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Jugal Kishore Petshali: प्रसिद्ध रंगकर्मी लोकसाहित्यकार जुगल किशोर पेटशाली का निधन
Jugal Kishore Petshali uttarakhand : कुमाऊं के प्रसिद्ध रंगकर्मी जुगल किशोर पेटशाली का निधन, काफी समय से चल रहे थे अस्वस्थ
Kumaon Famous theatre artist and folk literature writer Jugal Kishore Petshali died in chitai almora news today: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से एक दुखद खबर सामने आ रही है जहां पर कुमाऊं के प्रसिद्ध रंगकर्मी, लोक साहित्यकार राजनीतिक ,शिक्षाविद जुगल किशोर पेटशाली ने अपने पैतृक आवास में अंतिम सांस ली है। परिजनों ने बताया कि किशोर लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे जिसके कारण बीते गुरुवार को उनका निधन हो गया। घटना के बाद से परिजनों में कोहराम मचा हुआ है वहीं पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है।
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अभी तक मिली जानकारी के अनुसार अल्मोड़ा जिले के चितई के निवासी 79 वर्षीय जुगल किशोर पेटशाली लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे जिसके चलते बीते गुरुवार की देर रात उन्होंने अपने पैतृक आवास में अंतिम सांस ली । किशोर पेटशाली अपने पीछे अपनी पत्नी पुष्पा , बड़े बेटे सुनील पेटशाली, गिरीश चंद्र , भुवन चंद्र, शिखर चंद और हिमांशु पेटशाली तथा अपने सबसे छोटे बेटे मुकुल पेटशाली समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गए है वहीं आज शुक्रवार को करीब 10:30 बजे किशोर की अंतिम संस्कार की यात्रा उनके पैतृक आवास से दलबैंड तक निकाली जाएगी।
किशोर पेटशाली का कुमाऊं साहित्य लेखन समेत अन्य क्षेत्रों में विशेष योगदान
बताते चले किशोर पेटशाली ने जीवन भर कुमाऊनी भाषा के संरक्षण हिंदी साहित्य लेखन परंपरागत, वाद्य यंत्रों को संजोने मे अपना विशेष योगदान दिया है जिसे भूलना संभव नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि उनके योगदान को देखते हुए राज्य सरकार ने देहरादून में एक मॉडर्न लाइब्रेरी संग्रहालय की स्थापना की जो विशेष कर कुमाऊनी वाद्य यंत्रो समेत कुमाऊनी साहित्य व संस्कृति का प्रमुख केंद्र के रूप में पहचान बना चुका है। किशोर के निधन के बाद से तमाम साहित्यकारों समेत राजनीतिक संगठनों में शोक की लहर दौड़ गई है।
जुगल किशोर ने कुमाऊनी संस्कृत में दिया अविस्मरणीय योगदान
किशोर पेटशाली पौराणिक और लोक संस्कृति के कई सारे ऐसे अनछुए तथ्यों को सामने लाने का बेड़ा उठाते थे जिससे समाज परिचित नही था उनके इसी अंदाज के कारण उनके दिए गए योगदान को भूल पाना बेहद मुश्किल है। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने अल्मोड़ा के निकट अपने संग्रहालय में रहकर लोक साहित्य पर कई किताबें लिखी और लोकगीतों तथा लोक संगीत के माध्यम से उन्हे आज भी परोसा जा रहा है। किशोर पेटशाली ने जिन विपरीत परिस्थितियों में रहकर लोक साहित्य की साधना के साथ रंगमंच के क्षेत्र में जो काम किया है वह अभूतपूर्व है उन्होंने दूरदर्शन की ओर से प्रस्तुत राजुला मालू शाही धारावाहिक और अन्य कई सारे महत्वपूर्ण नाटकों के लिए पटगाथा भी लिखी है इसके साथ ही उन्होंने बहुत से नाटकों का निर्देशन भी किया है। अल्मोड़ा शहर के निकट अपने प्रयासों के कारण उन्होंने लोक संग्रहालय की स्थापना करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कुमाऊं की लोक गाथाओं पर आधारित पुस्तकें भी लिखी
किशोर पेटशाली ने कुमाऊं के लोकगाथाओं के आधार पर कई पुस्तकों का लेखन कार्य भी किया है जिसमें उन्होंने मेरे नाटक आधारित पुस्तक में सुप्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी की भूमिका भी निभाई है जिसमें चार नाटक शामिल किए हैं यह नाटक आज से 300 से लेकर 500 साल पुराना है जो सामाजिक एवं ऐतिहासिक घटनाक्रमों को रंगमंच पर जीवंत करने मे पूरी तरह से सक्षम है । उत्तराखंड में वर्षों पूर्व की राजशाही व्यवस्था को सामाजिक प्रसंग में नाटकों के माध्यम से दर्शाया गया है। इतना ही नहीं बल्कि “जी रया जागी रया” भी किशोर की कुमाऊनी कविताओं का संग्रह है।
जुगल किशोर पेटशाली की अन्य प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें
1. राजुला मालूशाही (महाकाव्य), 2. जय बाला गोरिया, 3. कुमाऊं के संस्कार गीत, 4. बखत (कुमाउनी कविता संग्रह), 5. उत्तरांचल के लोक वाद्य, 6. कुमाउनी लोकगीत, 7. पिंगला भृतहरि (महाकाव्य), 8. कुमाऊं के लोकगाथाएं, 9. गोरी प्यारो लागो तेरो झनकारो (कुमाउनी होली गीत संग्रह), तथा 10. भ्रमर गीत, (सम्पादित)
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