Connect with us
Uttarakhand Government Happy Independence Day
Hiljatra festival Pithoragarh Uttarakhand
फोटो - सोशल मीडिया

उत्तराखण्ड

पिथौरागढ़

कुमाऊं के मुखोटा नृत्य को मिलेगी वैश्विक पहचान, यूनेस्को की धरोहर में शामिल होगी हिलजात्रा

Hiljatra festival Pithoragarh Uttarakhand: कुमाऊं की प्रमुख लोक संस्कृति हिलजात्रा को अब वैश्विक स्तर पर मिलेगी पहचान, यूनेस्को की धरोहर में होगी शामिल…………

Hiljatra festival Pithoragarh Uttarakhand: उत्तराखंड अपनी संस्कृति के लिए विश्वभर मे जाना जाता है यहाँ की संस्कृति अन्य राज्यों के साथ- साथ विश्वभर के तमाम लोगों को भी अपनी ओर बेहद आकर्षित करती है। ऐसी ही कुछ विशेष संस्कृति है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की हिलजात्रा की जिसे बहुत जल्द यूनेस्को की धरोहर में शामिल किया जाएगा। बता दें कि पिथौरागढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित होने वाली इस हिलजात्रा को मुखोटा नृत्य के नाम से भी जाना जाता है। जिला मुख्यालय के कुमोड़ एवं बजेटी गांव में आयोजित होने वाली हिलजात्रा पूरे क्षेत्र में सबसे अधिक लोकप्रिय है।
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड के सबसे पुराने लोक नृत्य छोलिया का इतिहास है बेहद रोचक जानिए कुछ खास बातें

Hiljatra Pithoragarh Uttarakhand
बता दें देश और प्रदेश में विशिष्ट पहचान रखने वाली पिथौरागढ़ जिले की हिलजात्रा को यूनेस्को की धरोहर में शामिल कराने की कोशिश शुरू हुई है। जिसके लिए संस्कृति विभाग अल्मोड़ा ने धार्मिक संस्कृति के साथ ही मुखौटा संस्कृति को सहेजे कुमौड़, सतगढ़, देवलथल सहित अन्य जगहों पर आयोजित होने वाली समृद्ध हिलजात्रा को संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन की धरोहर सूची में शामिल कराने का दायित्व संभाला है ताकि इस हिलजात्रा को वैश्विक स्तर पर और अधिक पहचान मिल सके। इसके लिए संस्कृति विभाग एक डॉक्यूमेंट्री को तैयार करेगा। इस कार्य के लिए जिला योजना से बजट मिलेगा और अगर यह प्रयास सफल हुआ तो कुमौड़ हिलजात्रा के भगवान शिव के गढ़ लखिया भूत, सतगढ़ गांव की महाकाली, हिरन चीतल और बैलों की जोड़ी के साथ ही हिलजात्रा के दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ आयोजित होने वाले झोड़ा,चांचरी, खेल, ठुलखेल को पूरे वैश्विक स्तर पर अनूठी पहचान मिलने के साथ – साथ लोक संस्कृति और परंपराओं को सहेजने की योजना को और अधिक बल मिलेगा।
यह भी पढ़ें- उत्तराखण्ड: कुमाऊं का मुखौटा नृत्य बढ़ाएगा गणतंत्र दिवस परेड की शोभा, नजर आएगी हिलजात्रा

हिलजात्रा के इतिहास को पता कर तैयार किया जाएगा प्रस्ताव:-

Hiljatra in Pithoragarh
संस्कृति विभाग की ओर से जीबी पंत राजकीय संग्रहालय ने इस योजना पर काम शुरू कर दिया है जिसके तहत सबसे पहले पिथौरागढ़ के प्रमुख जगहों पर आयोजित होने वाली हिलजात्रा के इतिहास को खंगाला जाएगा और फिर इसके पीछे के धार्मिक पारंपरिक, सांस्कृतिक, सामाजिक पहलुओं को शामिल करते हुए डॉक्युमेंट्री तैयार की जाएगी तथा इस अनूठी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को यूनेस्को की धरोहर में शामिल करने का प्रस्ताव जारी किया जाएगा। इसके लिए जीबी पंत राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा के निदेशक डॉक्टर चंद्र सिंह चौहान का कहना है कि प्रस्ताव को तैयार कर पहले संगीत नाट्य अकादमी दिल्ली भेजा जाएगा और फिर वहां से संस्कृति मंत्रालय को भेजा जाएगा इसके पश्चात संस्कृति मंत्रालय प्रस्ताव का प्रशिक्षण कर मंत्रालय स्तर से यूनेस्को की धरोहर में शामिल करने की आगे की कार्रवाई करेगा।
यह भी पढ़ें- उत्तराखण्ड: क‌ई रहस्यों से भरी है पाताल भुवनेश्वर गुफा, छिपे हैं कलयुग के अंत के प्रतीक

पिथौरागढ का हिलजात्रा पर्व:

Pithoragarh Hiljatra हिल जात्रा की उत्पत्ति और इतिहास सदियों पुराना है। माना जाता है कि यह पर्व प्राचीन काल में किसानों द्वारा फसल कटाई के बाद मनाया जाता है इसका उद्देश्य कृषि कार्यों के सफल समापन का जश्न मनाना और अगले फसल चक्र के लिए देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। इस अनोखे पर्व में बैल, हिरन, लखिया भूत जैसे दर्जनों पात्र मुखौटे के साथ मैदान में उतरकर दर्शकों को रोमांचित कर देते हैं। हिलजात्रा पर्व सोर, अस्कोट और सीरा परगना मे मनाया जाता है। हिल जात्रा उत्तराखंड की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामुदायिक एकता और सहयोग का भी प्रतीक है। इसका आयोजन हर वर्ष धूमधाम से किया जाता है, जो इस क्षेत्र की समृद्ध परंपराओं और मान्यताओं को जीवंत बनाए रखता है। हिल जात्रा के दौरान विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। मुख्यतः यह पर्व शिव और पार्वती के सम्मान में मनाया जाता है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न स्थानीय देवताओं की भी पूजा की जाती है, जो स्थानीय मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती हैं।हिल जात्रा के दौरान विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।
यह भी पढ़ें- देहरादून में सबसे पहले कौन लाया बासमती चावल जानिए बेहद रोचक है इसका इतिहास

यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल होने से हिल जात्रा को मिलेगा लाभ:-

यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल होने से हिल जात्रा को वैश्विक स्तर पर पहचान और सम्मान मिलेगा जो इसे एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दिलाएगा। यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल होने से पर्यटन में वृद्धि हो सकती है पर्यटक इस विशिष्ट और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण आयोजन को देखने के लिए अधिक आकर्षित होंगे, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा और साथ ही यह स्थानीय समुदाय को अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व महसूस करने और इसे संरक्षित करने के लिए सशक्त बनाने में मदद करेगा।

यह भी पढ़ें- कैंची धाम में होती है हर मुराद पूरी जहां फेसबुक और एप्पल के मालिक भी हुए नतमस्तक

उत्तराखंड की सभी ताजा खबरों के लिए देवभूमि दर्शन के WHATSAPP GROUP से जुडिए।

👉👉TWITTER पर जुडिए।

More in उत्तराखण्ड

UTTARAKHAND GOVT JOBS

Advertisement Enter ad code here

UTTARAKHAND MUSIC INDUSTRY

Advertisement Enter ad code here

Lates News

deneme bonusu casino siteleri deneme bonusu veren siteler deneme bonusu veren siteler casino slot siteleri bahis siteleri casino siteleri bahis siteleri canlı bahis siteleri grandpashabet
To Top