घर वापस लौटे उत्तराखण्डी प्रवासियों (Uttarakhand migrant people) का हो रहा है ग्रामीणों द्वारा जमकर विरोध, अपने ही गांव में नहीं मिल रहा सम्मान..
शहरों की दुनिया जरूर चकाचौंध करने वाली होती लेकिन अपने गांव – घर जैसी अनुभूति शायद ही मिल सके, दरअसल हम बात कर रहे हैं शहरों में लाॅकडाउन की मार झेल चूके उन सभी प्रवासियों की जो अब अपने घर वापसी करने को मजबूर हैं लेकिन हालात ऐसे है की गावों में इनका स्वागत करने और हाल समाचार लेने की बजाय इनका विरोध किया जा रहा है। सरकार के इतने दिशा निर्देशों के बाद भी ऐसी खबरें आ रही है तो कहाँ कमी है प्रशासन की कार्यप्रणाली में या लोगों की मानसिकता में। जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी जिले के मसाल और मालती गांव की, जहां घर पहुंचे प्रवासियों (Uttarakhand migrant people) को लगातार ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अब इसे कोरोना वायरस का खौफ कहें या फिर इस महामारी के प्रति ग्रामीणों की जागरूकता। चाहे कुछ भी हो लेकिन प्रवासियों का इस तरह उनके गांव घर में विरोध होना गलत है।
सरकार को चाहिए प्रवासियों को 14 दिन संस्थागत क्वारंटीन करने के बाद ही भेजे घर:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के उत्तरकाशी जिले के मसाल गांव में वापस लौटे प्रवासियों को ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वैसे गावों में सामाजिक ताने-बाने के चलते ग्रामीण खुलकर तो प्रवासियों (Uttarakhand migrant people) का विरोध करने से बच रहे हैं परन्तु गांव में जगह-जगह इन्हीं की चर्चाएं हो रही है। जिसमें ये वाक्य साफ तौर पर सुना जा सकता है कि खुद तो वर्षों बाद गांव पधारे हैं, इस महामारी को भी अपने साथ लाए होंगे, अब इनसे हमें भी ये बिमारी फैलेगी। ये वाक्य प्रवासियों की भावनाओं को ठेस पहुचाने के लिए भी पर्याप्त है। बशर्ते मसाल गांव के ग्राम प्रधान इसे महज ग्रामीणों की जागरूकता बता रहे हों परन्तु प्रवासियों के साथ ऐसा व्यवहार बिल्कुल भी जायज नहीं है। ऐसा ही मामला मातली गांव का भी है, ग्राम प्रधान बबिता जोशी का कहना है कि गांव पहुंचे छह लोगों को उन्होंने होम क्वारंटाइन भेजा। परन्तु ग्रामीणों ने इसका विरोध करते हुए गांव से बाहर क्वारंटाइन करने की मांग की। इस बारे में शासन-प्रशासन को भी सोचना पड़ेगा कि प्रवासियों को 14 दिन फैसिलिटी क्वांरटीन करके गांव भेजा जाए जिससे उन्हें ग्रामीणों का ऐसा रूखा व्यवहार ना झेलना पड़े।