गढ़वाली कविता:- भूमि जिथे हम छों पुंजदा….abhinav dhuliya poem
भूमि जिथे हम छों पुंजदा;
देवभूमि जिथे सब छीं बुलदा,
इन भूमि कु हम छों निवासी;
इथे हम अपुर भाग्य छों मनदा।
ईंकी प्रकृति कु अपुर च मान;
करदा सभी यख बुजुर्गों कु सम्मान,
धोती कुरता मा जख पुरुष च सजदू;
वखी यख महिलाओं कू घाघरा च उडदू।
धबड़ी -भात, चेसुँ मा ईं भूमि कु;
असीम स्वाद च समयूँ,
वखी क्वाद की बाड़ी न सब;
व्यंजनों थे च बिसरयूँ ।
नरेन्द्र सिंह नेगी कि मिठी वाणी;
च ईं पहाडूँ मा गुँजती,
चौफाल झूमैलो की महफिल;
च बड़ी सुंदर यख सँजदी।
यखिक पहाड़ो कु हवा मा;
च अरसों कु मधुर मिठास,
यख बेटी -बहेणी छीं पुँजेदा;
देवतों सी खास।
जख हूँदी जगरी कु बुलाण पर;
दिवतों की नचैई,
वख ढोल -ढमाऊ और तुरई न;
अभी भी बरात च सजईं।
चरों धाम बडाँदा यखक की शान;
याँकू च हम उत्तराखंडियों ते अभिमान,
फुलों की घाटी ल यख आंद जान;
इ सभी बडाँदा उत्तराखंड ते महान।
हूँदी बग्वाल, संकृति, पंचमी मा;
हर घार मा खुशी अपार,
ई च म्यारु सुंदर पहाड़;
ई च म्यारु प्यारु घार।
रचना- अभिनव धूलिया
विद्यालय- ब्लूमिंग वेल पब्लिक स्कूल
पता- लालपानी (पल्ली), कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।
(abhinav dhuliya poem)
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तृतीय विजेता को
गिफ्ट हैंपर
देवभूमि दर्शन मीडिया
(काव्य संकलन प्रभाग)