बिच्छू घास (Bichoo ghas ) से हर्बल चाय (Herbal Tea) बनाकर भविष्य संवारने में जुटे पहाड़ के दान सिंह रौतेला, अमेजन से भी मिला है आर्डर..
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत तमाम नेता यदा-कदा कहते हुए सुनाई देते हैं कि हमें आपदा को अवसर में बदलना होगा परन्तु वास्तव में आपदा को अवसर में कैसे बदला जाता है ये कोई दान सिंह रौतेला से सीखें। जी हां.. राज्य के अल्मोड़ा जिले के रहने वाले दान सिंह रौतेला उन प्रवासियों में से एक है जिनकी लाकडाउन की वजह से नौकरी चली गई। घर लौटने के बाद वह भी अन्य प्रवासियों की तरह भविष्य के लिए काफी चिंतित थे। उन्होंने यह भी निश्चय कर लिया था कि अब गांव में रहकर ही कुछ करना है। कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बाद जब चारों तरफ रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का शोर सुनाई दे रहा था तो दान सिंह भी अन्य लोगों की तरह बुजुर्गों से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के पहाड़ी नुस्खे जानने लगे। गांव के बड़े बुजुर्गो से बात करने पर उन्हें बिच्छू घास (कंडाली) (Bichoo Ghas ) के बारे में पता चला कि इसमें भी रोग प्रतिरोधक बढ़ाने की क्षमता है। इस पहाड़ी नुस्खे के बारे में जानकार दान सिंह बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने न सिर्फ खुद इसे अमल में लाया बल्कि इसे एक अवसर के रूप में भी देखा और इसी को रोजगार का जरिया बनाकर इम्यूनिटी बूस्टर चाय(हर्बल टी) (Herbal Tea) बनाने लगे। जिसे लोगों द्वारा खासा पसंद भी किया जा रहा है। सबसे खास बात तो यह है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां इस उत्पाद में दिलचस्पी दिखा रही हैं। हाल ही में उन्हें अमेजन से भी डेढ़ सौ किलो चाय का आर्डर मिला है।
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लगातार बढ़ रही है दान सिंह द्वारा निर्मित हर्बल चाय की मांग, अब तक बेच चुके हैं 40 किलो चाय:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले के नौबाड़ा गांव निवासी दान सिंह रौतेला आजकल पहाड़ी बिच्छू घास से जायकेदार हर्बल चाय तैयार कर हजार रुपये प्रति किलो के दाम पर बेच रहे हैं। बता दें कि लाकडाउन से पहले दिल्ली मेट्रो में नौकरी कर अपनी आजीविका चलाने वाले दान सिंह के सामने भी लाकडाउन ने विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न की परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और गांव में रहकर ही भविष्य की संभावनाओं को तलाशने लगे। बड़े बुजुर्गो से बात करने के बाद उन्हें पता चला कि पहले गांव घरों में बिच्छू घास (कंडाली) की सब्जी और चाय को बड़े चाव से खाया-पिया जाता था। बुजुर्गों ने उन्हें यह भी बताया कि यह खाने-पीने में न सिर्फ बड़ी स्वादिष्ट होती थी बल्कि इसमें कई बिमारियों से लडने की क्षमता भी थी और तो और इसमें संक्रामक रोगों को खत्म करने की ताकत भी मानी जाती थी। बस फिर क्या था दान सिंह ने इसी को अपने रोजगार का जरिया बनाने का निश्चय किया। उन्होंने इस देवी नुस्खे पर कई प्रयोग किए और परिणाम अच्छा मिलने पर दान सिंह ने इसे जून के पहले सप्ताह में हर्बल चाय के रूप बाजार में उतारा और देखते ही देखते बाजार में इसकी मांग लगातार बढ़ने लगी। दिल्ली जैसे बड़े शहरों से दान सिंह को थोक खरीददार मिलने लगे। इसी का परिणाम है दान सिंह दो महीनों में ही 40 किलो कंडाली हर्बल चाय (Bichoo ghas herbal tea) बेच चुके हैं।
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