Ankita bhandari murder case: आखिरकार ऐसी क्या मजबूरी थी कि अंकिता के अंतिम संस्कार के लिए हिंदू रीति रिवाजों को भी ताक पर रख दिया गया। क्या अंतिम संस्कार सोमवार सुबह नहीं हो सकता था?
रोते बिलखते, इंसानी भेड़ियों से जूझते हुए एक और बेटी आखिरकार हमेशा के लिए विदा हो गई। रविवार देर शाम भारी पुलिस फोर्स की मौजूदगी में श्रीनगर के एनआईटी घाट पर अंकिता का अंतिम संस्कार कर दिया गया। सच कहें तो एक बार फिर उत्तराखण्ड में वहीं इतिहास दोहराया गया जिसकी नींव पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के हाथरस में रखी गई थी। जी हां.. हाथरस की गैंगरेप पीड़िता की तरह उत्तराखण्ड की बेटी का भी अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाजों के विपरित सूर्यास्त के बाद किया गया। फर्क केवल इतना था कि हाथरस में देर रात को किया गया था और श्रीनगर में परिजनों की सहमति से देर रात को अंतिम संस्कार किया गया। बता दें कि रविवार सुबह अंकिता के पिता और भाई ने फाइनल रिपोर्ट आने तक अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था।(Ankita bhandari murder case)
आज अंकिता भले ही हम सब से हमेशा के लिए विदा हो चुकी है। परंतु जाते जाते भी वह कई ऐसे सवाल छोड़ गई है जिनका जबाव अब शायद ही मिल पाए। पहला सवाल तो यही हैं कि आखिरकार ऐसी क्या मजबूरी थी कि अंकिता के अंतिम संस्कार के लिए हिंदू रीति रिवाजों को भी ताक पर रख दिया गया। क्या अंतिम संस्कार सोमवार सुबह नहीं हो सकता था? जबकि सोमवार को एम्स से अंकिता की अंतिम पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने की पूरी उम्मीद है। ऐसे में पुलिस प्रशासन ने सोमवार तक रूकना क्यों मुनासिब नहीं समझा। आखिरकार पुलिस प्रशासन द्वारा परिजनों को बंद कमरे में ऐसी क्या घुट्टी पिलाई गई कि एक मासूम पिता, बेटी की मौत से बेसुध मां को अंतिम संस्कार के लिए अपनी हामी भरनी पड़ी। प्रशासन को ऐसा क्या डर था कि लोगों के आक्रोश के बावजूद परिजनों पर रविवार को ही अंतिम संस्कार का दबाव बनाया गया। सवाल तो यह भी है कि देर रात वंनत्रा रिजार्ट को ध्वस्त क्यों किया गया? सवाल बहुत सारे हैं, शायद भविष्य में इनके जबाव मिल पाए। खैर इसी उम्मीद के साथ हम आपको सवालों के इस भंवर में छोड़ते हैं कि भविष्य में किसी और बहन बेटी के साथ ऐसा ना हो।
(Ankita bhandari murder case)