Kotdwar history in hindi: गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार का इतिहास है बेहद रोचक
उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित कोटद्वार शुरू से ही गढ़वाल क्षेत्र का परिवहन एवं व्यापार केंद्र रहा है। धीरे-धीरे इस क्षेत्र पर अंग्रेजों ने अपना अधिकार जमा लिया और वह इस जगह पर व्यापार करने लगे। इतिहासकार बताते हैं कि अंग्रेजों का उत्तराखंड में सबसे अधिक व्यापार कोटद्वार में होता था। क्योंकि कोटद्वार में सभी पहाड़ी क्षेत्रों के लोग आकर सामान जैसे आटा, चावल, गुण, तेल आदि खरीदते थे। साथ ही हिमालई क्षेत्रों से लाई जाने वाली महंगी लकड़ियों का भी व्यापार इस क्षेत्र में किया जाता था। इस चीज को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजों ने यहां पर रेलवे स्टेशन का निर्माण शुरू किया जिसके लिए शाहजहांपुर से कोटद्वार तक रेलवे लाइन बिछाई गई और 1890 में कोटद्वार में रेलवे स्टेशन का निर्माण हुआ जो कि देश का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन है। 1897 में रेलवे लाइन बन जाने के बाद यह क्षेत्र खोह नदी के पश्चिमी तट की ओर विकसित होने लगा। इतिहासकार बताते हैं कि कोटद्वार पूर्व गढ़वाल क्षेत्र का प्रमुख परिवहन एवं व्यापार केंद्र रहा है और देहरादून, हल्द्वानी से ज्यादा अंग्रेजों का कोटद्वार में व्यापार होता था। शुरू में कोटद्वार में केवल व्यापार की दृष्टि से लकड़ी के परिवहन के लिए ट्रेनें चला करती थी। लेकिन बाद में इस रेलवे स्टेशन में पैसेंजर ट्रेनें भी चलने लग लगी।
(Kotdwar history in hindi)
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कोटद्वार में रेलवे स्टेशन का इतिहास (kotdwar railway station)
सर्वप्रथम 1901 में इस रेलवे स्टेशन पर पैसेंजर ट्रेन चली थी।उसके बाद 1909 में कोटद्वार को प्रथम नगर का दर्जा दे दिया गया था और उसी साल हुए जनगणना के अनुसार उस समय कोटद्वार की जनसंख्या 1029 के आसपास थी। 1940 -41 में कोटद्वार किसी छोटे गांव के समान हुआ करता था। वैसे तो इस नगर का विकास 1890 में रेल के आगमन से ही शुरू होने लग गया था। मगर इस शहर का वास्तविक विकास 1950 के दशक में जब यहां नगरपालिका का निर्माण हुआ तब होने लगा और 1951 में कोटद्वार नगर पालिका की स्थापना हुई। 1949 के आसपास इस क्षेत्र को नोटिफाई एरिया घोषित कर दिया गया। इस प्रकार धीरे-धीरे विकसित होता यह क्षेत्र आज का घनी आबादी एवं जनसंख्या वाला पौड़ी जिले का सबसे बड़ा शहर के साथ-साथ गढ़वाल का प्रवेश द्वार वर्तमान कोटद्वार बना।
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