देवभूमि की बेटी देवेश्वरी बिष्ट, इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ ट्रेकिंग से स्वरोजगार की अलख जगा रही है
जहाँ उत्तराखण्ड में एक ओर पलायन ने अपनी जड़े ,मजबूत की हुई है वही ऐसे माहौल में यहाँ के युवा अपनी देवभूमी को पलायन भूमि में तब्दील होने से बचाने के लिए भरपूर प्रयाश कर रहे है। अगर यहाँ के युवा पढ़ लिखकर ,कोर्स कर के यही अपना बिज़नेस खोले तो कही न कही रोजगार की किरण उत्पन होगी और पहाड़ो से पलायन भी कुछ हद तक जरूर कम होगा हाँ इस बलिदान में उन्हें थोड़ा पैसा कम मिलेगा लेकिन अपनी जन्मभूमि को पलायन भूमि में तब्दील होने से बचा सकते है। ऐसी ही सकारात्मक सोच वाली एक पहाड़ की बेटी है जो इंजीनियर की नौकरी छोड़ के पहाड़ो में ट्रैकिंग की मुहीम जगा रही है। वर्तमान और विगत कई सालों से हमने उत्तराखंड में कोई ऐसी लड़की या महिला फोटोग्राफर और महिला ट्रैकर नहीं देखी जिसने इसे रोजगार का जरिया बनाया हो। ऐसे में देवेश्वरी बिष्ट का कार्य उन्हें दूसरों से अलग पंक्ति में खड़ा करता है। जिसके पास बुलंद हौसले हो ।

फाइल फोटो :देवेश्वरी बिष्ट
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वैसे तो हम आपको रोजाना किसी न किसी ऐसी पहाड़ की बेटी से रूबरू कराते रहते है ,लेकिन आज एक ऐसी बेटी की दास्ताँ बताने जा रहे है जो इंजीनियर की अच्छी खासी नौकरी को अलविदा कह, ट्रेकिंग के जरिए स्वरोजगार की अलख जगा रही हैं। साथ ही अपने सांस्कृतिक विरासत को संजोने का कार्य भी कर रही हैं। उत्तराखण्ड के सीमांत चमोली जिले की इंजीनियर बिटिया देवेश्वरी बिष्ट ने भी कुछ ऐसा कर दिखाया है जिस पर हर किसी को नाज है। ट्रेकिंग को बनाया स्वरोजगार का साधन और इसके जरिए अपनी नई मंजिल को पहचाना और उस पर आगे बढ़ती जा रही है। 2015 से लेकर अब तक वह सैकड़ों लोगों को हिमालय की सैर करवा चुकी हैं। जिसमें पंचकेदार, पंचबदर ,फूलों की घाटी , हेमकुंड, स्वर्गारोहणी, कुंवारी पास, दयारा बुग्याल, पंवालीकांठा, पिंडारी ग्लेशियर, कागभूषंड, देवरियाताल, द्घुत्तु सहित दर्जनों ट्रैक शामिल हैं। देवेश्वरी केवल ट्रैक ही नहीं करती बल्कि हिमालय की वादियों से एक से एक बेहतरीन फोटो को अपने कैमरे में कैद कर देश दुनिया से रूबरू करवाती हैं। उनके पास पहाड़ों की बेहतरीन फोटो का एक शानदार कलेक्शन मौजूद है। उनके पास 10 हजार से भी अधिक फोटो हैं। जिनमें पहाड़ों फूलों, बुग्यालों, नदियो और झरनों से लेकर लोकसंस्कृति और लोक विरासत को चरितार्थ करती फोटो शामिल हैं।

त्रियुगी नारायण मंदिर – रुद्रप्रयाग
द्रोणागिरी ईस्ट चमोली (देवेश्वरी बिष्ट )
मूल निवास ,शिक्षा और आगे का सफर – गोपेश्वर निवासी देवेश्वरी बिष्ट बेहद साधारण परिवार में पली बढ़ी हैं। उनके परिवार में दो बहन और एक भाई है। 12 वीं तक की पढ़ाई उन्होंने गोपेश्वर से प्राप्त की। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद 2009 में ग्रामीण पेयजल एवं स्वच्छता परियोजना में जल संस्थान गोपेश्वर में बतौर अवर अभियंता के पद पर कार्य करना शुरू कर दिया। 3 साल परियोजना में कार्य करने के बाद उरेडा में बतौर अवर अभियंता पहले चमोली , फिर रूद्रप्रयाग ¼गौंडार लघु जल विद्युत परियोजना½ और उसके बाद टिहरी के द्घुत्तु और घनसाली में कार्य किया। भले ही देवेश्वरी बिष्ट इंजीनियर की नौकरी कर रही थी। लेकिन मन हमेशा पहाड़ की डांडी ,कठियों,पंचबदरी और बुग्यालों में ही रहता। आखिरकार 2015 में इंजीनियर की नौकरी छोड़ उन्होंने ट्रेकिंग को अपना मिशन बनाया।
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माता पिता का रहा पूर्ण सहयोग : देवेश्वरी कहती है “आज भी हर रोज इंजीनियर की नौकरी हेतु आकर्षक पैकेज का प्रस्ताव आता है लेकिन मुझे मेरा पहाड़ ही सबसे अच्छा लगता है। अब मेरा उद्देश्य मेरी माटी, थाती और मेरे पहाड़ की सुरम्य वादियां हैं। मैंने जीवन में कई उतार चढ़ाव देंखे हैं। मैंने अपनी मेहनत और दिन रात काम करके अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। जिसमें मेरी मां और पापा का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने हमेशा मुझ पर भरोसा किया और हौंसला दिया। जब मैंने इंजीनियरिंग छोड़ी तो भी सबसे बड़ा हौंसला परिवार से ही मिला। मैं बेहद खुशनसीब हूँ की मुझे बेटियों को आगे बढ़ाने और हौंसला देने वाली माँ-पिताजी, भाई-बहिन मिले। जिनका हर कदम पर मुझे सहयोग मिला। जब मैंने इंजीनियरिंग छोड़ी तो भी सबसे बड़ा हौंसला परिवार से ही मिला। मैं बेहद खुशनसीब हूँ की मुझे बेटियों को आगे बढ़ाने और हौंसला देने वाली माँ-पिताजी, भाई-बहिन मिले। जिनका हर कदम पर सहयोग मिला।
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पलायन के ऊपर देवेश्वरी बिष्ट के विचार – देवेश्वरी कहती है मुझे मेरे पहाड़ से बेहद लगाव है । जिसकी सुंदरता की एक छोटी सी झलक पाने के लिए लोग लाखो रूपये खर्च कर रहे है ,वहीं दुःखी भी हूँ कि हमारे पहाड़ के लोग यहाँ से शहरो की चकाचौंध दुनिया में पलायन कर रहे है , आज मेरा पहाड़ पलायन से वीरान हो चला है। सबसे बडा दुःख तब होता है जब यहां से जाने वाले लौटकर वापस नहीं आता। इसलिए मैं चाहती हूँ कि अपने पहाड के लिए कुछ कर सकूँ। ताकि लोग भी मेरी तरह अपने पहाड के बारे में कुछ कार्य करें।
