उत्तराखण्ड की ये जनजाति नहीं मनाती थी दीवाली, अब इस बार से मनाएगी नई दिवाली
नवरात्र से दशहरा भी मनाते है अलग अंदाज में नहीं जलाते रावण और मेघनाद के पुतले – जौनसार में हर त्योहार मनाने का अंदाज निराला है। जनजाति क्षेत्र में नवरात्र में दुर्गा के नौ रूपों में से सिर्फ अष्टमी यानि महागौरी की ही पूजा होती है। प्रत्येक परिवार में घर का मुखिया नवरात्र की अष्टमी को व्रत रखता है, दिन में हलवा-पूरी से मां का पूजन किया जाता है। जौनसारी भाषा में अष्टमी पूजन को आठों पर्व कहा जाता है। जौनसार बावर में एक परंपरा यह भी अनूठी है कि यहां पर दशहरा पर रावण, मेघनाद के पुतले नहीं जलाए जाते। यहां पर दहशरे को पाइंता पर्व के रूप में मनाया जाता है। जिसमें तरह तरह के व्यंजन चिवड़ा ,पिनवे, आदि बनाए जाते हैं। सामूहिक रूप से पंचायती आंगन में झेंता, रासो व हारुल नृत्य पर महिला व पुरुष समा बांधते हैं।
देशवासियों के साथ मनाएंगे दीवाली का त्योहार- जहाँ जौनसार-बावर क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली मनाने की परपंरा सदियों से चली आ रही है, वही अब यहाँ के लोग भी समय के साथ बदलना चाहते है ,और देशवासियों के साथ- साथ दीवाली के पर्व को मनाना चाहते है। बता दे की बीते मंगलवार को जौनसार के अठगांव खत से जुड़ी रंगेऊ पंचायत, सीढ़ी-बरकोटी, बिरपा-कांडीधार, पुनाह-पोखरी व बिजनू-चुनौठी समेत पांच पंचायत के लोगों की बरौंथा में महापंचायत बैठी। इसकी अध्यक्षता सदर स्याणा विजयपाल सिंह ने की। बैठक में चर्चा के बाद अठगांव खत के लोगों ने सदियों पुरानी जौनसारी बूढ़ी दीवाली को छोड़कर इस बार देशवासियों के साथ नई दीवाली मनाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।