उत्तराखण्ड : विदेश में आईटी हेड की नौकरी छोड़ हिमांशु ने पहाड़ में जैविक खेती में बनाया कॅरियर
रिवर्स माइग्रेशन पर हाल ही में रिलीज हुए बीके सामंत के गीत ‘तु ऐजा ओ पहाड़..’ की तमाम पंक्तियों को सार्थक रूप प्रदान करने वाले हिमांशु जोशी मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले के रहने वाले हैं, और वर्तमान में हल्द्वानी में रहते है। उनके पिता डॉ. आरसी जोशी भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान मुक्तेश्वर में वैज्ञानिक के पद पर तैनात है। लगभग 14 सालों तक सात समुंदर पार दुबई, मस्कट में एक टेलीकॉम कंपनी के प्रोजेक्ट डिपार्टमेंट में आइटी के हेड पद पर कार्य कर चुके हिमांशु ने दिसंबर 2015 में उस वक्त वतन वापसी की जब उनके पिता की तबीयत बहुत खराब हो गई। पिता की देखभाल और उनकी तबीयत की चिंता करने वाले हिमांशु ने इसके बाद विदेशी धरती को अलविदा कह दिया और अपनी माटी में ही कुछ करने की ठानी। सोचते-सोचते उन्हें अपनी जमीन पर जैविक खेती करने का उपाय सूझा। और उन्होंने इसके बाद बिना देर किए कोटाबाग के पतलिया के कूशा नबाड़ में समर्थित अपनी 14 बीघा जमीन पर जैविक खेती शुरू कर दी, साथ ही साथ यह भी संकल्प लिया कि वह हमेशा रासायनिक खादों से मुक्त खेती ही करेंगे। लगभग बंजर हो चुकी जमीन में खेती जैसा कठिन काम करने का निश्चय कर चुके हिमांशु को शुरूआत में जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ी परंतु धीरे-धीरे उन्होंने खुद ही ‘दशरथ मांझी’ के नक्शे कदम पर चलकर अपनी हारी बंजर भूमि को आबाद कर लिया।
पॉली क्रॉपिंग मॉडल अपनाकर ‘फॉरेस्ट साइड फार्म’ में डाली नई जान, अब कुरियर से देश-विदेश पहुंचा रहे जैविक उत्पाद:-
अपनी जी-तोड़ मेहनत से बंजर भूमि को आबाद करने वाले हिमांशु ने फार्म का नाम जंगल के समीप होने की वजह से ‘फॉरेस्ट साइड फार्म’ रखा है। वह कहते हैं कि आमतौर पर यह समझा जाता है कि पहाड़ों पर खेती आसान नहीं होती और यह सही बात भी है परन्तु इसका कारण है खेती का मोनो क्रॉपिंग मॉडल। बता दें कि जब एक स्थान पर किसान द्वारा एक ही फसल उगाई जाती है तो उसे मोनो क्रॉपिंग मॉडल कहते हैं। परंतु हिमांशु ने इस माडल को बदलकर पहाड़ में खेती की धारणा को ही बदल दिया। हिमांशु कहते हैं कि मोनो क्रॉपिंग मॉडल की जगह पॉली क्रॉपिंग मॉडल को अपनाकर खेती करने से उनकी राह आसान हो गई। मोनो क्रॉपिंग मॉडल की जगह पॉली क्रॉपिंग में विभिन्न प्रकार की खेती एक साथ की जाती है। हॉर्टिकल्चर के साथ ही मसाले, हल्दी, गहत, उड़द, अरहर, अमरूद आदि एक साथ उगाए जाते हैं। इस माडल की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि किसान को अगर एक फसल से नुकसान हुआ तो दूसरे से फायदा हो जाता है। इस तरह उसे नुकसान नहीं उठाना पड़ता। तीन साल पहले अमरूद के 650 पौधों के सहित आम, लीची, कटहल, बेर, अंजीर, लीची, चीकू आदि फलों के पेड़ लगाकर अपने सुनहरे भविष्य का सपना देखने वाले हिमांशु ने भी इंटरनेट से पाली क्रॉपिंग माडल की जानकारी ली और उसे अपनाया। परिणामस्वरूप वह आज पूरी तरह जैविक रूप से उगाई गई फल, सब्जियों व दालों को देश के तमाम शहरों के साथ ही कुरियर से विदेश भी भेज रहे हैं।