बागेश्वर बागनाथ मंदिर का नाम कैसे पड़ा बागनाथ जानिए कुछ विशेष तथ्य
बागनाथ की पौराणिक कथा जहां भगवान शिव ने बाघ और पार्वती ने धारण किया था गाय रूप
बता दें कि भगवान शिव यहाँ बाघ के रूप में प्रकट हुए थे जिस कारण इसे व्याघ्रेश्वर के नाम से जाना गया था और यही नाम कालांतर में बागेश्वर हो गया। इस मन्दिर की एक और खासियत है कि अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को धरती पर ला रहे थे और ब्रह्मकपाली पत्थर के पास ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे। इसी बीच वशिष्ठ को ऋषि मार्कंडेय की तपस्या भंग होने का भय सताने लगा था तभी सरयू का जल इकट्ठा होने लगा और सरयू आगे ना बढ़ सकी। जिसके चलते मुनि वशिष्ठ ने शिव की आराधना करी और तभी भगवान शिव ने बाघ और पार्वती ने गाय का रूप धारण किया लेकिन ऋषि मार्कंडेय तपस्या मे लीन थे। जैसे ही बाघ गाय पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा तो गाय रम्माने लगी गाय की आवाज श्रवणकर मार्कंडेय मुनि की आँखे खुली और वह व्याघ्र से गाय को मुक्त करने के लिए दौड़ पड़े तभी व्याघ्र ने शिव और गाय ने पार्वती का रूप धारण कर लिया। इसके पश्चात माता पार्वती और भगवान शिव ने मार्कंडेय ऋषि को इच्छित वरदान दिया तथा मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद जिसके पश्चात ही सरयू नदी आगे की ओर प्रवाहित होने लगी। ऐसा कहा जाता है कि बागनाथ मंदिर में नि संतानों को संतान की प्राप्ति होती है। यहाँ पर देश भर से लोग दर्शन करने के लिए आते है। बागनाथ मन्दिर बागेश्वर मे एक प्रसिद्ध भव्य मेला उत्तरायणी भी लगता है जो मकर सक्रांति के अवसर पर सरयू नदी के तट पर हर वर्ष लगाया जाता है और यहाँ विश्व भर से लोग पहुंचते हैं।
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विशेष तथ्य
बागनाथ मंदिर में हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जो दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस मेले में उत्तराखंड की पारंपरिक संस्कृति और लोक कला की झलक देखने को मिलती है। इसके साथ ही मंदिर की वास्तुकला और शिल्पकला विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जिसमे प्राचीन भारतीय मंदिर वास्तुकला की झलक देखने को मिलती है इनमे पत्थर की नक्काशी और मूर्तियां महत्वपूर्ण हैं। मंदिर के पास गोमती और सरयू नदियों का संगम होता है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। यहां श्रद्धालु स्नान करके पापों से मुक्ति पाने की कामना करते हैं। बागनाथ मंदिर के चारों ओर कई छोटे-छोटे मंदिर भी हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इन मंदिरों का भी ऐतिहासिक महत्व है और ये बागेश्वर के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा मानी जाती है।
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