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अल्मोड़ा: लक्ष्य सेन ने बाबू के संघर्ष और इजा की तपस्या को दी ऊंची उड़ान, जाने इनके बारे में विशेष

lakshya sen family history हालांकि पेरिस ओलंपिक के सेमी फाइनल में चुके लक्ष्य सेन, लेकिन हराने वाले खिलाड़ी ने भी मान लिया उनकी काबिलियत का लोहा…

lakshya sen family history पेरिस ओलंपिक 2024 में मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले लक्ष्य सेन भारतीय शटलर के तौर पर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जो पूरे देश के लिए बेहद गर्व की बात है। इसके साथ ही लक्ष्य सेन ने अभी तक हुए मुकाबलों मे अपने प्रतिद्वंदियों को करारी शिकस्त देकर अपनी जीत का सिलसिला जारी रखते हुए क्वार्टर फाइनल मे जीत हासिल कर सेमी फाइनल में अपनी जगह पक्की की थी जहां पर उनका मुकाबला बीते रविवार को डेनमार्क के एक्सेलेन से हुआ। हालांकि इस मुकाबले मे लक्ष्य सेन को 22 – 20 , 21 – 14 से हार का सामना करना पड़ा लेकिन मैच के विजेता एक्सेलेन भी लक्ष्य की काबिलियत और खेल प्रतिभा के आगे नतमस्तक हो ग‌ए। यहां तक कि उन्होंने अगले ओलंपिक में लक्ष्य को गोल्ड मेडल का प्रबल दावेदार बताते हुए कहा कि अगले ओलंपिक में बैडमिंटन का गोल्ड मेडल लक्ष्य सेन के ही नाम होगा।
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Lakshya Sen peris Olympic बता दें मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के 22 वर्षीय बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन ने पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हर मैच में अपने प्रतिद्वंदियों को करारी शिकस्त देकर सेमी फाइनल में जगह बनाई थी हालांकि वे रविवार को हुए मैच मे डेनमार्क के विक्टर एक्सेलेन से हार गए जिसके चलते उनका स्वर्ण पदक लाने का सपना टूट गया। लक्ष्य की सेमीफाइनल में हर के बाद से उनकी माता निर्मला सेन और पिता धीरेंद्र सेन नाराज जरूर है लेकिन दोनों के संघर्ष और त्याग से लक्ष्य अपने पहले ओलंपिक में ही इतने सफल हो सके। भले ही लक्ष्य इस ओलम्पिक में कोई मेडल हासिल न कर सके हों परंतु उन्होंने देश दुनिया के अनेक खेल प्रेमियों के साथ ही बैडमिंटन की अच्छी समझ रखने वाले लोगों को भी अपना मुरीद बना लिया। आपको बता दें कि बीते सोमवार को हुए मैच में भी लक्ष्य को मलेशिया के शटलर जी जिया ली से हार का सामना करना पड़ा और वह पेरिस ओलम्पिक के मेन्स सिंगल्स में चौथे स्थान पर रहे।
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खेल के लिए लक्ष्य को अपनी माँ से होना पड़ा था दूर:-

लक्ष्य को महज 10 वर्ष की उम्र में अपनी मां निर्मला से दूर होकर बेंगलुरु जाना पड़ा लेकिन उनकी मां निर्मला हमेशा से अपने दोनों बेटों लक्ष्य और चिराग के लिए भोजन को लेकर फिक्र मे रहती थी जो उन्हें आज तक भी रहती है। इसी कारण से जनवरी से शुरू हुए टूर्नामेंट के दौरान उनके माता-पिता भी लक्ष्य के साथ ही रहते हैं और पेरिस से फोन पर बातचीत कर निर्मला सेन बताती है कि वह लक्ष्य के ओलम्पिक में कोई पदक ना हासिल करने पर निराश तो हुई लेकिन उन्होंने ओलम्पिक के अपने सभी मैचों में अच्छा खेल दिखाया। वहीं लक्ष्य की मां निर्मला ने बताया कि लक्ष्य बचपन से ही सब्जियों को लेकर बहुत चूजी रहे है जिसके कारण बेंगलुरु में उन्हें डाइटिशियन और न्यूट्रिशन की सलाह से लक्ष्य और चिराग के लिए खुद भोजन तैयार करना शुरू किया था। दरअसल लक्ष्य को भिंडी की सब्जी बेहद पसंद है खास कर भिंडी रोल और चिकन की अलग-अलग वैरायटी भी लक्ष्य को बेहद पसंद है। लक्ष्य हरी सब्जी को कम पसंद करते हैं लेकिन उनकी डाइट में इनका होना बेहद जरूरी है इसलिए चिकन में भी पालक पत्ते ,हरी सब्जी इस तरह से मिक्स करते हैं कि उन्हें इनका स्वाद न आए लेकिन पोषण भरपूर मिल सके। इतना ही नहीं बल्कि लक्ष्य रोटी भी अपनी मां के हाथ की ही पसंद करते हैं जिस वजह से वह पेरिस में रोटी बनाने का सामान भी साथ लेकर गए हैं। मैच डे पर हर सुबह लक्ष्य को तीन उबले अंडे एक गिलास इस दूध स्मूदी ओट्स ब्रेड दिया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि वह लक्ष्य के लिए स्वयं सूप तैयार करती है जिसमें सही मात्रा में मसाला मिलाया जाता है। लक्ष्य को अपनी मां के हाथ के बने बेसन के लड्डू बेहद पसन्द तो वहीं काजू कतली उनकी पसंदीदा मिठाई है। लक्ष्य ने आज तक आइसक्रीम और गुलाब जामुन जैसी मिठाइयां नहीं खाई है क्योंकि उन्हें अधिक मीठा पसंद नहीं है।
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लक्ष्य – चिराग के लिए माता-पिता ने छोड़ी नौकरी:-

लक्ष्य के पिता धर्मेंद्र सेन ने बताया कि बचपन मे उनके बड़े बेटे चिराग के साथ ही लक्ष्य को भी बैडमिंटन की ट्रेनिंग देनी शुरू की गई थी उस समय लक्ष्य की उम्र मात्र 4 वर्ष थी। वर्ष 2011 में लक्ष्य को 10 साल की छोटी उम्र मे बेंगलुरु में प्रकाश पादुकोण से ट्रेनिंग लेने के लिए भेजा गया था जो उनके लिए बेहद ही मुश्किल फैसला था। तब लक्ष्य के दादा सीएल सेन ने लक्ष्य और चिराग के साथ बेंगलुरु में रहने का फैसला किया और करीब तीन से चार महीने वह वहीं रहे। इसके पश्चात बच्चों का बेंगलुरु से आने जाने का सिलसिला चलता रहा। वर्ष 2016 तक चिराग और लक्ष्य हॉस्टल में रहते थे। जहां पर वह बच्चों से मिलने गए तो उन्होंने देखा कि खाने पीने की दिक्कतें दोनों के खेल पर असर कर रही है जिसके कारण उन्होंने बच्चों की खातिर 23 मार्च 2018 को डीके सेन ने स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया साई की नौकरी से वीआरएस ले लिया जबकि उनके रिटायरमेंट को 6 साल बाकी थे उनके साथ ही लक्ष्य की मां निर्मला सेन ने भी बियरशिवा स्कूल अल्मोड़ा से नौकरी छोड़ दी और दोनों अपने बच्चों के पास बेंगलुरु चले गए।

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