Lata arya Alchaunaa village first SC women gram pradhan bhimtal nainital: इतिहास रच गईं लता आर्या, अलचौना को पहली बार मिली अनुसूचित जाति महिला प्रधान
Lata arya Alchaunaa village first SC women gram pradhan bhimtal nainital: उत्तराखण्ड में पंचायत चुनावों का समर अब थम चुका है। बीते रोज घोषित हुए चुनाव परिणामों में जनता ने कई युवाओं को अपने गांव अपने क्षेत्र की कमान सौंपी है। ऐसी ही एक खबर आज राज्य के नैनीताल जिले के भीमताल विकासखण्ड से सामने आ रही है जहां ग्राम पंचायत अलचौना में इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव एक ऐतिहासिक मोड़ लेकर आया। दरअसल इस ग्रामसभा में आज़ादी के बाद पहली बार किसी अनुसूचित जाति महिला ने प्रधान पद पर जीत दर्ज कर एक नई शुरुआत की है।
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लता आर्या ने 18 वोटों से हासिल की जीत lata Arya gram Pradhan Alchaunaa village
देवभूमि दर्शन को मिली जानकारी में बताया गया है लता आर्या नाम की इस सहज-सरल महिला ने सामान्य महिला के लिए आरक्षित सीट से ताल ठोकते हुए 289 मत प्राप्त किए और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जानकी भट्ट को 18 वोटों से हराकर जीत हासिल की। लता आर्या की यह जीत इसलिए भी अहम है क्योंकि इस चुनाव में हार का सामना करने वाली जानकी भट्ट पूर्व प्रधान की पत्नी हैं और लंबे समय से पंचायत राजनीति का हिस्सा रही हैं।
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6 उम्मीदवार थे मैदान में, लता को मिला जनसमर्थन
ग्रामीणों ने देवभूमि दर्शन से बातचीत में बताया कि अलचौना पंचायत में अब तक कभी भी अनुसूचित जाति महिला को प्रत्याशी बनने का अवसर नहीं मिला था, क्योंकि यह सीट कभी भी इस वर्ग के लिए आरक्षित नहीं की गई। इस बार भी निर्वाचन आयोग ने इसे सामान्य महिला के लिए आरक्षित किया था, लेकिन लता आर्या ने सामाजिक सीमाओं को चुनौती देते हुए चुनाव लड़ा और जीतकर मिसाल कायम कर दी। ग्रामसभा में कुल 6 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन जनभावनाएं इस बार परंपरा से हटकर सादगी और निष्ठा के साथ काम करने वाले प्रत्याशी की ओर झुक गईं।
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ग्रामवासियों का कहना है कि यह केवल चुनावी जीत नहीं, बल्कि वर्षों से उपेक्षित वर्ग के सामाजिक सशक्तिकरण की पहचान है। लता आर्या के चुनाव प्रचार में न तो कोई बड़ा राजनीतिक नेटवर्क था, न ही कोई खर्चीला तामझाम। उन्होंने हर घर तक पहुँच बनाकर ग्रामीणों की समस्याओं को सुना और यह भरोसा दिलाया कि वे किसी भी वर्ग के साथ भेदभाव नहीं करेंगी। लता आर्या का चुनाव जीतना इस बात का संकेत है कि अब ग्रामीण भारत की राजनीति में बदलाव की बयार बह रही है, जहाँ जातिगत समीकरणों से ज़्यादा जनता सेवा भावना और कार्यकुशलता को महत्व दे रही है।
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