UTTARAKHAND NEWS
हल्द्वानी में 10 वर्ष पहले नन्ही कली की दुष्कर्म और हत्या के मामले में मुख्य आरोपी बरी
Haldwani Nanhi Kali News: हल्द्वानी मे 10 साल पहले हुई नन्हीं कली की दुष्कर्म व हत्या के मामले में मुख्य आरोपी बरी, तो नन्हीं कली का हत्यारा कौन?.
Haldwani Nanhi Kali News Of rape and murder: उत्तराखंड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी के काठगोदाम में वर्ष 2014 में पिथौरागढ़ की रहने वाली नन्ही कली की दुष्कर्म के बाद हत्या की गई थी। जिसके आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य अभ्युक्त अख्तर अली को बरी कर दिया है। वही पिथौरागढ़ की नन्हीं कली के दुष्कर्म और हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस प्रशासन की थ्योरी पर सवाल खड़े किए है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर नन्हीं कली का हत्यारा कौन है।
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अभी तक मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2014 में पिथौरागढ़ की रहने वाली नन्ही कली अपने रिश्तेदारी में हल्द्वानी के काठगोदाम गई हुई थी। जहां पर उसके साथ दुष्कर्म के बाद हत्या की घटना सामने आई जिसके बाद पूरे कुमाऊं समेत प्रदेशभर में आक्रोश देखने को मिला था। इतना ही नहीं बल्कि सरकार ने पिथौरागढ़ नर्सिंग कॉलेज का नाम नन्ही कली के नाम पर किया । पुलिस ने इस मामले में डंपर चालक अख्तर अली और उसके साथी प्रेम पाल वर्मा समेत एक अन्य को गिरफ्तार किया था। जिसके तहत पॉक्सो कोर्ट हल्द्वानी में अख्तर अली को मौत की सजा जबकि प्रेमलाल को 5 साल के सजा सुनाई थी जिस पर हाईकोर्ट ने भी मुहर लगाई थी।
सुप्रीम कोर्ट को मामले में कई सारी कमियां आई नजर
हालांकि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की जांच में कई सारी कमियां और अभियोजन पक्ष को साबित न कर सकने के कारण केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित माना गया था। आरोपी अख्तर मूल रूप से बिहार का रहने वाला था जो लुधियाना पंजाब से दबोचा गया था। जिस पर अभियोजन पक्ष ने बताया था कि आरोपी का मकसद मासूम बच्ची के साथ अपनी वासना पूरी करना था यह घिनौना मकसद ही हमले का आधार बना जिसके कारण उसकी मौत हुई।
डंपर मालिक के बयान से उलझा मामला, बदल गए बयान
सुप्रीम कोर्ट को यह बात रास नहीं आई जब डंपर मालिक शंकर दत्त ने उसी दिन उसे काम पर रखा और उसे ₹3000 दिए फिर उसके बाद उसने अख्तर को कभी नहीं देखा। शंकर का कहना है कि 21 नवंबर को वह लापता बच्ची की तलाश में शामिल हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट को बयान में सच्चाई नहीं आ रही नजर
अगर उसके बयान में जरा भी सच्चाई होती तो यह मानना मुश्किल है कि वह इस बात पर चुप रहता। 20 नवंबर को जिस ड्राइवर को काम पर रखा था वह अचानक गायब हो गया यह बात इतनी महत्वपूर्ण ठीक है इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट में सामने आया कि दो दुकानदारों ने पुलिस को बच्ची के लापता होने के 5 दिन बाद बयान दिए जिसमे कहा गया कि उन्होंने आरोपियों को नशे में देखा था। हालांकि दुकानदार बलराम कृष्ण की विश्वसनीयता और कम हो गई क्योंकि उसने स्वीकार किया कि निश्चित रूप से आरोपी उस समय लड़की के साथ थे या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जांच में उठाए गंभीर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 25 नवंबर को पीड़ित बच्ची के चचेरे भाई ने थाना अध्यक्ष राजेश यादव को मोबाइल फोन पर बताया कि बच्ची का शव शीशमहल रामलीला ग्राउंड के पास गौला नदी के जंगल में पड़ा है। तब पुलिस ने शव के बारे में सबसे पहले सूचना देने वाले करीबी रिश्तेदार से पूछताछ या उसका बयान दर्ज क्यों नहीं किया यह चूक बहुत बड़ी लापरवाही मानी जा रही है। जांच के दौरान उसका बयान दर्ज न करना और ट्रायल में गवाही के लिए पेश न करना कोर्ट की परिस्थितियों की कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी से वंचित कर देता है।
पुलिस की एक चूक पर आरोपी हुआ बरी
यह जानबूझकर की गई चूक ना केवल लास्ट सीन थ्योरी को कमजोर करती है बल्कि गंभीर नुकसान भी पहुंचाती है। ऐसी परिस्थितियों में डीएनए जांच के लिए आरोपियों के सैंपल लेने की प्रक्रिया को ना तो स्वेच्छा और ना ही भरोसेमंद माना जा सकता है। हालांकि अभियोजन ने यह स्पष्ट किया कि पीड़ित बच्ची के साथ आरोपित अख्तर अली, प्रेम पाल वर्मा और जूनियर मसीह उर्फ फाक्सी ने दुराचार किया लेकिन फोरेंसिक जांच में केवल अख्तर अली का डीएनए ही सर्वाइकल स्वैब से मेल खाता पाया गया।
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