झलक आया गरीबी का दर्द, उस दौर का याद कर भावुक हुई वंदना(Vandana Katariya), बोलीं- एक जोड़ी जूते तक नहीं थे
टोक्यो ओलंपिक में धमाकेदार हैट्रिक का रिकॉर्ड बना कर वापस लौटी हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया का हरिद्वार चंद्राचार्य चौक पर लोगों ने जोरदार स्वागत किया। तीर्थनगरी हरिद्वार की बेटी और हॉकी की राष्ट्रीय खिलाड़ी वंदना कटारिया(Vandana Katariya) ने घर पहुंच कर कहा कि मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। हम लोग मेडल के बहुत नजदीक थे, मेडल नहीं जीत पाए। लेकिन हमने भारत में लोगों का दिल जीता है। मिडिया बातचीत में वंदना तब भावुक हो गई जब उन्हें वर्ष 2004 के अपने गरीबी के दिन याद आ गए। उन्होंने कहा कि 2004 में जब वह और उनकी बहन रीना कटारिया स्पोर्ट्स स्टेडियम में अभ्यास करती थीं तो दोनों के पास अलग-अलग जूतों की जोड़ी नहीं थी। इसलिए एक जोड़ी से बारी-बारी से अभ्यास करते थे। शायद उन अभावों का ही प्रभव रहा हो जो आज वो इस मुकाम पर पहुची। उन्होंने कहा कि गरीब घरों की प्रतिभाओं को आर्थिक रूप से प्रोत्साहित करके सामने लाने की जरूरत है।
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वंदना टोक्यो ओलंपिक की तैयारी के लिए करीब डेढ़ साल पहले घर से निकल गई थीं। वंदना कहती है की वह भारत को गोल्ड मेडल लाने के लिए अपना घर परिवार भी भूल बैठी थी। सबसे खास बात तो यह है कि उन्होंने अपने पिता से भी टोक्यो ओलंपिक से मेडल लाने का वादा किया था। काश आज ये खुशी देखने को पिता होते तो , यह कहते कहते वंदना फिर भावुक हो गई। खास और आम लोगों के स्वागत से खुश इतिहास रचने वाली महिला हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया अपने गरीबी के दिनों को याद करना नहीं भूलीं। उन्होंने कहा कि अधिकांश खिलाड़ी गरीब घरों से आते हैं। कहीं ना कहीं खेलों की तैयारी करने में गरीबी सबसे बड़ी बाधा बनती है।