटीक आईना दिखाती इस रिपोर्ट को देखकर यह तो साफ हो ही जाता है कि आखिरकार क्यों पहाड़ी क्षेत्रों के सरकारी अस्पताल महज रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। इतना ही नहीं 250 डॉक्टर ऐसे भी हैं कोरोना महामारी के दौरान लाकडाउन के नियमों का उल्लंघन करने के बावजूद भी कार्यरत रहने की अनुमति दी गई हैं। सरकार की भ्रष्टाचार मुक्त एवं ईमानदार नीतियों पर कड़ा प्रहार करती इस रिपोर्ट के सम्मुख आने के पश्चात भी राज्य के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा इतने प्रमुख मुद्दे पर आवाज बुलंद न कर पाना समझ से परे है। हरित उत्तराखण्ड की बात करती सरकार और उसके नेताओं की हीलाहवाली और अधिकारियों के रवैए को उजागर करती इस रिपोर्ट पर अभी तक राज्य के मुख्यमंत्री की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया ना आना बेहद चिंता का विषय है। इस विषय में अपनी सरकार में जीरो टॉलरेंस का दंभ भरने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से भी सवाल पूछा जाना लाजिमी है कि उनकी नाक के नीचे इतना बड़ा खेल हो गया और वे सोते रहे। हालांकि वन मंत्री सुबोध उनियाल द्वारा अपने विभाग में हुई इस वित्तीय अनियमितता के जांच के आदेश दिए हैं परंतु जांच और समितियों का खेल तो उत्तराखंड में चलता ही रहता है इनकी रिपोर्टें न तो आज तक सार्वजनिक हुई हैं और ना ही भविष्य में कभी सार्वजनिक हो पाएंगी बाकी क्यों और कैसे ये सब-कुछ तो जनता जानती ही हैं।
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