उत्तराखंड में पलायन की स्थति को देखते हुए तो अब स्वरोजगार की और बढ़ना ही उचित कदम होगा क्योकि पलायन के लिए एक मुख्य कारण है बेरोजगारी ।
पहाड़ो में व्यर्थ समझी जाने वाली चीड़ के पेड़ की पत्ती (पिरूल) अब लोगों की आय का जरिया बनेगी। आप को बता दे की इससे फाइल, लिफाफे, कैरी बैग, फोल्डर, डिस्प्ले बोर्ड आदि सामग्री बनाई जाएगी।
जानकारी के अनुसार इसके लिए गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के ग्रामीण तकनीकी परिसर में प्रदेश की पहली चीड़ पत्ती प्रसंस्करण इकाई स्थापित की गई है।
जंगलो में आग लगने का प्रमुख कारण पिरुल: चीड़ की सूखी पत्ती पिरूल बहुत ही ज्वलनशील होती है, और थोड़ी सी चिंगारी मिलती ही तुरंत आग पकड़ लेती है। जिससे वन संपदा ही नहीं वरन जीव-जंतुओं को भी प्रत्येक वर्ष काफी नुकसान होता है। अब पर्यावरण संस्थान के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के अंतर्गत चल रहे मध्य हिमालयी क्षेत्रों में एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन ने सतत आजीविका सुधार कार्यक्रम के तहत चीड़ पत्ती प्रसंस्करण इकाई स्थापित की है। पूरी इकाई में कटर, ब्वॉयलर आदि उपकरण लगाए गए हैं।
पौड़ी गढ़वाल में सुरु कर दिया था कोयला बनाना- कुछ माह पहले पौड़ी गढ़वाल में पिरूल से कोयला बनाना सुरु किया गया था, जिसमे ग्रामीण महिलाओ का पूरा योगदान और श्रम था जो की स्वरोजगार को ही बढ़ावा देना था। लेकिन इसके कई दुष्प्रभाव भी है क्योकि कोयला बनाने में जो कार्बन निकलता है वो सीधे फेफड़ो को प्रभावित करता है इसलिए ये सफल नहीं हो पाया।
क्या है फायदे – सबसे पहले तो प्रत्येक वर्ष जो पहाड़ो के जंगल आग के हवाले हो जाते है वो बचेंगे और इस से जो जान माल और वन सम्पदा को नुकशान होता था वो बचेगा। पर्यावरण संतुलन बना रहेगा क्योकि जंगलो में आग लगने से पर्यावरण प्रदुषण बढ़ता है। उत्तराखंड से पलायन पर कुछ हद तक रोक लगेगी क्योकि इस से रोजगार उत्पन्न होगा।
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