Connect with us
Uttarakhand Government Happy Independence Day
Uttarakhand Assembly Election 2022: Even after 21 years, uttarakhand is struggling with these basic facilities. Assembly Election 2022.

Assembly election 2022

उत्तराखण्ड

संपादकीय

उत्तराखंड: 21 वर्षों बाद भी इन बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहा पहाड़, नेताजी से जरूर पूछिए ये सवाल

Uttarakhand Assembly Election 2022: विधानसभा चुनावों में वोट मांगने आने वाले राजनीतिक दलों/ नेताओं से यह सवाल जरूर पूछिए कि 21 वर्षों में ‌गांव का कितना विकास हुआ है? क्योंकि आपकी समस्याएं तो आज भी जस की तस बनी हुई है।

उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election 2022) नजदीक है। चुनाव आयोग ने मतदान की तिथि का ऐलान कर आचार संहिता लागू कर दी है। ऐसे में जहां राज्य के सभी राजनैतिक दल सियासी बिसात बिछाकर जनता को अपनी ओर आकर्षित करने में लगे हुए हैं वहीं राज्य गठन के 21 वर्ष बाद भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें या तो राजनैतिक दलों ने अब तक केवल चुनावी वादों तक ही सीमित रखा है या फिर अब तक छुआ ही नहीं है। वैसे यह सर्वविदित तथ्य है कि लोकतंत्र में जनता की महत्ता सर्वाधिक होती है।
(Uttarakhand Assembly Election 2022)


यह भी पढ़ें- उत्तराखण्डी मांग रहे सशक्त भू-कानून, राजनीतिक दल खेल रहे फ्री बिजली का दांव

आम जनमानस के दृष्टिकोण से जहां आपका उन अहम मुद्दों को जानना और नेताओं से उनके विषय में सवाल पूछना बेहद अहम हो जाता है वहीं लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिया क्षेत्र से जुड़े होने के कारण जनता को उन विभिन्न पहलुओं से रूबरू कराना हमारी भी जिम्मेदारी है जिनके लिए राज्य आंदोलनकारियों ने वर्षों पहले अलग राज्य का सपना देखा था। मीडिया की इसी जिम्मेदारी को समझते हुए हम आपके लिए विधानसभा चुनाव 2022 पर एक बेहतरीन कालम ले कर आ रहे हैं जिसमें न सिर्फ आम जनमानस की परेशानियों और सरकारों से उनकी अपेक्षाओं को प्रकाशित किया जाएगा बल्कि समाज की जरूरतों का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा। ताकि हमारा यह उत्तराखण्ड प्रदेश न‌ई ऊंचाईयों की ओर अग्रसर हो सकें।
(Uttarakhand Assembly Election 2022)
यह भी पढ़ें- VIDEO: उत्तराखंड में फिर गरजे अरविंद केजरीवाल, फ्री बिजली के बाद ये रहा अब तीसरा वादा

यह सर्वविदित तथ्य है कि राज्य गठन के 21 वर्षों बाद भी पहाड़ की अधिकांश समस्याएं आज भी जस की तस बनी हुई है। बात अगर अपने पहले बिंदु शिक्षा प्रणाली की करें तो पहाड़ की खराब शिक्षा व्यवस्था यहां से होने वाले पलायन का एक बहुत बड़ा कारण है। यह सार्वभौमिक सत्य है कि हर माता-पिता यही चाहते हैं, उनका बेटा अच्छे से पढ़ लिखकर काबिल बनें, न‌ई न‌ई ऊंचाईयों को छूकर न सिर्फ कामयाबी के उच्च शिखर को छुए बल्कि अपने साथ ही अपने माता-पिता, परिजनों, गांव, शहर, जिले के साथ ही राज्य का नाम भी देश-विदेश में रोशन करें। परंतु पहाड़ की खराब शिक्षा व्यवस्था के कारण यह संभव नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण है सरकारों द्वारा गांवों में स्कूल कालेज तो खोल दिए गए हैं परन्तु उनमें क्वालिफाइड शिक्षक ही नहीं है। प्रत्योगात्मक शिक्षा के लिए उपकरणों, मशीनों का अभाव है। उदाहरण के तौर पर गणित के अध्यापक को ही छात्रों को विज्ञान के विषयों, हिंदी, अंग्रेजी आदि की शिक्षा देनी पड़ रही है।
(Uttarakhand Assembly Election 2022)
यह भी पढ़ें- हरदा ने बनाया लोकगायिका माया उपाध्याय को अपना लोक कला व लोक संस्कृति सलाहकार


हम यह भी जानते हैं कि हर विषय का एक सीमित दायरा होता है। यह असंभव सा प्रतीत होता है कि जो शिक्षक गणित विषय की अव्वल दर्जे की शिक्षा देता है वह अन्य विषयों में भी उतना ही पारंगत हो। ऐसे में छात्र-छात्राए भी एक विषय में तो पारंगत हो जाते हैं परन्तु अन्य विषयों में उनकी दक्षता केवल पासिंग मार्क्स तक ही रह जाती है। सीमित ज्ञान के कारण वह प्रतियोगी परीक्षाओं में शहरी क्षेत्रों के छात्रों के समक्ष कहीं ठहर नहीं पाते। यहां हम यह नहीं कह रहे हैं कि पहाड़ के छात्रों में कोई हुनर नहीं है, या उनमें सीखने की ललक नहीं है। क्योंकि ऐसा होता तो पहाड़ से शिक्षा प्राप्त करने वाले युवा सफलता के ऊंचे मुकाम पर नहीं पहुंच पाते। परंतु एक सच्चाई यह भी है कि कुछ होनहार युवाओं को छोड़ दिया जाए तो पहाड़ के अधिकांश बेटे शिक्षा व्यवस्था की खामियों की भेंट चढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं राज्य में क‌ई ऐसे गांव भी है जहां बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालकर विद्यालय तक पहुंचना पड़ता है।
यह भी पढ़ें- पीएम मोदी पहुंचे हल्द्वानी सीएम धामी ने शॉल और स्मृति चिन्ह भेंट कर किया स्वागत


ऐसे में बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से पहाड़ के वाशिंदे गांवों को छोड़कर बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं। उधर दूसरी ओर यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा कि छोटे-बड़े सभी मंचों से बात-बात पर पलायन रोकने का राग अलापने वाली उत्तराखण्ड की अब तक की किसी भी सरकार या किसी भी राजनेता ने इस विषय पर बात करना भी उचित नहीं समझा है क्योंकि यदि सरकारों द्वारा पहाड़ की शिक्षा व्यवस्था को बदलने का प्रयास किया गया होता तो राज्य गठन के 21 वर्षों बाद भी माता-पिता को बच्चों के सुनहरे भविष्य की कामना लेकर गांव से पलायन नहीं करना पड़ता। इस विषय पर आप भी सोचिए, गहन चिंतन मनन कीजिए और चुनाव अभियान में वोट मांगने आने वाले सभी प्रत्याशियों, उनके समर्थकों से इसके बारे सवाल भी अवश्य कीजिए। यह आपका हक भी है और एक जागरूक नागरिक होने के नाते आपके वोट की सबसे बड़ी क़ीमत भी यही है।
(Uttarakhand Assembly Election 2022)

यह भी पढ़ें- विडियो: उत्तराखंड भू-कानून की मांग हुई सशक्त, युवाओं ने सड़क पर जनाक्रोश रैली से भरी हुंकार

ये तो पहाड़ की महज एक समस्या है। पहाड़ में ऐसे अनेकों मुद्दे हैं जिन्हें लेकर गांव में रहने वाले लोगों को आए दिन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। पहाड़ की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था, सड़क व्यवस्था, पलायन आदि अनेक दंश है जिनके बारे में हम अपने आगामी आलेखों के माध्यम से आपको अवगत कराते रहेंगे, क्योंकि मीडिया जगत से जुड़े होने के कारण समाज को जागृत करना, उनकी समस्याओं को अंधी गूंगी सरकारों तक पहुंचाना ही तो हमारा परम कर्तव्य है। पढ़ते रहिए देवभूमि दर्शन…

उत्तराखंड की सभी ताजा खबरों के लिए देवभूमि दर्शन के WHATSAPP GROUP से जुडिए।

लेख शेयर करे

More in Assembly election 2022

Advertisement

UTTARAKHAND CINEMA

Advertisement Enter ad code here

PAHADI FOOD COLUMN

UTTARAKHAND GOVT JOBS

Advertisement Enter ad code here

UTTARAKHAND MUSIC INDUSTRY

Advertisement Enter ad code here

Lates News

To Top