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Uttarakhand private school fee
सांकेतिक फोटो Uttarakhand private school fee

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देहरादून

उत्तराखण्ड: प्राइवेट स्कूल डाल रहें अभिभावकों की जेब में डाका एक साथ कैसे भरें 2 महीनों की फीस

Uttarakhand private school fee: देहरादून के निजी स्कूलों की फीस वसूली पर अभिभावकों का आक्रोश: दो माह की अग्रिम फीस ने बढ़ाई चिंता

Uttarakhand private school fee: गर्मियों की छुट्टियों के बीच देहरादून के कई निजी स्कूलों द्वारा मई और जून की फीस एक साथ वसूलने के निर्णय ने अभिभावकों को आर्थिक संकट में डाल दिया है। पहले से ही बढ़ी हुई फीस, किताबों और यूनिफॉर्म के खर्चों से जूझ रहे माता-पिता अब दो माह की अग्रिम फीस भरने को मजबूर हैं, जिससे उनका आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
अभिभावकों की आपत्ति: “छुट्टियों में पढ़ाई नहीं, फिर फीस क्यों?”
अभिभावकों का कहना है कि जब गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों की पढ़ाई नहीं होती, तो दो माह की फीस एक साथ वसूलना अनुचित है। वे पहले ही अप्रैल में बढ़ी हुई फीस के साथ-साथ किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के खर्चों का सामना कर चुके हैं। अब दो माह की अग्रिम फीस ने उनकी आर्थिक स्थिति को और भी कठिन बना दिया है।
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प्रशासनिक हस्तक्षेप की मांग uttarakhand private school news:-

उत्तराखंड अभिभावक संघ के प्रदेश मंत्री मनमोहन जायसवाल ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा, “निजी स्कूलों का यह कदम अभिभावकों पर आर्थिक बोझ डाल रहा है। सरकार और शिक्षा विभाग को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।” उनका कहना है कि हाल ही में, देहरादून के कई निजी स्कूलों ने निर्धारित सीमा से अधिक फीस बढ़ाई थी, जिसके बाद जिला प्रशासन ने हस्तक्षेप किया और कुछ स्कूलों को फीस घटाने के निर्देश दिए। इसके बावजूद, दो माह की अग्रिम फीस वसूली ने अभिभावकों की चिंताओं को और बढ़ा दिया है।
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अभिभावकों की अपील: “सिर्फ पढ़ाई के दिनों की ही फीस ली जाए” uttarakhand private school holiday fees 

अभिभावकों का स्पष्ट कहना है कि फीस केवल उन दिनों की ली जानी चाहिए जब बच्चे वास्तव में स्कूल जाते हैं।
वे मांग कर रहे हैं कि शिक्षा विभाग इस मुद्दे पर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे और स्कूलों को अनावश्यक आर्थिक दबाव डालने से रोके। कुल मिलाकर देहरादून के निजी स्कूलों द्वारा दो माह की अग्रिम फीस वसूली ने अभिभावकों के बीच असंतोष और चिंता को बढ़ा दिया है। सरकार और शिक्षा विभाग से अपेक्षा की जा रही है कि वे इस मुद्दे पर शीघ्र और प्रभावी कार्रवाई करें, ताकि अभिभावकों को राहत मिल सके और शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता बनी रहे।
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Sunil

सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।

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