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pilot baba: महामंडलेश्वर महायोगी पायलट बाबा हुए ब्रह्मलीन, हरिद्वार में दी जाएगी भू समाधि

Pilot baba news uttarakhand: जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर एवं पायलट बाबा के नाम से मशहूर महायोगी कपिल अद्वैत सामनाथ गिरी ने मुंबई के एक अस्पताल में ली आखिरी सांस, भक्तों में दौड़ी शोक की लहर…

Pilot baba news uttarakhand इस वक्त की सबसे बड़ी खबर महाराष्ट्र से सामने आ रही है जहां जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर एवं पायलट बाबा के नाम से मशहूर महायोगी कपिल अद्वैत सामनाथ गिरी ब्रह्मलीन हो गए। उन्होंने 86 वर्ष की उम्र में मुंबई के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली। उनकी मौत की खबर से उनके भक्तों के साथ ही समूचे संत समाज में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके निधन की खबर सामने आने पर जूना अखाड़े ने तीन दिन का शोक घोषित कर दिया है । इस संबंध में जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरी गिरी महाराज ने मीडिया से बातचीत में बताया कि पायलट बाबा की अंतिम इच्छा के अनुसार उन्हें हरिद्वार में भूसमाधि दी जाएगी। आपको बता दें उत्तराखंड में पायलट बाबा के क‌ई आश्रम है। जिनमें नैनीताल जिले के हल्द्वानी से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर अल्मोड़ा-हल्द्वानी रोड पर तल्ला गेठिया नामक गांव में स्थित है। जहां भारत के साथ ही जर्मनी, जापान, इटली, रूस जैसे देशों से भी भक्तों का आना-जाना लगा रहता है।
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कौन थे पायलट बाबा pilot Baba nainital ashram:-

आपको बता दें पायलट बाबा का वास्तविक नाम कपिल सिंह था। उनका जन्म बिहार के रोहतास जिले के सासाराम में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। जिसके बाद वह भारतीय वायुसेना में चयनित हो ग‌ए थे। बतौर विंग कमांडर भारतीय वायुसेना में अपनी सेवाएं देने वाले 1962, 1965 और 1971 की लड़ाइयों में सम्मिलित हुए थे । जिसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया था। अपने संन्यास ग्रहण करने की बात पर सवाल पूछने पर वह बताते थे सन 1996 में जब वे मिग विमान भारत के पूर्वोत्तर में उड़ा रहे थे तब उनके साथ एक हादसा हुआ था। अचानक उनका विमान से नियंत्रण खो गया और इसी दौरान उन्हें उनके गुरु हरि गिरी महाराज के दर्शन प्राप्त हुए। जिसके बाद उन्होंने वहां से सुरक्षित निकाल लिया । इसी क्षण के बाद उन्हें वैराग्य प्राप्त हुआ। इसके तुरंत बाद उन्होंने विधिवत दीक्षा लेकर जूना अखाड़े में सम्मिलित होकर अपनी संन्यास यात्रा शुरू की। तदोपरांत वह 1998 में महामंडलेश्वर पद पर आसीन हुए , जिसके बाद वर्ष 2010 में उन्हें उज्जैन में प्राचीन जूना अखाड़ा शिवगिरी आश्रम नीलकंठ मंदिर में पीठाधीश्वर पद पर अभिषिक्त किया था।

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