Bedu Pako Baramasa song: उत्तराखंड लोकगीत बेडू पाको बारामासा रचयिता
Bedu Pako Baramasa song: सर्वप्रथम 1952 में राजकीय इंटर कॉलेज नैनीताल में “स्वर्गीय श्री मोहन उप्रेती द्वारा हुड़के की थाप पर गाया गया था यह गीत, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी था काफी पसंद…
Bedu Pako Baramasa song
उत्तराखंड का सुप्रसिद्ध लोकगीत “बेड़ू पाको बारामासा” से आज हर कोई परिचित है। यह उत्तराखंड का एक ऐसा कुमाऊनी लोकगीत है जिसके बोल में संपूर्ण कुमाऊं की संस्कृति की छवि झलकती है। आज बूढ़े हो या बच्चे या जवान सभी के द्वारा इस लोक गीत के बोल गुनगुनाए जाते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि जिस लोक गीत के बोल एवं धुन से हर कोई थिरकने लगता है जिसका संगीत सभी के मन को मोह लेता है उस लोक गीत के रचयिता(Author) कौन हैं? आखिर कौन है जिनके द्वारा इस लोकगीत को सर्वप्रथम लिखा गया है?
तो चलिए आज हम आपको उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश विदेशों में प्रसिद्ध उत्तराखंड का प्रमुख लोकगीत “बेड़ू पाको बारामासा” के रचयिता से रूबरू करवाते हैं।
(Bedu Pako Baramasa song)
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“बेडू पाको बारो मासा ,नरेण काफल पाको चैत मेरी छैला” सिर्फ एक लोकगीत नहीं बल्कि उत्तराखंड की पहचान है। यह उत्तराखंड के उन लोकगीतों में शामिल है जिन्हें उत्तराखंडी लोगों द्वारा अपनी पहचान बताने में प्रयोग किया जाता है। आज भी जब कोई भी उत्तराखंडी अपनी पहचान बताता है तो इन लोक गीतों को गुनगुनाकर इनके माध्यम से अपना उत्तराखंडी होने का प्रमाण देते हैं और इन्हें अपने साथ जोड़ कर अपना परिचय देते हैं।
यह एक कुमाऊनी लोकगीत है जो राग दुर्गा पर आधारित है। इसके रचियता कुमाऊं के “स्वर्गीय श्री विजेंद्र लाल शाह जी”हैं और इसमें संगीत अल्मोड़ा के “स्वर्गीय श्री मोहन उप्रेती और बृजमोहन शाह जी” द्वारा दिया गया है।
(Mohan Upreti Bedu pako baramsa song )
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इस गीत को सर्वप्रथम स्वर्गीय श्री मोहन उप्रेती द्वारा हुड़के की थाप के साथ प्रस्तुत किया गया मगर बाद में प्रसिद्ध लोक गायक स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाया गया और इन्हीं के सुरीले कंठ द्वारा गाने से इस लोकगीत को पहचान मिली। इस गीत को सर्वप्रथम 1952 में राजकीय इंटर कॉलेज नैनीताल में “स्वर्गीय श्री मोहन उप्रेती द्वारा हुड़के की थाप पर गाया गया। उस समय इसे जनता द्वारा खूब सराहा गया था और तब हर कोई इसकी धुन और बोल पर थिरकने को मजबूर हो गए थे। यह लोक गीत न सिर्फ उत्तराखंड के लोगों का बल्कि उस समय के तत्कालीन और आज के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी बेहद प्रिय था। 1955 में जब रूस के दो शीर्ष नेता भारत आए थे तो दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय सभा के दौरान इस गीत की पहली रिकॉर्डिंग चलाई गई थी जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा खूब पसंद किया गया था। तब उन्होंने इस गाने के संगीत बनाने वाली स्वर्गीय मोहन उप्रेती को ‘बेडू पाको बॉय ‘ नाम दिया था। साथ ही इस लोकगीत के HMV रिकॉर्डिंग सम्मेलन में उपस्थित सभी अतिथियों को भेंट स्वरूप भी दिया था। इस प्रकार यह गीत उस समय न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि देश विदेश में भी छाया था। उस समय इस सुप्रसिद्ध कुमाऊनी लोकगीत बेडू पाको बरामासा को ना सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली और आज यह देश विदेश में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड का कुमाऊनी सुप्रसिद्ध लोकगीत है।
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यह गीत न सिर्फ कुमाऊं बल्कि गढ़वाल में भी प्रसिद्ध है और इसे गढ़वाल में भी खूब पसंद किया जाता है। इस गाने को अब तक गढ़वाल के सुप्रसिद्ध गायक नरेंद्र सिंह नेगी, मीना राणा, प्रीतम भरतवाण आदि लगभग 25 से भी ज्यादा गढ़वाली और कुमाऊंनी गायको द्वारा नए नए वर्जन में गाया गया है। जिसे दर्शकों द्वारा खूब पसंद भी किया जाता है और यह गाने खूब धमाल भी मचाते हैं। मगर अब तक के गाये गए सभी गानों में आज भी सुप्रसिद्ध कुमाऊनी लोक गायक स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी के गाने को ही ओरिजिनल बेडू पाको बारो मासा का गायक माना जाता है।
(Bedu Pako Baramasa song)
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