Connect with us

उत्तराखण्ड

एक परिचय एक मिशाल जिन्दगी की जंग से उभरकर पद्मश्री तक का सफर “जागर गायिका बसंती बिष्ट”

रख हौसला वो मंज़र भी आएगा,
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आएगा,
थककर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर,
मंज़िल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा…
ये चंद पंक्तियां सुप्रसिद्ध जागर गायिका बसंती बिष्ट पर बिल्कुल सटीक बैठती है। जी हां एक ऐसी जागर गायिका जिन्होंने समाज की परम्परागत रूढीवादियों को तोड़कर संगीत के क्षेत्र में एक ऐसा मुकाम पाया कि भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म श्री सम्मान से पुरस्कृत करना पड़ा। जिस जागर को गाने से परिवार के लोगों द्वारा बचपन में उन्हें रोका जाता था आज वहीं जागर गायन उनकी पहचान बन गया है। जी हां महिला दिवस पर हम बात कर रहे हैं देवभूमि की सुप्रसिद्ध जागर गायिका बसंती बिष्ट की। जिन्हें 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। परंतु उन्हे अपनी इस मंजिल को पाने के लिए जिन्दगी में काफी संघर्ष करना पडा। आज हम उनके संघर्ष की वहीं कहानी आपको बता रहें हैं।




सामाजिक रूढियों को तोड़कर पेश की नयी मिशाल : पद्म श्री के साथ-साथ अनेक अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित बंसती बिष्ट का जन्म राज्य के चमोली जनपद के देवाल विकासखंड के सीमांत गांव ल्वाणी में हुआ था। पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाली बसंती बिष्ट उस गांव की रहने वाली हैं जहां बारह साल में निकलने वाली नंदा देवी की धार्मिक यात्रा का अंतिम पढ़ाव होता है। चमौली जिले के इस इलाके को नंदा देवी का ससुराल माना जाता है। क्षेत्र के लोग नंदा देवी को अपनी बेटी की तरह पूजते हैं। इसलिए यहां वर्षों से नंदा देवी के जागर गायन की परंपरा विद्यमान है। उस समय पहाड़ में जागर गायन में पुरुषों का वर्चस्व माना जाता था, महिलाओं को इसकी अनुमति नहीं थी। इसलिए बचपन से ही संगीत में रूचि रखने वाली बसंती बिष्ट ने जब बचपन में परिवार के सामने जागर गाने की इच्छा जाहिर की तो उनके परिवार ने ही सामाजिक रूढियों के चलते उन्हे इसकी अनुमति नहीं दी। लेकिन शादी के बाद उनकी संगीत के क्षेत्र में जाने के सपने ने एकाएक उडान भरना शुरू कर दिया।




मसूरी गोलीकांड को शसक्त किया अपने गीतों से : उनकी शादी 19 वर्ष की उम्र में रंजीत सिंह बिष्ट से हुई, पति के सेना में कार्यरत होने के कारण शादी के बाद वह भी पंजाब के विभिन्न शहरों में रही। शादी के बाद जब पति उन्हें धीरे-धीरे गुनगुनाते हुए सुनते तो वो बसंती को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उन्हें अच्छे से संगीत सीखने को भी कहते। पति के बार-बार कहने पर वह चंडीगढ़ के एक प्राचीन कला केंद्र से शास्त्रीय संगीत को विधिवत रूप से सीखने लगी। उत्तराखण्ड जनआन्दोलन के समय जब समूचा पर्वतीय क्षेत्र मुजफ्फरनगर, खटीमा और मसूरी गोलीकांड की पीड़ा से दुखी था तो बंसती बिष्ट ने भी इन गोलीकांड की असहनीय वेदना को अपने गीतों के माध्यम से उजागर किया, साथ ही वह खुद भी इस जन‌आंदोलन में कूदकर तमाम मंचों पर लोगों के बीच उन गीतों को गाकर लोगों से राज्य को शसक्त बनाने का आह्वान करती। इसी दौरान उन्हें राजधानी के परेड मैदान में गढ़वाल सभा के कार्यक्रम के माध्यम से एक बड़ा मंच प्राप्त हुआ। उन्होंने इस मंच पर सुर-ताल से भरपूर गीत गाकर अपने सफ़र की शानदार शुरुआत की।




उसके बाद तो बंसती संगीत के क्षेत्र में न‌ए-न‌ए मुकाम हासिल करने लगी। अनेक बड़े मंचों पर उन्होंने अपने संगीत की शानदार प्रस्तुतियां दी। जिसके लिए उन्हें अनेक सम्मानों से भी नवाजा गया। जिनमें पद्म श्री, राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान, गढ़ गौरव सम्मान आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। समय बीतने के साथ अब तो वह एकमात्र जागर ही नहीं गाती अपितु मांगल, पांडवानी, न्यौली और दूसरे पारंपरिक गीत भी गाती हैं। उन्होंने मां नंदा देवी’ के जागर को ‘नंदा के जागर सुफल ह्वे जाया तुमारी जातरा’ नामक किताब में भी लिखा है। यह उनके ही काबिले-तारीफ हौसले की बात है जो उन्होंने परिवार से अनुमति न मिलने के बावजूद भी अपनी प्रतिभा को कुंठित नहीं होने दिया। आज बसंती गायन के साथ ही देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में महिला सशक्तीकरण का भी संदेश दे रही हैं। बंसती के अनुसार अगर आपके अंदर कोई प्रतिभा छिपी है तो उसे अवश्य ही उजागर करना चाहिए। इतना ही नहीं वह तो यह भी कहती है कि हो सके तो स्वयं की प्रतिभा को काम में भी लाना चाहिए और प्रतिभा को कुंठित होने से बचाकर उसी के द्वारा अपनी पहचान बनानी चाहिए।




More in उत्तराखण्ड

UTTARAKHAND GOVT JOBS

UTTARAKHAND MUSIC INDUSTRY

Lates News

To Top
हिमाचल में दो सगे नेगी भाइयो ने एक ही लड़की से रचाई शादी -Himachal marriage viral पहाड़ी ककड़ी खाने के 7 जबरदस्त फायदे!