सियाचिन में तिरंगा लहराने वाले 4 कुमाऊं के पूर्व सैनिक धन सिंह नेगी का आकस्मिक निधन
अपनी जान की बाज़ी लगाकर सियाचिन में तिरंगा लहराने वाले 4 कुमाऊं के पूर्व सैनिक धन सिंह नेगी का 67 वर्ष की आयु में आकस्मिक निधन हो गया है। धन सिंह नेगी अल्मोड़ा जिले के जैंती तहसील के सैनोली ग्राम के मूल निवासी थे। गौरतलब है कि 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत चलाकर दुनिया की सबसे दुरूह युद्धभूमि सियाचिन में प्रकृति और दुश्मन से एक साथ लड़ते हुए उसे अपने कब्जे में लिया था। बता दे की पहले दल में 29 सैनिक न्यूनतम संसाधनों के साथ सियाचिन ग्लेशियर में बुलंद हौसलों के बलबूते गए जिसमें धन सिंह नेगी अग्रणी थे। 34 साल पहले चार कुमाऊं रेजिमेंट की पलटून ने कैप्टन संजय कुलकर्णी के नेतृत्व में सियाचिन की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहराया था।

स्व. धन सिंह नेगी अपने परिवार के साथ
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पूर्व सैनिक नेगी के पुत्र और समाजसेवी राजेन्द्र सिंह नेगी ने बताया कि अंतिम सांस तक सामाजिक बुराइयों और आडंबरों से अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहे और आज भी फ़ौज का वो जज्बा उनके अंदर कायम था जिस बुलंद हौसले से उन्होंने सियाचिन में तिरंगा लहराया था। स्व. नेगी के निधन पर हुई शोकसभा में शोकाकुल परिवार के प्रति सवेंदना जताई गयी । उनकी शोकसभा में सैनोली के प्रधान कुंवर सिंह नेगी ,त्रिलोक सिंह नेगी , हयात सिंह और पान सिंह धानक इत्यादि मौजूद थे।
एक नजर सियाचिन ऑपरेशन मेघदूत- ऑपरेशन मेघदूत आज से 34 साल पहले 13 अप्रैल को लॉन्च किया गया था। भारतीय सेना के इस बहुत महत्वपूर्ण ऑपरेशन को शौर्य और पराक्रम की मिसाल के तौर पर देखा जाता है। 1984 में सियाचिन ग्लैशियर को फतह करने के उद्देश्य से इस ऑपरेशन को लॉन्च किया गया था। सेना का यह ऑपरेशन इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर फतह करने के लिए यह ऑपरेशन किया गया था। सेना की इस कार्रवाई का नतीजा रहा कि पूरे सियाचिन ग्लैशियर पर भारत का कब्जा हुआ और सबसे ऊंची चोटी पर भी तिरंगा लहराने लगा।सियाचिन दो विवादित सीमाओं चीन और पाकिस्तान के बीच में स्थित है। भारत के उत्तर पश्चिम के काराकोरम रेंज में यह बहुत महत्वपूर्ण ग्लैशियर है।
जम्मू-कश्मीर में सियाचिन ग्लैशियर 76.4 किमी. की लंबाई और लगभद 10 हजार स्कवॉयर किमी. के सुनसान निर्जन इलाके को कवर करता है। 1974 में पाकिस्तान की तरफ से इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ग्लैशियर पर कब्जे के लिए कुछ हरकतें शुरू हो गई थी। 1983 आते-आते भारत ने यह महसूस किया कि सियाचिन पर भारत को पैनी नजर बनाए रखनी होगी। अंत में भारत ने सियाचिन में अपना तिरंगा लहरा के इतिहास में अपनी विजय दर्ज की।
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