अल्मोड़ा के चितई में स्थित है गोलू देवता (Golu devta) का प्रसिद्ध धाम (Uttarakhand Temple), चिट्ठी लिखकर मांगी जाती है मुराद, लाखों की संख्या में बंधी घंटियां करती है भक्तों की मनोकामना पूरी होने का संकेत…
गोलू देवता के विषय में कहते है “ गोरी गंगा से निकले गोरिया नाम पड़ा, कंडी मैं पौडी लाये गये कंडोलिया नाम पड़ा , गागरी मैं गरूड लाये गये गागरी गोल नाम पड़ा , माता के दूध की परिक्षा पास की दूदाधारी नाम पड़ा, देवो, पितरो, भूतो, मसाडो, बयालो, जादू टोने का उचित न्याय किया न्यायकारी नाम पड़ा , पंचनाम देवो के धर्म भांजे हो अगवानी नाम पड़ा, पूरे उत्तराखण्ड, नेपाल, मैं अपना झंडा स्थापित किया राजाओ के राजा नाम पड़ा”।
वैसे तो आपने लोगो को मंदिरो में जाकर अपनी मुरादें मांगते देखा होगा, लेकिन उत्तराखंड के
अल्मोड़ा और
नैनीताल जिले में स्थित गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी भेजने मात्र से ही मुराद पूरी हो जाती है। इतना ही नहीं गोलू देवता लोगों को तुरंत न्याय दिलाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इस कारण इन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। अल्मोड़ा के चितई और नैनीताल जिले के भवाली में स्थित गोलू देवता के मंदिर में चिट्ठियों की भरमार देखने को मिलती है। प्रेम विवाह के लिए युवक-युवती गोलू देवता के मंदिर में जाते हैं। मान्यता है कि यहां जिसका विवाह होता है उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहता है। मंदिर में हजारो लोग दूर दूर से अपनी मनोकामनाएं लेकर आते है और जिसकी मनोकामना पूरी होती है वो अपनी खुशी से मंदिर में घंटी चढ़ाता है , तो ये सब घंटिया उन सभी लोगो की मनोकामना पूर्ण होने का ही एक सूचक है।
गोलू देवता के बारे में प्रचलित लोककथा: गोलू देवता या भगवान गोलू उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र की प्रसिद्ध पौराणिक देवता हैं। गढ़वाल मंडल के कुछ क्षेत्र में इन्हे ग्वेल देवता के रूप में जाना जाता है अल्मोड़ा स्थित गोलू देवता का चितई मंदिर बिनसर वन्य जीवन अभयारण्य से चार किमी दूर और अल्मोड़ा से दस किमी दूर है। मूल रूप से गोलू देवता को गौर भैरव (शिव ) के अवतार के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि वह कत्यूरी के राजा झाल राय और कलिद्रा की बहादुर संतान थे। ऐतिहासिक रूप से गोलू देवता का मूल स्थान चम्पावत में स्वीकार किया गया है। जनश्रुतियों के अनुसार चम्पावत में कत्यूरी व बंशीराजा झालूराई का राज था। उनकी सात रानियां थी। राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था । राज्य में चारो और खुशहाली थी। जहाँ हर तरफ खुशहाली का माहौल था वही राज्य में एक कमी थी , वो कमी थी की राजा की सात रानियाँ होते हुए भी उनका कोई पुत्र नहीं था। यही राजा का सबसे बड़ा दुःख था और वो हमेशा यही सोचते थे, कीअब इस गढ़ी चम्पवात में मेरा वंस आगे कैसे बढेगा , एक दिन राजा ने सोचा की क्यों ना इस विषय में अपने राज्य ज्योतिष से परामर्श लिया जाये। राजा परामर्श लेने के लिए ज्योतिष के पास गए ,और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई, राजा की बात सुन कर ज्योतिषी ने सुझाव दिया की आप भैर महाराज (भैरव देवता )को प्रसन्न करें, आपको अवश्य ही सन्तानसुख प्राप्त होगा। ज्योतिषी की बात मानते हुए राजा ने भैरव पूजा का आयोजन किया ।
राजा ने यज्ञ कर भैरव देवता को प्रसन्न करने का प्रयास किया, भैरव देवता ने राजा को सपने में दर्शन दिए और कहा की आप के भाग्य में सन्तान सुख नहीं है। अत: में स्वयं आप के पुत्र के रूप में जन्म लूँगा। इसके लिए आप को आठवीं शादी करनी होगी , जिससे आप को पुत्र रूप मेँ सन्तान सुख मिलेगा , राजा भैरव देवता द्वारा दिए इस वरदान से बेहद खुश हुए । एक दिन राजा शिकार के लिए जंगल की ओर निकले , शिकार को दुढ़ते दुढ़ते बहुत दूर निकल गए। चलते चलते जब राजा को पानी की प्यास लगी तो, राजा ने सेनिकों को पानी लाने भेज। बहुत देर होने पर भी जब कोई सेनिक नही आया तो राजा स्वयं पानी की तलाश में निकल पड़े। पानी दुढ़ते हुआ राजा को एक तालाब नजर आया, जब राजा तालाब के पास पहुंचते ही वो सन्न रह गए , की उनके सेनिक मुर्छित अवस्था में तालाब के किनारे पड़े हुए है । उसके बाद राजा स्वयं ही पानी के लिए अपने हाथ तालाब की और बढ़ाता है की अचानक तालाब से आवाज आती है , ये तालाब मेरा है यदि आप ने मेरी बात नही मानी तो आप का भी वही हाल होगा जो इन सेनिकों का हुआ है ।
यह भी पढ़े-उत्तराखण्ड के पाताल भुवनेश्वर गुफा में है कलयुग के अंत के प्रतीक
राजा ने जब सामने देखा तो एक बहुत सुन्दर नारी खड़ी थी, राजा ने उस नारी से कहा की में शिकार के लिए जंगल की ओर निकला था, और शिकार करते करते बहुत दूर निकल गया, जब पानी की प्यास लगी तो मेने सेनिको को पानी लेने के लिए भेजा, राजा ने परिचय देते हुए कहा की में चम्पावत का राजा झालुराय हु तब उस नारी ने कहा की मैं पंचदेव देवताओं की बाहें कलिंगा हूँ। रानी ने कहा मेँ कैसे मान लू आप चम्पावत के राजा है ,अगर आप राजा हैं – तो बलशाली भी होंगे ही , जरा उन दो लड़ते हुए भैंसों को छुडाओ तब मैं मानूंगी की आप गढी चम्पावत के राजा हैं। राजा ने जब उन भैंसों को लड़ते देखा तो कुछ समझ नही आया की आखिर इन्हे कैसे छुड़ाया जाय, राजा ने हार मान ली उसके बाद नारी ने स्वयं जाकर उन भैसों को छुड़ाया नारी के इस करतब पर राजा आश्चर्य चकित हो गए तभी वहाँ पंचदेव ने अपने दर्शन दिए और राजा ने उनसे कलिंगा का विवाह प्रस्ताव रखा , पंचदेव ने मिलकर कलिंगा का विवाह राजा के साथ कर दिया और राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया. कुछ समय बीतने के बाद राज की आठवीं रानी गर्भवती हुई। ये बात राजा की दूसरी रानियों को पसंद नही आई रानियों ने सोचा की यदि इसका पुत्र हो गया तो हमारा मान – सम्मान कम हो जायेगा और राजा भी हमसे अधिक प्रेम इससे ही करेगा। रानियों ने योजना बनाई, की उस रानी के पुत्र को जन्म लेते ही मार देंगे।
यह भी पढ़े-आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी (गंगोलीहाट)पिथौरागढ़ के हाट कालिका मंदिर की स्थापना
गोलू देवता का चमत्कार : जब पुत्र का जन्म होने वाल था तो ,आठवीं रानी के आँखों पर पट्टी बाध दी गई ,और जैसे ही पुत्र का जन्म हुआ तो उसको गोशाला में फेंक दिया गया और रानी के सामने लोंड सिलट (मसला पिसने का एक साधन ) रख दिया गया , जब रानी ने देखा की उसका पुत्र नही लोंड सिलट हुआ तो रानी बहुत दुखी हुई उस बच्चे को गोसाला में फेकने के बाद भी वह जिंदा था, सातों रानियों ने फिर उसे एक बक्से में बंद करके नदी में फेंक दिया , बक्सा नदी में तैरता हुआ एक मछवारे के जाल में फँस गया. जब मछवारे ने बक्सा खोला तो उसमे एक प्यारा बच्चा था , वह उस बच्चे को घर ले आया और उसका पालन पोषण किया, मछवारे नें उस बालक को एक कांठ( लकड़ी ) का घोड़ा दिया , बालक उस घोड़े को रोज पानी पिलाने के लिए नदी पर ले के जाता था। उसी नदी पर राजा की सातों रानियाँ भी आया करती थी। बालक जब घोड़े को पानी पिलाता तो, रानी कहती थी ,की कही काठ का घोड़ा भी पानी पीता है क्या? इस पर बालक का जवाब होता , क्या कभी औरत से भी लोड़ सिलट जन्म लेता है क्या ऐसा कहते ही रानियों चुप हो जाती , ये बात जब आठवीं रानी को पता चली तो रानी बालक से मिलने नदी पर गई। हर रोज की तरह वही हुआ बालक आया और अपने घोड़े को पानी पिलाने लग गया, सातों रानी ने भी वही कहा की काठ का घोड़ा भी पानी पीता है क्या ? बालक ने कहा क्या कभी औरत से भी लोड़ सिलट जन्म लेता है, ये बात कहते ही आठवीं रानी बोली तुम ऐसा क्यों कह रहे हो। बालक ने रानी को पुरी बात बताई की किस तरह मुझे मारने की कोशिश की गई , ये बात जब राजा को पता चली तो राजा ने सातों रानियों को फासी देने का हुक्म दे दिया। वह बालक बड़ा हो कर एक न्याय प्रिय राजा बना ,उन्ही को आज न्याय का देवता गोलू देवता कहा जाता है।