उत्तराखण्ड : नई पहल, स्कूल में पारंपरिक पहाड़ी वाद्य यंत्रों की थाप पर प्रार्थना की हुई शुरुआत
राज्य की पहाड़ी सभ्यता एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हर कोई प्रयासरत हैं। इसके तहत ही पिछले वर्ष कई सरकारी विद्यालयों में कुमाऊनी एवं गढ़वाली भाषाओं में प्रार्थना करने की एक अनोखी शुरुआत हुई थी, और इसका परिणाम कितना अभूतपूर्व रहा इस बात का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पहले तो गढ़वाली पुस्तकों का विमोचन कर उन्हें प्राइमरी कक्षाओं के सेलेब्स में शामिल किया और अब हाल ही में कुछ दिनों पूर्व पांच कुमाऊनी पुस्तकों का भी विमोचन किया। सरकार के इस प्रोत्साहन से जहां पर्वतीय जिलों के शिक्षकों में एक उत्साह का संचार हुआ वहीं अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने के लिए कुछ ना कुछ करने की ललक भी जगी। इसी का उदाहरण आज हम सभी के सामने है। जी हां.. हम बात कर रहे हैं राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के राजकीय इंटर कॉलेज सतपुली की जहां दिन की शुरुआत पारम्परिक पहाड़ी वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनि से होती है। आपको सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा परन्तु यह सच्चाई है और इस बात का प्रमाण है यह विडियो जिसको आप खुद देखेंगे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के सतपुली बाजार के बीचों-बीच स्थित राजकीय इंटर कॉलेज सतपुली में पहाड़ की परंपराओं से जुड़े पारंपरिक वाद्य यंत्रों से आज की पीढ़ी को जोड़ने के लिए बीते शुक्रवार से एक नई पहल का आगाज किया गया है, जिसमें विद्यालय की प्रात: वंदना और समूह गान पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ हो रही है। सबसे खास बात तो यह है कि इन वाद्य यंत्रों को बजाने का जिम्मा भी बच्चों को ही दिया गया है। कालेज के बाजार के बीचों-बीच स्थित होने के कारण सतपुली बाजार की सुबह भी इन दिनों ढोल-दमाऊं, डौंर-थाली, हुड़का, रणसिंघा, भंकोरा और मशकबीन की सुमधुर लहरों से सराबोर रहती है। विद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि उनकी इस नवीनतम पहल का उद्देश्य यही है कि बच्चों को अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के बारे में जानकारी मिल सके। विद्यालय प्रबंधन द्वारा लिए गए इस ऐतिहासिक निर्णय की सतपुली के साथ-साथ सोशल मीडिया में भी जमकर सराहना हो रही है।
