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फोटो सोशल मीडिया

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रूद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग की महिलाएं पिरूल से बना रही खूबसूरत राखियां, दूसरे राज्यों से भी आ रही भारी डिमांड

Uttarakhand pirul rakhi: रुद्रप्रयाग की महिलाएं पिरूल की पत्तियों से बना रही खूबसूरत राखियां, स्वरोजगार को दे रही बढ़ावा, 12 हजार से अधिक राखियां बेचकर रचा नया कीर्तिमान..

Uttarakhand pirul rakhi: देशभर में रक्षाबंधन का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि इस पर्व पर बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र और सुख ,समृद्धि की कामना करती है। इस त्यौहार के दौरान बाजारों में अक्सर रंग बिरंगी राखियां देखने को मिलती है जिन्हें बहने अपने भाइयों के लिए खरीद कर लाती है। इसी बीच उत्तराखंड की महिलाएं स्वरोजगार को बढ़ावा देते हुए पिरूल की पत्तियों से खूबसूरत राखियां बना रही है। जो न केवल पारंपरिक कला को संरक्षित कर रही हैं बल्कि स्थानीय महिलाओं की आर्थिक स्थिति को भी आत्मनिर्भर बना रही है। इस पहल से ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के नए अवसर तो मिल ही रहे हैं साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति में बेहतर सुधार हो रहा है।
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uttarakhand pirul product self-employment बता दें उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले के मणिगुह गांव की महिलाएं स्वरोजगार को बढ़ावा देते हुए पिरूल की पत्तियों से खूबसूरत राखियां बना रही हैं। जिसे वे हमारा गांव घर फाउंडेशन के सहयोग से भारत के कई शहरों में बेच रही हैं। ये राखियां न केवल भाई बहन के प्रेम को बढ़ावा देती है बल्कि तमाम लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने के साथ ही प्रकृति और पारंपरिक विरासत को भी खूबसूरती से संजोने का कार्य करती हैं। अपने पहले प्रयास में ही महिलाओं ने 12,000 से अधिक राखियां बेचकर सफलता हासिल की है। पिरुल का उपयोग उत्तराखंड में सजावटी सामान ,ग्रीन टी, टोकरी समेत अन्य चीजों को बनाने में होता जिससे हस्तशिल्प की कला को बढ़ावा मिलता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में भी इसका विशेष योगदान होता है। देशभर के लोगों को धीरे-धीरे पिरुल की उपयोगिता अब समझ आने लगी है। पिछले वर्ष भी पिरुल द्वारा निर्मित रखियों को देशभर में बेचा गया था ठीक इसी प्रकार इस वर्ष भी राखियां देश भर के प्रसिद्ध कलाकारों, फिल्मकारों समेत अन्य लोगों तक पहुंच रही है।
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इस संबंध में हमारा गांव घर फाउंडेशन के संस्थापक सुमन मिश्रा द्वारा बताया गया कि इस पहल में गांव की 8 महिलाओं ने भाग लिया जिनमें से पांच का काम विशेष रूप से सराहा गया और इस वर्ष करीब 12,000 पिरूल की राखियां बेची गई हालांकि समय कम था और महिलाओं ने एक महीने पहले ही प्रशिक्षण प्राप्त किया था बावजूद इसके उन्होंने सुंदर राखियां बनाई। जिन्हें उत्तराखंड समेत बिहार, गुजरात, राजस्थान ,हरियाणा ,मध्य प्रदेश और पंजाब जैसे विभिन्न राज्यों में खूब सराहा गया।

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Sunil

सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।

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