कुमाऊंनी कविता- पहाड़क हिसाब….Kavita kaira poem
जिंदगी में एक किताब लिखुल
उमे कुछ अपुण सार पहाड़क हिसाब लिखुल
बदली हुयी अपुण पहाड़क बात लिखुल
अपुण पहाडक कुछ अनकही राज लिखुल
कुछ अपुण पहाड़क हालात लिखुल
जिंदगी में एक……
उमें ही सार पहाडेक बात लिखुल
जो कै ना सकी मैं अपुण पहाड़ में
उ सब जज्बात लिखुल
मी अपुण पहाड़ पर एक किताब लिखुल
उमें अपुण बाखेयी बन्द द्वार लिखुल
उ चै रयि गौं बाट और धार लिखुल
मी अपुण पहाड़ पर एक किताब लिखुल…
उमें अपुण नौ गद्दारक बगन पाणी
लिखुल
और उमें मी हैंडपंप वाल नलक फोड़ी उ पाणीक कलाट लें लिखुल
मी अपुण पहाड़ पर एक किताब लिखुल
जो छोडी गयी अपुण पहाड कु अपु रोटी खातीर
और कुन लाग रयि कब ज़ूल अपुण घर द्वारा
और कब जलूल चूल में आग भ्यार
उनरि यो बाणी ले लिखुल
मी अपुण पहाड़….
और उ बंद घर द्वारक,
जो चै रई बरसों बै गौ धारक,
सब हिसाब मैं अपुण किताब में लिखुल
ज़िंदगी में मैं इक किताब लिखुल ।
रचना- कविता कैड़ा, पता- बिन्ता, बगवालीपोखर, अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
(Kavita kaira poem)
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तृतीय विजेता को
गिफ्ट हैंपर
देवभूमि दर्शन मीडिया
(काव्य संकलन प्रभाग)