उत्तराखंड- तीलू रौतेली सम्मान से सम्मानित बबीता रावत ने पहाड़ में ऐसे जगाई स्वरोजगार की अलख
सुबह शाम करती थी घर और खेत में काम, दिन में पांच किलोमीटर दूर पैदल पढ़ने जाती, अब शाक-सब्जियों के साथ ही कर रही मशरूम उत्पादन:-
बताते चलें कि कि मूल रूप से राज्य के रूद्रप्रयाग जिले के सौड़ उमरेला गाँव की रहने वाली बबीता रावत (Babita Rawat) को हाल ही में तीलू रौतेली सम्मान (Teelu Rauteli) से सम्मानित किया गया है। सात भाई-बहनो में सबसे बड़ी बबीता के संघर्षों की कहानी उस समय से शुरू होती है जब वह मात्र 13 वर्ष की थी। बात 2009 की है, जब बबीता के पिता सुरेन्द्र सिंह रावत की तबीयत अचानक खराब हो गई। पिता का स्वास्थ्य खराब होने पर परिवार की सारी जिम्मेदारी बबीता पर आ गई।
जिसे उसने बखूबी निभाया। 13 साल की उम्र में उसने हल पकड़ा और अब तक अपने पिता द्वारा निभाई जा रही सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। बबीता सुबह शाम खेती-बाड़ी करती और दिन में गांव से पांच किलोमीटर दूर राजकीय इंटर कॉलेज रूद्रप्रयाग में पढ़ने पैदल जाती।
खेती के साथ-साथ वह दूध भी बेचती। जिससे बबीता के परिवार की आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे संभलने लगी। पढ़ाई पूरी करने के बाद बबीता ने अब आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया है। पिछले दो वर्षों से वह सीमित संसाधनों के बावजूद मशरूम उत्पादन भी शुरू कर दिया है। वास्तव में बबीता के संघर्षों की कहानी उन सभी के लिए एक मिशाल है जो थोड़े से संकटों में परिस्थितियों के आगे घुटने टेक देते हैं।
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