उत्तराखण्ड की प्रथम लोकगायिका कबूतरी देवी अपनी अमर आवाज को देकर कह गयी अलविदा
बता दे की उनकी बिगड़ती हालत को देखकर डॉक्टरों ने हायर सेंटर रेफर किया था। लेकिन धारचूला से हवाई पट्टी पर हेलीकॉप्टर के न पहुंच पाने के कारण वह इलाज के लिए हायर सेंटर नहीं जा पाई। इस दौरान उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें वापस जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। जिसके बाद उनका निधन हो गया।
उन्होंने पहली बार लोकगीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रचारित और प्रसारित किया था।
जब इन्होंने आकाशवाणी पर गाना शुरू किया, जब तक कोई महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिए नहीं गाती थीं। 70 के दशक में इन्होंने पहली बार पहाड़ के गांव से स्टूडियो पहुंचकर रेडियो जगत में अपने गीतों से धूम मचा दी थी।
कबूतरी देवी ने आकाशवाणी के लिए करीब 100 से अधिक गीत गाए। उनके गीत आकाशवाणी के रामपुर, लखनऊ, नजीबाबाद और चर्चगेट, मुंबई के केन्द्रों से प्रसारित होते थे।
जंगलो में घास काट ते समय लगाती थी सुर और यही थी रिहर्सल-बता दे की पिथौरागढ़ के क्वीतड़ गांव की कबूतरी देवी ना तो किसी स्कूल कालेज में नहीं पढ़ी, न ही किसी से संगीत की शिक्षा दीक्षा ली बल्कि पहाड़ो के कठोर जीवन के बीच अपनी कला को एक नया रूप दिया।उस समय ना तो कोई टीवी या टेप था, बस रेडियो में जो गीत प्रसारित होते थे कबूतरी उन्हें सुनकर याद करती। जंगलो में घास काट ते समय इन्ही गीतों को अपने सुरो में गाया करती थी।
कबूतरी देवी हमे अपनी ये अमर आवाज देकर हमेशा के लिए इस देवभूमि से अलविदा कह गयी ⇓
देवभूमि दर्शन की ओर से कबूतरी देवी को सत सत नमन ओर भावपूर्ण श्रद्धांजलि।