भारत घूमने आए इंग्लैंड बाबू के दिल में रच-बस गया उत्तराखण्ड का पहाड़ (Uttarkashi), बोला अद्भुत है यहां कि संस्कृति और वाकई सुंदर है पहाड़ का ग्रामीण जीवन..
देवभूमि उत्तराखंड की हसीन वादियां, हरियाली से आच्छादित ऊंचे-ऊंचे पहाड़ सदा से देश-विदेश के लोगों को आकर्षित करती रही है। आज हम आपको एक ऐसे ही विदेशी युवक से रूबरू करा रहे हैं जो आया तो पहाड़ घूमने था परंतु लॉकडाउन के कारण यही फस गया। जी हां.. हम बात कर रहे मूल रूप से इंग्लैंड के रहने वाले माइकल की, जो इन दिनों राज्य के उत्तरकाशी (Uttarkashi) जिले में लॉकडाउन के कारण फंसा हुआ है। लेकिन माइकल को इसका बिल्कुल भी मलाल नहीं बल्कि वह तो इसे अपना सौभाग्य मानता है कि लॉकडाउन के कारण ही सही उसे ना केवल पहाड़ी सभ्यता-संस्कृति जानने को मिलेगी बल्कि यहां की सुनहरी वादियों में भी वो ज्यादा समय व्यतीत कर पाएगा। इसी कारण आज माइकल पहाड़ी संस्कृति में इतना रच-बस गया है कि वह न केवल अब कुछ गढ़वाली शब्द बोलने लगा है बल्कि खेतो पर काम करके अपने स्थानीय दोस्त दिवाकर नैथानी की मदद भी कर रहा है। माईकल का कहना है कि प्राकृतिक रूप से समृद्ध इस क्षेत्र की स्वस्थ आबोहवा और यहां का मौसम उसे बहुत अच्छा लग रहा है और पहाड़ का ग्रामीण जीवन वाकई सुंदर है।
टूरिस्ट वीजा पर भारत आया था माइकल, क्षेत्र में इंग्लैंड बाबू के नाम से हो रहा मशहूर:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से इंग्लैंड का रहने वाला माइकल एडवर्ड बीते 14 फरवरी को टूरिस्ट वीजा पर भारत आया था। इंग्लैंड में वह एक होटल कारोबारी है तथा बीते दिनों वह उत्तराखण्ड की खूबसूरती की तारीफ सुनकर ऋषिकेश आया, जहां से वह 21 मार्च को उत्तरकाशी (Uttarkashi) जिले में पहुंचा और 22 मार्च से लॉकडाउन होने के कारण वहीं फंस गया। माइकल इन दिनों जिले के वरुणावत शीर्ष पर स्थित संग्राली गांव में है, जहां उसे स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा विमलेश्वर महादेव मंदिर में रखा गया है। शुरुआत में उसे इसी मंदिर में क्वारंटीन भी किया गया था। लेकिन समय बीतने के साथ उसे यहां की सभ्यता-संस्कृति भाने लगी और अब वह लॉकडाउन खुलने के बाद भी भविष्य में कुछ समय और यहां बिताना चाहता है। माइकल पूरे गांव में इंग्लैंड बाबू के नाम से मशहूर है, वह स्थानीय ग्रामीणों से इतना घुल-मिल गया है जैसे यही का मूल निवासी हों। माइकल मंदिर में रहते हुए न केवल मंदिर के पुजारी स्वामी चैतन्य गिरी महाराज की सेवा कर रहा है बल्कि मंदिर परिसर में फुलवारी तैयार करने के साथ ही जैविक खाद भी तैयार कर रहा है और साथ-साथ गढ़वाली भी सीख रहा है।