Bagnath Temple History Hindi: भगवान शिव को समर्पित है बागेश्वर का बागनाथ मंदिर, चंदवंश के राजाओं का बागनाथ मंदिर से रहा है अटूट रिश्ता, भगवान शिव ने बाघ के रूप में दिए थे दर्शन
Bagnath Temple History Hindi: उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां के कण – कण में देवी देवताओं का वास होता है। इसके साथ ही राज्य में ऐसे कई सारे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। इन प्राचीन मंदिरों में भगवान शिव की पूजा अलग-अलग रूपों में की जाती है। ठीक इसी प्रकार से अपनी धार्मिक महत्ता और पौराणिकता के लिए जाना जाता है बागेश्वर जिले का बागनाथ मंदिर जहां पर भगवान शिव ने बाघ के रूप मे अवतार लिया था।
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Bageshwar Bagnath Temple History: आपको जानकारी देते चले कि बागनाथ मन्दिर का निर्माण सातवीं शताब्दी मे हुआ था लेकिन मन्दिर का वर्तमान स्वरूप का निर्माण पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी मे चन्द वंश के राजा लक्ष्मी चन्द ने करवाया था। इतना ही नही बल्कि चन्द वंश के राजाओं का बागनाथ मंदिर से अटूट रिश्ता भी रहा है। दरअसल बागनाथ मन्दिर मे जो मूर्तियां उपस्थित है वे सातवीं से लेकर 16 वीं शताब्दी के बीच की हैं जिनमे उमा, पार्वती, महिषासुर मर्दिनी की त्रिमुखी और चतुर्मुखी मूर्तियां, शिवलिंग, गणेश, आदि देवी -देवताओं की प्रतिमाएं शामिल है। बागनाथ मंदिर सरयू और गोमती नदी के संगम पर स्थित है और ये बागेश्वर जनपद का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है जो समुद्रतल से 1004 मीटर की ऊंचाई पर अल्मोड़ा से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बागनाथ का शाब्दिक अर्थ है (बाघ भगवान) जो एक मन्दिर है और जिसके नाम पर ही शहर का नाम बागेश्वर रखा गया है। बागनाथ मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ पर चतुर्मुखी शिवलिंग ( चार सिर वाली मूर्ति) और बहुत सारे हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाएं मौजूद है। इस मन्दिर के महत्व का उल्लेख स्कंद पुराण में भी देखने को मिलता है इतना ही नहीं बल्कि हिंदू तीर्थ यात्री और श्रद्धालु वर्ष भर पूजा अर्चना करने के लिए बागनाथ मंदिर में आते हैं।
बागनाथ की पौराणिक कथा जहां भगवान शिव ने बाघ और पार्वती ने धारण किया था गाय रूप
बता दें कि भगवान शिव यहाँ बाघ के रूप में प्रकट हुए थे जिस कारण इसे व्याघ्रेश्वर के नाम से जाना गया था और यही नाम कालांतर में बागेश्वर हो गया। इस मन्दिर की एक और खासियत है कि अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को धरती पर ला रहे थे और ब्रह्मकपाली पत्थर के पास ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे। इसी बीच वशिष्ठ को ऋषि मार्कंडेय की तपस्या भंग होने का भय सताने लगा था तभी सरयू का जल इकट्ठा होने लगा और सरयू आगे ना बढ़ सकी। जिसके चलते मुनि वशिष्ठ ने शिव की आराधना करी और तभी भगवान शिव ने बाघ और पार्वती ने गाय का रूप धारण किया लेकिन ऋषि मार्कंडेय तपस्या मे लीन थे। जैसे ही बाघ गाय पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा तो गाय रम्माने लगी गाय की आवाज श्रवणकर मार्कंडेय मुनि की आँखे खुली और वह व्याघ्र से गाय को मुक्त करने के लिए दौड़ पड़े तभी व्याघ्र ने शिव और गाय ने पार्वती का रूप धारण कर लिया। इसके पश्चात माता पार्वती और भगवान शिव ने मार्कंडेय ऋषि को इच्छित वरदान दिया तथा मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद जिसके पश्चात ही सरयू नदी आगे की ओर प्रवाहित होने लगी। ऐसा कहा जाता है कि बागनाथ मंदिर में नि संतानों को संतान की प्राप्ति होती है। यहाँ पर देश भर से लोग दर्शन करने के लिए आते है। बागनाथ मन्दिर बागेश्वर मे एक प्रसिद्ध भव्य मेला उत्तरायणी भी लगता है जो मकर सक्रांति के अवसर पर सरयू नदी के तट पर हर वर्ष लगाया जाता है और यहाँ विश्व भर से लोग पहुंचते हैं।
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विशेष तथ्य
बागनाथ मंदिर में हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जो दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस मेले में उत्तराखंड की पारंपरिक संस्कृति और लोक कला की झलक देखने को मिलती है। इसके साथ ही मंदिर की वास्तुकला और शिल्पकला विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जिसमे प्राचीन भारतीय मंदिर वास्तुकला की झलक देखने को मिलती है इनमे पत्थर की नक्काशी और मूर्तियां महत्वपूर्ण हैं। मंदिर के पास गोमती और सरयू नदियों का संगम होता है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। यहां श्रद्धालु स्नान करके पापों से मुक्ति पाने की कामना करते हैं। बागनाथ मंदिर के चारों ओर कई छोटे-छोटे मंदिर भी हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इन मंदिरों का भी ऐतिहासिक महत्व है और ये बागेश्वर के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा मानी जाती है।
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