पाक सीमा पर स्थित संवेदनशील कठुआ के डीएम बने उत्तराखण्ड कैडर के आईएएस डॉ. लंगर
जम्मू-कश्मीर के सबसे संवेदनशील जिले की बागडोर अब उत्तराखंड कैडर के 2009 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. राघव लंगर के हाथों में होगी। ऐतिहासिक दृष्टि से जम्मू-कश्मीर के सबसे महत्वपूर्ण एवं पाकिस्तानी सीमा से लगे कठुआ जिले की बागडोर संभालना अपने आप में सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। बता दें कि इस जिले की बागडोर उसी आईएएस अधिकारी को सोपीं जाती है जिसके ऊपर शासन को सबसे ज्यादा भरोसा होता है। खास बात यह है कि डॉ राघव लंगर विपरीत परिस्थितियों में उत्तराखंड में भी कई अहम दायित्वों का निर्वाह कर चुके हैं। उन्हे 2013 में आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले का जिलाधिकारी बनाया गया था। आपदा प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले में पुनर्वास के सभी कार्य उन्हीं की देखरेख में किए गए थे। वह यहां भी सरकार के भरोसे पर खरे उतरे जिसके बाद उन्हें एक से बढ़कर एक बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियां दी गई जिनका उन्होंने सफलतापूर्वक निर्वाह किया और सरकार द्वारा उन पर किए गए भरोसे को टूटने नहीं दिया। इसी का परिणाम है कि उन्हें इस बार सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है।
केदारनाथ आपदा के दौरान भी किया सराहनीय कार्य : बता दें कि उत्तराखंड कैडर के 2009 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. राघव लंगर को पाकिस्तान सीमा पर स्थित संवेदनशील कठुवा का जिलाधिकारी नियुक्त किया गया है। मूल रूप से जम्मू के रहने वाले सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ जेजी लैंगर के बेटे डॉ राघव अभी तक जम्मू कश्मीर में इकोनॉमिक रिकंस्ट्रक्शन एजेंसी और एडिशनल चीफ एक्जीक्यूटिव अथॉरिटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे। जम्मू-कश्मीर में प्रतिनियुक्ति से पहले डा राघव उत्तराखणड में कई महतवपूर्ण जिम्मेदारियां निभा चुके है। उन्हें पहले 2013 में भीषण आपदा के बाद रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी के रूप में तैनात किया गया। जहां उन्होने सभी जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया। रूद्रप्रयाग में पुनर्वास के कार्यो से लेकर आपदा प्रभावित केदारनाथ में प्रभावितों को सुरक्षित निकालने, उन्हे दैनिक सुविधाएं मुहैया कराने तक के कार्य जिलाधिकारी डा राघव लंगर की देखरेख में ही किए गए। तीन साल बाद 2016 में उन्हे सरकार के अतिरिक्त सचिव, पेयजल और स्वच्छता, प्रमुख नमामि गंगे कार्यक्रम के परियोजना निदेशक और सीईओ पीएमजीएसवाई के रूप में तैनात किया गया। जिसके बाद उनकी प्रतिनियुक्ति जम्मू-कश्मीर में की गई।