Ringal Handicrafts Self Employment: चमोली के राजेंद्र बडवाल ने रिंगाल को बनाया अपना स्वरोजगार, अब मुंबई तक मिल गई बड़ी पहचान
जहां एक ओर इस तथ्य से हर कोई वाकिफ हैं कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी अपने प्रदेश के काम नहीं आ रही है। लगातार खाली होते गांव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। अब तक किए गए अनेकों सर्वे रिपोर्टों में पलायन का सबसे बड़ा कारण रोजगार को बताया गया है वहीं राज्य के कुछ मेहनती और लगनशील युवा ऐसे भी हैं जो स्वरोजगार की दिशा में कदम बढ़ाकर पहाड़ पर लगे इस दंश को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। आज हम आपको राज्य के एक और ऐसे ही होनहार युवा से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो अपने पुस्तैनी रिंगाल हस्तशिल्प को स्वरोजगार का माध्यम बनाकर न सिर्फ अपनी आजीविका चला रहे हैं बल्कि स्वरोजगार के प्रेरणास्रोत बनकर गांव के अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं। जी हां… हम बात कर रहे हैं मूल रूप से राज्य के चमोली जिले के रहने वाले राजेंद्र बडवाल की। सबसे खास बात तो यह है कि प्लास्टिक का विकल्प बन रहे रिंगाल हस्तशिल्प से बनाए गए उत्पादों के कारण राजेंद्र आज उत्तराखंड के साथ ही दिल्ली, मुम्बई, चंडीगढ़ आदि महानगरों में भी अपनी खासी पहचान बना चुके हैं। यहां भी लोगों द्वारा उनके द्वारा बनाए गए रिंगाल के उत्पादों को हाथों-हाथ लिया जा रहा है।(Ringal Handicrafts Self Employment)
प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के चमोली जिले के दशोली ब्लाक के किरूली गांव निवासी राजेंद्र बडवाल ने पारंपरिक एवं पुस्तैनी रिंगाल हस्तशिल्प को अपने स्वरोजगार का जरिया बनाकर इसमें महारत हासिल की है। बता दें कि एक आर्थिक रूप से काफी कमजोर किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजेंद्र ने न केवल पीजी कालेज गोपेश्वर से एमए की डिग्री हासिल की है बल्कि 2010 में देहरादून से बीएड भी किया है। परंतु राज्य के अन्य बेरोजगार युवाओं की तरह राजेंद्र के इन शिक्षित हाथों को जब सरकारी नौकरी हासिल नहीं हुई तो उन्होंने दूसरे जगह नौकरी करने से बेहतर अपने पुस्तैनी रिंगाल हस्तशिल्प को ही आजिविका का जरिया बनाने का निश्चय किया। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण बचपन से ही रिंगाल हस्तशिल्प की बारिकियों से वाकिफ राजेंद्र ने शुरुआत में रिंगाल से टोकरियां, कंडी और चटाई बनानी शुरू की तथा इसके साथ ही गांव के बड़े बुजुर्गो से रिंगाल हस्तशिल्प की तमाम तकनीकियों के बारे में सीखा। इतना ही नहीं इसके अतिरिक्त उन्होंने खुद ही नए-नए डिजाइन तैयार किए।
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बता दें कि वर्तमान में राजेंद्र रिंगाल से कलमदान, लैंप सेड, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोकरी, टोपी, स्ट्रैं आदि बनाकर महानगरों में पहुंचा रहे हैं। जिसे लोगों द्वारा खासा पसंद भी किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ, तुगनाथ, गोपीनाथ मंदिर सहित कई मंदिरों को रिंगाल की हस्तशिल्प से तैयार कर उन्हें बाजार तक पहुंचा रहे हैं। उनकी कड़ी मेहनत रंग भी लाने लगी है, जिसके कारण उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों की डिमांड दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यहां तक कि इंडोनेशिया और मॉरिशस आदि देशों से भी डिमांड आने लगी है। इतना ही नहीं राजेंद्र इसके अलावा अन्य लोगों को भी रिंगाल की बारिकियों से रूबरू करा रहे हैं। वह अब तक राज्य के चमोली, गोपेश्वर, पीपलकोटी, कोटद्वार, देहरादून सहित हिमाचल प्रदेश में भी लोगों को रिंगाल हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दे चुके हैं।