Nainital Bhela village Road: नैनीताल जिले के कालाढूंगी मोटर मार्ग से महज चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भेला गांव, आज तक नहीं पहुंचा सड़क मार्ग, ग्रामीणों को उठानी पड़ रही है परेशानी….
Nainital Bhela village Road
हाल ही में देश में 18वीं लोकसभा सांसदों के चुनाव की प्रक्रिया संपन्न हुई है। जल्द ही नई सरकार का गठन होने जा रहा है। आज देश हर क्षेत्र में प्रगति की ओर अग्रसर है लेकिन अगर बात उत्तराखण्ड की करें तो यहां आज भी ऐसे कई गांव हैं जो बुनियादी सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं। जिसके कारण ग्रामीणों को सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे बुनियादी सुविधाओं के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। आज हम आपको राज्य के एक और ऐसे ही गांव से रूबरू कराने जा रहे हैं जहां के ग्रामीणों को आज तक सड़क मार्ग का सुख नसीब नहीं हो पाया है। हालत यह है कि ग्रामीण बीमार, बुर्जुगों एवं गर्भवती महिलाओं को डोली या चारपाई के सहारे करीब चार किलोमीटर पैदल चलकर मुख्य सड़क मार्ग तक लाने को मजबूर हैं। जी हां… बात हो रही है नैनीताल जिले के कालाढूंगी मोटर मार्ग से महज चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित भेला गांव की। अब जब मुख्य मार्ग के आसपास के गांवों में यह हाल है तो पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्रों की बदहाल हालातों की कल्पना भी काफी डरावनी सी प्रतीत होती है। वहां रहने वाले ग्रामीणों के दुःख दर्द का तो हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं।
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देवभूमि दर्शन से खास बातचीत:-
Bhela village Road Issue देवभूमि दर्शन से खास बातचीत में भेला गांव के गणेश ने बताया कि उनके गांव में आज तक सड़क नहीं पहुंची है। वह वर्ष 2014 से गांव तक सड़क बनवाने के लिए संघर्षरत हैं लेकिन शासन प्रशासन उनकी कोई सुध नहीं ले रहा है। महज कोरे आश्वासनों के अतिरिक्त जनप्रतिनिधियों ने गांव तक सड़क बनाने के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया है। अपने गांव की इस दुर्दशा को देखकर काफी भावुक हुए गणेश बताते हैं कि उनके गांव में बिजली भी वर्ष 2009 में आई है। नलनी पोस्ट आफिस के अंतर्गत आने वाले भेला गांव से पुलिस चौकी भी 5 किमी दूर है और स्कूल भी गांव से 5 km दूर है। चारों ओर जंगल से आच्छादित इस गांव के बच्चे प्रतिदिन 10 किमी पैदल चलकर अपने स्कूल आते-जाते हैं। जंगल से घिरा हुआ क्षेत्र होने के कारण ग्रामीणों को हमेशा अपने बच्चों की चिंता सताती रहती है। बावजूद इसके भी शासन प्रशासन के कानों में जूं नहीं रेंग रही है।
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देवभूमि दर्शन से बातचीत में गणेश कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे सरकार और जनप्रतिनिधियों ने आंख और कान बंद कर दिए हैं। जिससे न तो उन्हें ग्रामीणों की परेशानी दिखाई दे रही है और न ही ग्रामीणों का करूणामय स्वर सुनाई ही दे रहा है। ग्रामीणों के यह हालात तब और भी अधिक भयावह हो जाते हैं जब गांव में कोई महिला गर्भवती हों या गांव का कोई सदस्य बीमार हो जाए। इन परिस्थितियों में ग्रामीणों को उन्हें चारपाई या डोली के सहारे जंगल के घने रास्तों से होते हुए चार किलोमीटर पैदल चलकर उन्हें कालाढूंगी मोटर मार्ग तक लाना पड़ता है तब जाकर कहीं उन्हें जीवनदायिनी 108 सेवा का लाभ मिल पाता है। परंतु समय पर उपचार न मिल पाने के कारण जहां कई बार बीमार ग्रामीणों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है वहीं कई बार जच्चा-बच्चा की जान पर भी बन आती है।