विज्ञान एवं तकनीकी के इस आधुनिक युग में भारत सहित दुनियाभर के लोग जहां हर रोज एक नयी तकनीकी से रूबरू हो रहे हैं, वहीं देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के लोग आज भी 18 वीं सदी में जीने को मजबूर हैं। 21 वीं सदी को विज्ञान एवं तकनीकी का युग कहा जाता है। आलम यह है कि यह समस्याएं केवल दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों की नहीं है अपितु पर्वतीय जिला मुख्यालयों का भी यही हाल है। आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकताएं संचार सेवाएं, सड़क मार्ग एवं स्वास्थ्य सेवाएं हैं। और इन सभी की यहां बड़ी ही खस्ता हालत हैं। जो कि यहां से होने वाले पलायन का एक प्रमुख कारण भी है। अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगा हुआ क्षेत्र होने के कारण यह और भी अधिक चिंता की बात है। जब जिला मुख्यालयों में यह हाल है तो दुर्गम क्षेत्रों का कहना ही क्या? वहां तो नदियों को पार करने के लिए नदियों पर पुल तक नहीं बने हैं। जिससे मजबूर होकर ग्रामीणों को रस्सियों या बल्लियों के सहारे नदियां पार करनी पड़ती है जो कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। वहीं दूसरी ओर प्रशासन जानकारी होने के बावजूद भी चैन की नींद सोया रहता है, जो कि बड़े ही दुःख की बात है। ऐसा ही एक वाकया राज्य के चमोली जिले से सामने आया है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक चमोली जिले की निजमूला घाटी में निजमूला समेत अन्य गांवों की आवाजाही के लिए ग्रामीणों को बल्लियों का सहारा लेना पड़ रहा है। बता दें कि निजमूला घाटी के निजमूला समेत अन्य गांवों की आवाजाही के लिए लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाए गए पुल वर्ष 2017 की बरसात में बह गए थे। इसके बाद से ही ग्रामीणों ने प्रशासन व लोक निर्माण विभाग से पुलों के निर्माण की गुहार लगानी शुरू कर दी थी। परन्तु प्रशासन की ओर से कोई पहल न होती देख ग्रामीणों ने उसके बाद नदी के ऊपर बल्लियां डालकर अपने गांवों के लिए आवाजाही शुरू की। महिलाएँ अपनी जिंदगी पर खेल कर जंगलो से इस लकड़ी के बल्ली के सहारे उफनती नदी को पार करती है। ग्रामीण लगातार लोक निर्माण विभाग व प्रशासन को पुल निर्माण के लिए पत्र लिखते रहे। परन्तु प्रशासन और लोक निर्माण विभाग के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। जिससे दो साल बाद भी अभी तक पुलों का निर्माण शुरू नहीं हो पाया।
बता दें कि क्षेत्र के लोग काश्तकारी के लिए भी इन बल्लियों के ऊपर जान जोखिम में डालकर आवाजाही करने को मजबूर हैं। निजमूला गांव के निवासियों ने बताया कि पुल निर्माण न होने के कारण बल्लियों के ऊपर आवाजाही करते हुए कई लोग फिसले भी है। हालांकि ग्रामीणों की सजगता के चलते अभी तक कोई दुर्घटना नहीं हुई है। फिर भी ये बल्लियां कभी भी दुर्घटना को दावत दे सकती है। ग्रामीणों ने कहा कि लोक निर्माण विभाग व प्रशासन की इस बेरुखी से क्षेत्रवासियों में आक्रोश है, तथा वें हमेशा किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत रहते हैं। वहीं दूसरी ओर प्रशासन तथा लोक निर्माण विभाग क्षतिग्रस्त हुए पुलों के निर्माण को लेकर चैन की नींद सोया हुआ है। लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता डीएस रावत के अनुसार यदि पुलों के निर्माण को यदि प्रस्ताव आया, तो उसके लिए बजट बनाया जाएगा।