कुमाऊं यूनिवर्सिटी(Kumaun University) में छात्रा उपाध्यक्ष रही हंसी प्रहरी(Hansi Prahari) आज हरिद्वार में भिक्षा मांगने को मजबूर, अब मंत्री रेखा आर्य ने हंसी के सामने रखा सरकारी नौकरी का प्रस्ताव
जब इंसान के पास कोई पद हो तब तक दुनिया आपको सलाम करती है आपकी पहचान आपका रुतबा तय करता है,रुतबा गया समझिए आपकी पहचान भी गयी आप कब गुमनामी की गलियों में भटकते रह जाएंगे ये आप खुद भी नही जानतें, ये बात कड़वी ज़रूर है मगर सच है। ऐसा ही कुछ अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर क्षेत्र के हवालबाग ब्लॉक के अंतर्गत गोविंदपुर के पास रण खिला गांव की रहने वाली हंसी प्रहरी के साथ हुआ है । जिसके नाम की धूम कभी कुमाऊं यूनिवर्सिटी(Kumaun University) में गूंजा करती थी,जिसके साथ सैकडों स्टूडेंट्स की भीड़ नारे लगाते हुए चलती थी जो कभी कुमाऊं यूनिवर्सिटी में छात्रा उपाध्यक्ष बन कर अपनी प्रतिभा के बल पर कॉलेज के छात्रों के हितों के लिए लड़ी थी वो हंसी प्रहरी(Hansi Prahari) आज अपनी ज़िंदगी की जंग सड़को पर भिक्षा मांग कर लड़ रही हैं। 1999-2000 के दौर में हंसी प्रहरी कुमाऊं यूनिवर्सिटी की छात्रा उपाध्यक्ष रहीं, राजनीति और इंग्लिश जैसे विषयों से डबल एमए कर चुकी हैं, कॉलेज में कोई डिबेट हो और हंसी उस डिबेट का हिस्सा न बने ऐसा तो सम्भव ही नही था किसी भी मुद्दे पर जब हंसी बहस करती तब हर कोई कह उठता कि ये भविष्य में ज़रूर कुछ बड़ा काम करेगी लेकिन समय की मार ने हंसी को सड़क पर ला कर रख दिया ,हंसी को हरिद्वार की सड़कों पर,रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, गंगा के किनारे कई लोगो ने भीख मांगते देखा है। साल 2011 हंसी की ज़िंदगी पलट देगा खुद हंसी ने भी नही सोचा होगा,हालांकि अपनी निजी जिंदगी के बारे में हंसी कम ही किसी को कुछ बताती है इसकी वजह उनके जीवन का कोई भी बुरा असर उनके परिवार पर पड़े ये वो कतई नही चाहती। हंसी की ज़िंदगी उनकी शादी के बाद ही बदल गयी शादी के बाद घरेलू विवाद बढ़ गए कि वो हरिद्वार आ गईं और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने लगी,परिवार से अलग हो गयी, लेकिन इस दौरान उनकी तबियत बिगड़ने लगी,और कहीं भी नौकरी करने में खुद को सक्षम महसूस नही कर पाई,उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री को अपनी दशा के बारे में पत्र भी लिखे लेकिन पत्रों की कोई प्रतिक्रिया सामने नही आई, ऐसी हालत में हंसी अपने 6 साल के बेटे का भी भरण पोषण कर रही हैं,हंसी के दो बच्चे है बेटी अपनी नानी के साथ रहती है और बेटा हंसी के साथ फुटपाथ पर जीवन काट रहा है,हंसी पढ़ी लिखी है इसीलिए अपने बेटे को वो इंग्लिश, हिंदी,संस्कृत,पढ़ाती है। हंसी अपनी दयनीय स्थिति के लिए कई बार सचिवालय और विधानसभा के भी चक्कर काट चुकी है वो कहती है कि अगर सरकार मदद करे तो वो बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सकती हैं।