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उत्तराखंड: चामा गांव की लीला औद्योगिक अनुसंधान परिषद में वैज्ञानिक के लिए चयनित

Leela Chauhan scientist CSIR: लीला ने विपरीत परिस्थितियों से जूझ कर कड़ी मेहनत से हासिल किया मुकाम, काफी प्रेरणादाई है उनकी सफलता का यह सफर…

Leela Chauhan scientist CSIR
“दर्द सबके एक है,
मगर हौंसले सबके अलग-अलग है,
कोई हताश हो के बिखर गया
तो कोई संघर्ष करके निखर गया!”

इन चंद पंक्तियों को एक बार फिर सही साबित कर दिखाया है देवभूमि उत्तराखंड की एक और होनहार बेटी ने। वैसे तो उत्तराखंड की होनहार बेटियां आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं परन्तु जब कोई बेटी विषम परिस्थितियों से जूझते हुए अपनी काबिलियत का डंका बजाकर दूसरे के लिए प्रेरणास्रोत बन जाए तो उसकी यह सफलता क‌ई मायनों में खास हो जाती है। आज हम आपको राज्य की एक और ऐसी ही होनहार बेटी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिनका चयन वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR-CFTRI, मैसूर) में वैज्ञानिक के पद पर हो गया है। जी हां… हम बात कर रहे हैं मूल रूप से राज्य के देहरादून जिले के जौनसार बावर क्षेत्र की रहने वाली लीला चौहान की। लीला की इस अभूतपूर्व उपलब्धि से जहां उनके परिवार में हर्षोल्लास का माहौल है वहीं उन्हें बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है।
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देवभूमि दर्शन से खास बातचीत:-

Leela Chauhan Chakrata Uttarakhandदेवभूमि दर्शन से खास बातचीत में लीला ने बताया कि वह मूल रूप से राज्य के देहरादून जिले के जौनसार बावर के चकराता तहसील क्षेत्र के चामा गांव की रहने वाली है। उन्होंने खेतो में हल चलाने के साथ साथ पढ़ाई में भी कड़ी मेहनत कर यह मुकाम हासिल किया है। बता दें कि अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही स्कूल से प्राप्त करने वाली लीला ने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा नवोदय विद्यालय उत्तरकाशी से उत्तीर्ण की है । इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत उन्होंने पंतनगर कृषि विश्व विद्यालय में एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में ग्रेज्युएट की उपाधि हासिल की। इसके बाद उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से एमटेक और फिर पीएचडी की मानक उपाधि प्राप्त की। बताते चलें कि उन्होंने बीटेक की पढ़ाई बैंक से लोन लेकर पूरी की वहीं एमटेक की पढ़ाई स्कालरशिप से तथा पीएचडी की डिग्री नेशनल फैलोशिप फॉर हायर एजुकेशन के माध्यम से हासिल की।
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Leela Chauhan Jaunsar Uttarakhand
बता दें कि एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली डॉ लीला को इससे पूर्व भी वर्ष 2019 में न केवल उत्तराखण्ड स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी की ओर से यंग साइंटिस्ट अवार्ड से नवाजा जा चुका है बल्कि दो वर्ष पूर्व उनका चयन बिहार के शिवहर जिले में स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र में सब्जेक्ट मैटर स्पेशिलिस्ट के पद पर भी हो चुका है और बीते दो वर्षों से वह यहीं कार्यरत हैं। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए लीला बताती है कि सबसे छोटे भाई के आकस्मिक देहांत के बाद जब पूरा परिवार टूट चुका था उसके बावजूद भी उन्होंने अपने हौसलों को टूटने नहीं दिया और इन विषम परिस्थितियों में भी किसी तरह अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखा। उनकी यह सफलता इसी का परिणाम है। वह बताती है कि एक दौर वो भी रहा जब इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नही थी तो उनके पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने के लिए अपने खेत तक बेच दिए। परिवार की इन विषम परिस्थितियों से जूझते हुए भी उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई जारी रखते हुए कदम कदम पर क‌ई ऊंचे मुकाम हासिल कर परिवार का मान बढ़ाया। यहीं कारण है कि आज उन्हें इतनी अभूतपूर्व उपलब्धि भी हासिल हुई है।

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