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उत्तराखण्ड : बेसुध हैं परिजन.. अभी तक घर नहीं पहुंचा शहीद यमुना पनेरू का पार्थिव शरीर

बार-बार पिता की तस्वीर को निहार रहा है शहीद यमुना (Uttarakhand martyred yamuna paneru) का बेटा यश, पत्नी ममता हुई बेसुध, रविवार को होगा अंतिम संस्कार…

बीते बुधवार को उत्तराखंड के एक और जांबाज सपूत सूबेदार यमुना प्रसाद पनेरू (Uttarakhand martyred yamuna paneru) ने मां भारती की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। गुरुवार को जैसे ही यह खबर परिजनों को मिली तो परिवार में कोहराम मच गया। शहीद यमुना की पत्नी ममता पति के घर आने का बेशब्री से इंतजार कर रही थी परंतु पति के घर आने से पहले ही उनकी शहादत की खबर पहुंच गई। पति की शहादत की खबर से ममता बेसुध हैं, वो कभी अपने मासूम बच्चों की तरफ देखती हुई उनके भविष्य के बारे में सोचती है तो कभी पति की तस्वीर को ऐसे निहारती है जैसे पूछ रही हो आपने शादी के वक्त तो जीवन भर साथ देने का वादा किया था परंतु आप उस वादे को इतनी जल्दी तोड़कर क्यों चले गए? शहीद यमुना की तीन वर्ष की मासूम बेटी साक्षी जहां पिता की शहादत की खबर से बेखबर है वहीं उनका आठ वर्षीय बेटा यश बार-बार कमरे में लगी पिता की तस्वीर को निहार रहा है। शहीद यमुना की मां माहेश्वरी देवी की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। उन्हें तो दो-दो दुख सहने पड़े हैं, वर्ष 2004 में पति दयाकृष्ण पनेरू की मौत के बाद उन्हें अब जवान बेटे की मौत का सदमा भी झेलना पड़ा। बताया गया है कि उनका अंतिम संस्कार रविवार को स्थानीय चित्रशिला घाट पर पूरे सैन्य सम्मान के साथ किया जाएगा।
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पर्वतों से था प्यार और पर्वतों में ही शहादत भी पाई, पहाड़ के युवाओं के लिए करना चाहते थे ये काम, अधूरी रह गई दिल की इच्छा:-

गौरतलब है कि राज्य के नैनीताल जिले के ओखलकाण्डा ब्लाक के पदमपुर मीडार निवासी सूबेदार यमुना प्रसाद पनेरू जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में एक रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गए। शहीद यमुना (Uttarakhand martyred yamuna paneru) एक जांबाज और बहादुर जवान ही नहीं थे बल्कि एक कुशल पर्वतारोही भी थे। उन्होंने पर्वतों से बहुत प्यार था और इन्हीं पर्वतों में वह शहीद हो गए। उन्हें पर्वतों से कितना लगाव था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सेना से रिटायर्ड होने के बाद भी पर्वतारोहण से जुड़े रहना चाहते थे। इसके साथ ही उनका यह भी सपना था कि उनके पहाड़ के युवा भी कुशल पर्वतारोही बने। जिसके लिए वह पहाड़ में एक प्रशिक्षण केन्द्र भी खोलना चाहते थे जिससे पहाड़ के युवाओं को आसानी से पर्वतारोहण का प्रशिक्षण दिया जा सके। परंतु उनकी यह दिली इच्छा अब अधूरी रह गई। उन्होंने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा और नंदादेवी पर तिरंगा फहराया था। इतना ही नहीं उन्हें 2013 में सेना ने न केवल दार्जिलिंग स्थित हिमालयन माउंटेनियरिंग संस्थान में बतौर प्रशिक्षक नियुक्त किया बल्कि इसके बाद वे प्रशिक्षण देने के लिए भूटान भी गए।
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