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Uttarakhand news: Some youth making funny videos of jagar on social media for get followers and fame. Uttarakhand jagar social media.

उत्तराखण्ड विशेष तथ्य

संपादकीय

उत्तराखंड: कुछ युवाओं ने फॉलोवर्स के चक्कर में दांव पर लगा दी अपनी लोक परंपरा ‘जागर’

Uttarakhand jagar social media: उत्तराखंड के युवा फेमस होने के लिए जागर के नाम पर खुद उड़ा रहे हैं अपनी संस्कृति का मजाक, फालोवर्स पाने के लिए अपनी ही सभ्यता संस्कृति को धकेल रहे हाशिए पर..

यह बात पुरातन समय से ही शत प्रतिशत सत्य है कि अपनी भाषाओं, लोक संस्कृति, सभ्यता एवं रीति रिवाजों को सहेजने की पूरी जिम्मेदारी हमारी और हमारे समाज की ही होती है। इसका ताजा उदाहरण उत्तराखण्ड की पारंपरिक लोक संस्कृति जागर और उस पर होने वाले देवताओं का अवतरण है। जिसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों के समय से चली आ रही लोक परंपराओं को संजोए रखते हैं। भले ही हम यदाकदा यह कहते रहते हों कि मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोग जो हमारी इस लोक संस्कृति के महत्व को नहीं समझते है, वो हमारी इस परंपरा, हमारे विश्वास का मजाक उड़ाते रहते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि इसके जिम्मेदार हम स्वयं है। पहाड़ के ही कुछ युवा जरा सी प्रसिद्धि पाने और अपने फालोवर्स बढ़ाने के लिए जागर के मजाकिया विडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहे हैं। जहां पहाड़ों में रहने वाले लोगों की आज भी अपनी इस संस्कृति में अगाध आस्था है वहीं पहाड़ के ऐसे युवा की इन करतूतों से उनकी भावनाएं भी आहत‌ हो रही है।
(Uttarakhand jagar social media)
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बता दें कि थाली, कनस्तर एवं डफली की थाप पर जागर लगाकर देवताओं के अवतरित होने का मजाकिया विडियो पहाड़ के ऐसे युवाओं द्वारा सोशल मीडिया पर अपलोड किए जा रहे हैं जो न केवल निंदनीय है बल्कि अपने पैरों में खुद कुल्हाड़ी मारने वाली कहावत को भी सही साबित कर रहा है। मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले उन लोगों को बेशक क्षमा किया जा सकता है जो हमारी संस्कृति से परिचित ना होने के कारण हमारा मजाक उड़ाते हैं लेकिन पहाड़ की अपनी इस धरोहर को खुद हासिये पर धकेलने वाले युवाओं की ये काली करतूतें माफी के काबिल नहीं है। बताते चलें कि सोशल मीडिया पर इस तरह की फनी वीडियोज और रील्स की बाढ़ सी आई हुई है जिसमें उत्तराखंड लोकदेवताओं की खूब खिल्ली उड़ाई जा रही है। एक वीडियो में तो कोई युवती भी गंगनाथ बाबा के जागर पर वीडियो बनाती नजर आ रही है। आखिर थोड़े से फॉलोवर और प्रसिद्धि पाने के लिए किस तरफ जा रहे हैं हमारे उत्तराखंड के युवा जो यहां की लोक संस्कृति और लोक परंपराओं को खुद ही दांव पर लगा रहे हैं।
(Uttarakhand jagar social media)
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यहां यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा कि अपनी धरोहर संस्कृति को किस तरह संजोया जा सकता है यह बीते दिनों रिलीज हुई ऋषभ शेट्टी की फिल्म ‘कांतारा’ से आसानी से समझा सकता है। इस फिल्म की कहानी पवित्र रीति-रिवाजों और परंपराओं, छिपे हुए खजाने और पीढ़ीगत रहस्यों पर आधारित है। इसी के आधार पर बीते दिनों उत्तराखंड मूल की मशहूर पत्रकार मीनाक्षी कंडवाल ने भी इस विषय पर चिंता व्यक्त करते हुए पहाड़ की संस्कृति का मजाक उड़ानें वाले युवाओं से कांतरा जैसी फिल्मों से सीख लेनी की अपील की थी। अंत में कुछ चंद सवालों के साथ हम आपको छोड़कर जा रहे हैं कि क्या कांतरा जैसी फिल्में उत्तराखण्ड में नहीं बन सकती, क्या हमारे युवा पहाड़ की सभ्यता संस्कृति को हाशिए में धकेलने के बजाय उसे सहेजने का प्रयास नहीं कर सकते, क्या हमें ऐसे युवाओं को रोकने के लिए कोई मुहिम नहीं चलानी चाहिए। सोचिएगा जरूर!
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