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उत्तरकाशी

पहाड़ के चार युवाओ ने वर्षो से बंजर पड़ी भूमि को एडवेंचर कैंप में तब्दील कर जगाई स्वरोजगार की अलख

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उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में पलायन ने ऐसी जड़े फैलाई जो अब विकराल रूप धारण कर रही है , जिसके लिए न तो प्रशासन की और से कोई प्रभावी कदम उठाया जा रहा है , ना ही स्थानीय लोग कुछ पहल कर रहे है। एक नजरिये से देखा जाये तो पहाड़ो में रोजगार के अनेक साधन उत्पन्न किये जा सकते है जरुरत है तो बस एक रचनात्मक और सकारात्मक सोच वाले व्यक्तित्व की। पहाड़ के ऐसे ही चार युवाओ से हम आज आपको रूबरू करने जा रहे है जो पहाड़ की बंजर भूमि में एडवेंचर कैंप का संचालन कर  स्वरोजगार की मुहीम शुरू कर रहे है।




बता दे की उत्तरकाशी में नाल्ड गांव के चार युवाओं ने बंजर भूमि को एडवेंचर कैंप में बदल दिया। ये चारों युवा अब तक दिल्ली, चेन्नई व गुरुग्राम की एडवेंचर कंपनियों में काम कर रहे थे। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से मात्र 12 किमी की दूरी पर स्थित नाल्ड गांव जो की अपनी मनोरम खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। गांव के लोगो की आजीविका का मुख्य साधन कृषि और पशुपालन ही है। गॉव चारो और से घने जंगलो से घिरा हुआ है, जिसकी वजह से जंगल से लगे खेतों में जंगली जानवरो ने ऐसा आतंक किया, की पूरी फसलों को चौपट कर देते थे, इसलिए ग्रामीणों ने इन खेतों को बंजर छोड़ा हुआ हैं। कभी ग्रामीणों ने भी नहीं सोचा था की इन बंजर खेतों की भी तस्वीर बदल जाएगी, और ये तस्वीर बदलने वाले कोई बाहर के व्यक्ति नहीं है बल्कि गांव के ही युवक दीपक राणा, गणेश राणा , रजनीश रावत व धर्मेंद्र पंवार, है ।




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बंजर खेतो में होगी एडवेंचर खेलों के साथ ट्रैकिंग, कैंपिंग,इत्यादि की शुरुआत: नाल्ड गांव के इन युवाओं ने लगभग आधा हेक्टेयर भूमि ग्रामीणों से किराये पर ली और बिना किसी सरकारी मदद के उस पर एडवेंचर कैंप स्थापित किया। जिसमे की सात तरह के एडवेंचर खेलों के साथ ट्रैकिंग, कैंपिंग, योग-ध्यान, होम स्टे और ग्रामीण परिवेश परिचय भी शामिल है। यह एडवेंचर कैंप गत 21 नवंबर से प्रारम्भ भी हो चूका है ,साथ ही इस कैंप का नामकरण नाग देवता के नाम पर नागा एडवेंचर कैंप रखा गया है। सबसे खाश बात तो ये है की शुरुआती दिनों में ही पर्यटकों की आवाजाही प्रारम्भ हो चुकी है और बीते चार दिनों में यहां 200 से अधिक पर्यटक भी पहुंचे चुके हैं।

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एडवेंचर कैंप की शुरुआती रणनीति : नाल्ड गांव के दीपक राणा, धर्मेंद्र पंवार, रजनीश रावत व गणेश राणा की बचपन से ही पक्की दोस्ती रही और प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक की शिक्षा भी एक साथ हुई। लेकिन वर्ष 2012 के बाद चारों दोस्त उच्च शिक्षा व रोजगार के लिए अलग-अलग हो गए। वर्ष 2015 में दीपक पहले हिमाचल प्रदेश और फिर चेन्नई की एक एडवेंचर कंपनी में काम करने लगे। दीपक राणा और रजनीश रावत ने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) से पर्वतारोहण का बेसिक और एडवांस कोर्स भी किया। वहीं, रजनीश रावत ने दिल्ली और गुरुग्राम में एडवेंचर का प्रशिक्षण दिया। इसी तरह धर्मेंद्र पंवार ने दिल्ली की एक आइटी कंपनी में काम किया और गणेश राणा ने पॉलीटेक्निक किया हुआ है। अपने अपने रोजगार की वजह से चारो दोस्तों की मुलाकात नहीं हो पति थी ,लेकिन मई 2018 में गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में इन चारों की मुलाकात हुई। इस दौरान गणेश राणा ने सुझाव दिया कि क्यों न सभी मिलकर गांव के बंजर भूमि में एक एडवेंचर कैंप तैयार करें। इस से अन्य लोगो को भी रोजगार मिलेगा और यहाँ के पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। गणेश का सुझाव अच्छा लगने की वजह से बाकी तीनों साथियों ने भी इस पर हामी भरी और नौकरी छोड़कर एडवेंचर कैंप बनाने में जुट गए। कार्य काफी तेजी से हुआ और गत 21 नवंबर से कैंप का विधिवत शुभारंभ कर दिया गया।




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