गौरवान्वित हुआ उत्तराखंड (Uttarakhand), विश्व के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों (Scientist) में शामिल हुए डॉक्टर चन्द्रप्रकाश काला (Chandraprakash Kala)..
राज्य (Uttarakhand) के होनहार वाशिंदों ने आज अपनी काबिलियत के दम पर देश-विदेश में अपना लोहा मनवाया है। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां प्रतिभावान उत्तराखंडवासी ना छाए हुए हों। आज हम आपको राज्य के एक और ऐसे ही होनहार वाशिंदे से रूबरू करा रहे हैं जो विश्व के शीर्ष वैज्ञानिकों (Scientist) में शुमार हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के सुमाड़ी गांव के रहने वाले डॉक्टर चंद्रप्रकाश काला (Chandraprakash Kala) की, जिन्हें अमेरिका की प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने विश्व के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों में शामिल किया है। बता दें कि उन्हें यह अभूतपूर्व सम्मान इकोलॉजी (पारिस्थितिकी विज्ञान) की श्रेणी में प्राप्त हुआ है। डॉक्टर चन्द्रप्रकाश काला की इस अभूतपूर्व उपलब्धि से जहां उनके परिवार में हर्षोल्लास का माहौल है वहीं पूरे क्षेत्र में भी खुशी की लहर है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि डॉक्टर चन्द्रप्रकाश ने अपनी काबिलियत के दम पर न सिर्फ अपने क्षेत्र एवं जिले का नाम रोशन किया है बल्कि विश्व पटल पर देवभूमि उत्तराखंड का मान भी बढ़ाया है।
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वर्तमान में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम) भोपाल में कार्यरत हैं डॉक्टर चंद्रप्रकाश:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर के सुमाड़ी गांव निवासी डॉक्टर चंद्रप्रकाश काला एक इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) वैज्ञानिक है। बता दें कि वर्तमान में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम) भोपाल में कार्यरत डॉक्टर चंद्रप्रकाश काला को अमेरिका की प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने विश्व के शीर्षतम दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की श्रेणी में शामिल किया है। उन्होंने यह अभूतपूर्व उपलब्धि अपने उत्कृष्ट शोध कार्यों एवं उत्कृष्ट शोध पत्रों के प्रकाशन के आधार पर प्राप्त की हैं। उनकी काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह अपने उत्कृष्ट शोध कार्यों के लिए वर्ष 2005 में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित हो चुके हैं। बताते चलें कि सुमाड़ी और श्रीनगर से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने वाले डॉक्टर चंद्रप्रकाश काला पिछले तीन दशक से हिमालय के इकोसिस्टम एवं वनस्पतियों पर शोध कर रहे हैं। इस क्षेत्र में उनके अब तक 10 किताबें एवं 100 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित भी प्रकाशित हो चुके हैं।
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