Hisalu fruit: जीभ में जाते ही पिघलने लगता है नाज़ुक सा पीला फल, आम बोलचाल की भाषा में जाना जाता है हिसालू के नाम से..
यूं ही नहीं उत्तराखण्ड की पावन धरती का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। बर्फ से ढकी सफेद पहाड़ियां, फलों से लदालद हरे भरे पेड़ और कड़ी धूप में मिलती बड़े बड़े पेड़ों की छांव न केवल यहां की वादियों को और भी अधिक हसीन बना देती है बल्कि प्रकृति प्रेमियों के साथ ही पर्यटकों का भी मन मोह लेते हैं। इतना ही नहीं यहां उगने वाली छोटी सी छोटी घास, जड़ी बूटियां, दालें और झाड़ियों एवं पेड़ों में लगने वाले फल न केवल कई बिमारियों में लाभप्रद है बल्कि इनके सेवन और लेपन से कई गम्भीर बिमारियों का भी उपचार किया जा सकता है। वैसे तो उत्तराखंड में बहुत से फल, सब्जियां, फूल एवं वनस्पति पाई जाती है परन्तु कंटीली झाड़ियों में लगने वाले हिसालू की बात ही कुछ अलग है। जी हां… यहां बात उसी नाज़ुक पीले फल की हो रही है जो हाथ लगते ही टूटने लगता है और जीभ में जाते ही पिघलने लगता है।
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भारत के सभी हिमालयी राज्यों के साथ ही कई देशों में पाया जाता है हिसालू, विश्व भर में पाई जाती है 1500 प्रजातियां, कई औषधीय गुणों से हैं भरपूर:-
उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाएं जाने वाले इस फल को आम बोलचाल की भाषा में हिसालू कहा जाता है। इसे हिमालय की रास्पबेरी भी कहा जाता है। इसका लेटिन नाम रुबस इलिप्टिकस (Rubus elipticus) है , जो कि Rosaceae कुल की झाड़ीनुमा वनस्पति है। विश्व में इसकी लगभग 1500 प्रजातियां पायी जाती है। बता दें कि भारत में यह उत्तराखण्ड के अलावा सभी हिमालयी राज्यों में उंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह नेपाल, पाकिस्तान, पोलैण्ड, सर्बिया, रूस, मेक्सिको, वियतनाम आदि देशों में भी पाया जाता है। बताते चलें कि हिसालू न केवल खाने में स्वादिष्ट होता है बल्कि इसके अनेक औषधीय गुण भी हैं। वैज्ञानिकों द्वारा हिसालू को एंटीआक्सीडेंट प्रभावों से युक्त पाया गया है। बात हिसालू के औषधीय गुणों की करें तो इसकी ताजी जड़ों के रस का प्रयोग जहां पेट से जुड़ी बिमारियों के उपचार के लिये किया जाता है वहीं हिसालू के दानों से प्राप्त रस का प्रयोग बुखार, पेट दर्द, खांसी एवं गले के दर्द में भी लाभकारी होता है। इतना ही नहीं आयुर्वेदिक एवं तिब्बती चिकित्सा पद्धति में हिसालू की छाल का प्रयोग सुगन्धित एवं कामोत्तेजक प्रभाव के लिए किया जाता है।
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ज्येष्ठ (जेठ) यानी मई-जून के महीने में पूरी तरह पककर तैयार होता है हिसालू, कविवर गुमानी पंत की इन बेहतरीन पंक्तियों के बिना अधूरा है हिसालू का जिक्र:-
बता दें कि अधिकांश स्थानों पर पीले रंग (हल्का नारंगी) का हिसालू ही पाया जाता है, जो कि खाने में हल्का खट्टापन लिए मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। इसके अतिरिक्त विश्व में इसकी काले रंग की अन्य प्रजाति भी पाई जाती है, जो कि अमूमन देखने को नहीं मिलती है। राज्य के नैनीताल, पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर, अल्मोड़ा के साथ ही गढ़वाल मंडल के विभिन्न पर्वतीय जनपदों पौड़ी, चमोली, उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग आदि स्थानों में पाया जाने वाला हिसालू का फल आमतौर पर जेठ के महीने (मई-जून) में पककर तैयार होता है। बात जब हिसालू की हों और राज्य के आदि कवि गुमानी पंत की इन बेहतरीन पंक्तियों का जिक्र ना हो तो यह अधूरा सा प्रतीत होता है। प्रसिद्ध कवि गुमानी ने हिसालू के बारे में लिखा है:- हिसालू की जात बड़ी रिसालू,
जां जां जांछे उधेड़ि खांछे,
यो बात को कोइ गटो निमान,
दुध्याल की लात सौनी पड़ंछै।
(अर्थात:- हिसालू की नस्ल बड़ी गुस्से वाली है, जहां-जहां जाती है खरोंच देती है, तो भी कोई इस बात का बुरा नहीं मानता, क्योंकि दूध देने वाली गाय की लात सहनी ही पड़ती है।)
एक अन्य जगह पर हिसालू को अमृत तुल्य बताते हुए कवि गुमानी पंत ने लिखा है:- छनाई छन् मेवा रत्न सगला पर्वतन में,
हिसालू का तोपा छन बहुत तोफा जनन में.
पहर चौथा ठंडा बखत जनरो स्वाद लिण में,
अहो मैं समझछुं अमृत लग वस्तु क्या हुनलो।
(अर्थात:- पर्वतों में अनेक रत्न हैं, हिसालू की बूंदे उनमें तोहफे हैं. चौथे पहर में इनका ठंडा स्वाद लेने में, मुझे लगता है कि अमृत जैसी वस्तु इसके सामने क्या हुई)
(Hisalu fruit)
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