एक परिचय एक मिशाल जिन्दगी की जंग से उभरकर पद्मश्री तक का सफर “जागर गायिका बसंती बिष्ट”
मसूरी गोलीकांड को शसक्त किया अपने गीतों से : उनकी शादी 19 वर्ष की उम्र में रंजीत सिंह बिष्ट से हुई, पति के सेना में कार्यरत होने के कारण शादी के बाद वह भी पंजाब के विभिन्न शहरों में रही। शादी के बाद जब पति उन्हें धीरे-धीरे गुनगुनाते हुए सुनते तो वो बसंती को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उन्हें अच्छे से संगीत सीखने को भी कहते। पति के बार-बार कहने पर वह चंडीगढ़ के एक प्राचीन कला केंद्र से शास्त्रीय संगीत को विधिवत रूप से सीखने लगी। उत्तराखण्ड जनआन्दोलन के समय जब समूचा पर्वतीय क्षेत्र मुजफ्फरनगर, खटीमा और मसूरी गोलीकांड की पीड़ा से दुखी था तो बंसती बिष्ट ने भी इन गोलीकांड की असहनीय वेदना को अपने गीतों के माध्यम से उजागर किया, साथ ही वह खुद भी इस जनआंदोलन में कूदकर तमाम मंचों पर लोगों के बीच उन गीतों को गाकर लोगों से राज्य को शसक्त बनाने का आह्वान करती। इसी दौरान उन्हें राजधानी के परेड मैदान में गढ़वाल सभा के कार्यक्रम के माध्यम से एक बड़ा मंच प्राप्त हुआ। उन्होंने इस मंच पर सुर-ताल से भरपूर गीत गाकर अपने सफ़र की शानदार शुरुआत की।
उसके बाद तो बंसती संगीत के क्षेत्र में नए-नए मुकाम हासिल करने लगी। अनेक बड़े मंचों पर उन्होंने अपने संगीत की शानदार प्रस्तुतियां दी। जिसके लिए उन्हें अनेक सम्मानों से भी नवाजा गया। जिनमें पद्म श्री, राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान, गढ़ गौरव सम्मान आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। समय बीतने के साथ अब तो वह एकमात्र जागर ही नहीं गाती अपितु मांगल, पांडवानी, न्यौली और दूसरे पारंपरिक गीत भी गाती हैं। उन्होंने मां नंदा देवी’ के जागर को ‘नंदा के जागर सुफल ह्वे जाया तुमारी जातरा’ नामक किताब में भी लिखा है। यह उनके ही काबिले-तारीफ हौसले की बात है जो उन्होंने परिवार से अनुमति न मिलने के बावजूद भी अपनी प्रतिभा को कुंठित नहीं होने दिया। आज बसंती गायन के साथ ही देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में महिला सशक्तीकरण का भी संदेश दे रही हैं। बंसती के अनुसार अगर आपके अंदर कोई प्रतिभा छिपी है तो उसे अवश्य ही उजागर करना चाहिए। इतना ही नहीं वह तो यह भी कहती है कि हो सके तो स्वयं की प्रतिभा को काम में भी लाना चाहिए और प्रतिभा को कुंठित होने से बचाकर उसी के द्वारा अपनी पहचान बनानी चाहिए।