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उत्तराखंड: पहाड़ के इस स्कूल के भवन हो चुके जर्जर, कभी भी दे सकते है बड़ी दुर्घटना को अंजाम…
फोटो सोशल मीडिया

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पिथौरागढ़

उत्तराखंड: पहाड़ के इस स्कूल के भवन हो चुके जर्जर, कभी भी दे सकते है बड़ी दुर्घटना को अंजाम…

GGIC Gangolihat school condition: राजकीय बालिका इंटर कॉलेज गंगोलीहाट शिक्षकों कमी और भवन की नाजुक स्थिति की झेल रहा मार , अपनी मांगों को लेकर छात्राओं समेत सडको पर उतरे अभिभावक …

GGIC Gangolihat school condition: पहाड़ों के सरकारी स्कूलों के स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। एक तरफ पहाड़ के सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर भवन जर्जर अवस्था में आ चुके हैं। जो कभी भी बड़ी दुर्घटना को न्योता दे सकते हैं बावजूद इसके प्रशासन इन पर ध्यान नहीं दे रहा है जिसके चलते सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अनेक बच्चों का भविष्य दाव पर लगा है। ऐसी ही कुछ शिक्षकों की कमी और जर्ज़र भवनों की स्थिति की मार झेल रहा है पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट का राजकीय बालिका इंटर कॉलेज जिसकी मरम्मत को लेकर छात्राओं और अभिभावकों ने सड़कों पर उतरकर धरना प्रदर्शन कर एसडीएम को ज्ञापन सौंपा है।
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GGIC Gangolihat Pithoragarh
बता दें पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में स्थित एकमात्र राजकीय बालिका इंटर कॉलेज विद्यालय टूटने की कगार पर पहुंच गया है। यहां के भवन जर्जर अवस्था में आ चुके हैं इसके साथ ही लगातार सीमेंट के टुकड़े पढ़ाई के दौरान क्लासरूम में गिर रहे हैं जो कभी भी बड़ी दुर्घटना को अंजाम दे सकते हैं बावजूद इसके प्रशासन इसकी अनदेखी कर रहा है। जिसको लेकर छात्राओं सहित अभिभावक अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे है अभिभावकों का कहना है कि सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा तो दे रही है लेकिन स्कूलों की नाजुक स्थिति के कारण बेटियों पर जो खतरा मंडरा रहा है उसकी कोई सुध नहीं ले रही है। विद्यालय भवन की दीवारें कई जगह टूट चुकी है जिसके चलते हल्की बारिश में भी सभी कमरों में पानी भर जाता है बार-बार मांग करने के बाद भी कोई विद्यालय भवन के पुनर्निर्माण की ओर ध्यान नहीं देता है जिसके कारण अभिभावकों ने मांग ना पूरी होने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है और साथ ही एसडीएम को ज्ञापन सौंपा है। इतना ही नहीं इसके अलावा राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में लंबे समय से प्रधानाचार्य समेत हिंदी, राजनीतिक विज्ञान, इतिहास ,जीव विज्ञान ,भौतिक विज्ञान रसायन विज्ञान, संस्कृत के प्रवक्ता नहीं है जबकि आईटी में सामाजिक विज्ञान हिंदी की शिक्षिकाएं भी नहीं है।

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Sunil

सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।

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