राज्य (Uttarakhand) में खुलेगीं चार नई चाय फैक्ट्रियां (Tea Factory), राजधानी गैरसैंण में स्थापित होगा उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड का मुख्यालय..
ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण को विकसित करने के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। राजधानी गैरसैंण में सचिवालय, कार्यालयों आदि के निर्माण के लिए बजट की घोषणा करने के बाद अब मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने एक और बड़ी घोषणा की है। जी हां.. जहां ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण (भराड़ीसैंण) में उत्तराखंड (Uttarakhand) चाय विकास बोर्ड का मुख्यालय स्थापित किया जाएगा वहीं प्रदेश के चार पर्वतीय जिलों अल्मोड़ा, चम्पावत, चमोली और नैनीताल में नई चाय फैक्ट्रियां (Tea Factory) भी खुलने जा रही है। बात अगर कुमाऊं मंडल की करें तो यहां के लिए स्वीकृत तीन चाय फैक्ट्री में से एक अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाक के गरुड़ाबाज में, दूसरी नैनीताल जिले में घुना तथा तीसरी चम्पावत जिले में खुलेगी। बताया गया है कि मुख्यमंत्री ने चाय फैक्ट्रियों की यह स्वीकृति बोर्ड के उपाध्यक्ष गोविंद सिंह पिलख्वाल के प्रस्ताव पर दी है।यह भी पढ़ें- देहरादून का रेलवे स्टेशन बनेगा 83.5 मीटर ऊंची इमारत, नए लुक में आएगा नजर
समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने दिए जिलाधिकारियों और अधिकारियों को निर्देश, बोर्ड की समीक्षा बैठक को एक साल में चार बार आयोजित करने का भी दिया सुझाव:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते गुरुवार को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड (यूटीडीबी) की समीक्षा बैठक आयोजित की गई। इस दौरान उन्होंने घोषणा की कि उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड का मुख्यालय ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण (भराड़ीसैंण) में स्थापित किया जाएगा। किसानों को बाजार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रदेश के चार पर्वतीय जिलों में नई चाय फैक्ट्रियां खोली जाएगी। इस दौरान उन्होंने कहा कि विकास बोर्ड की बैठक साल में चार बार आयोजित की जानी चाहिए जिससे बोर्ड के सदस्य अपनी बात रख पाएंगे और किसानों की समस्याओं से रूबरू होने के भी अधिक अवसर बनेंगे। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने न केवल जिलाधिकारियों को टी-टूरिज्म पर भी फोकस करने के निर्देश दिए बल्कि बैठक में उपस्थित अधिकारियों को भी निर्देश देते हुए कहा कि चाय बागानों से उत्पादित हरी पत्तियों के न्यूनतम विक्रय मूल्य को निर्धारित करने के लिए एक समिति का गठन किया जाए, जो प्रत्येक वर्ष के लिए न्यूनतम विक्रय मूल्य निर्धारित करेगी।
यह भी पढ़ें- देहरादून: पहाड़ी राज्य होने के बाद भी गढ़वाली-कुमाऊंनी में प्रोग्राम करने से किया मना